बिहार में अगले महीने से लीची में फूल और फल आने लगेंगे. हालांकि बिहार के लीची किसान अभी से परेशान हैं. खासकर वैसे किसान जो चाइना वैरायटी की खेती करते हैं. इन किसानों की परेशानी इसलिए बढ़ गई है क्योंकि फूल से पहले आने वाली कली (मंजर) की संख्या बहुत कम दिख रही है. इससे लीची की पैदावार में भारी गिरावट आने की आशंका जाहिर की जा रही है.
फूलों की इस कली को स्थानीय भाषा में मंजर कहते हैं. लीची के पेड़ पर कम मंजर दिखना किसानों के लिए चिंता का कारण बन गया है. मुजफ्फरपुर और उसके आसपास के जिले के किसान अच्छी आमदनी से वंचित रह जाने की चिंता में हैं. हालांकि अच्छी बात ये है कि शाही लीची के पेड़ों पर खूब फूल दिख रहे हैं जिससे बंपर पैदावार का अनुमान है. मुजफ्फरपुर की शाही लीची अपने आकार, सुगंध और टेस्ट के लिए पूरे देश में मशहूर है. यही वजह है कि इसे दाम भी बढ़िया मिलता है.
'डाउन टू अर्थ' की एक रिपोर्ट में कहा गया है इस पूरे इलाके में शाही और चाइना लीची की बड़े पैमाने पर कमर्शियल खेती की जाती है. इसमें शाही लीची पहले पकती है जबकि चाइना वैरायटी देर से आती है. लेकिन इस बार औराई और मुशरी ब्लॉक के किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हैं क्योंकि इन इलाकों में पेड़ों पर अभी तक मंजर नहीं आए हैं.
औराई के एक किसान ने कहा, चाइन लीची के पेड़ों पर अभी तक फूल नहीं आए हैं. मुशरी के किसान संजीव कुमार सिंह ने कहा कि इस बार हमें अनुमान था कि लीची की बंपर पैदावार मिलेगी, मगर मंजर कम आने से पैदावार गिरने की आशंका अधिक बढ़ गई है. लीची के छोटे-छोटे मंजर लीची के फल के शुरुआती स्टेज होते हैं. यही मंजर फूल में बदलते हैं और फिर फल बनते हैं.
किसानों का अनुमान है कि पिछले साल की तुलना में अभी 40 परसेंट कम मंजर आए हैं जिससे कम पैदावार निकलने और दाम में भारी वृद्धि के संकेत मिलते हैं. कम फूल आने का मतलब है कम फलों का आना जिससे मुनाफे में भारी कमी होगी. मिनापुर के किसान विकास ठाकुर ने यह बात कही. इस साल चाइना लीची बोने वाले किसानों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा.
बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष और खुद भी किसान के रूप में काम करने वाले बच्चा प्रसाद ने कहा कि इस इलाके के अधिकांश किसान चाइना लीची पर निर्भर हैं और उसी से उनकी कमाई निकलती है. कमाई की उम्मीद में ये किसान बड़े पैमाने पर चाइना लीची की खेती करते हैं. बच्चा प्रसाद ने कहा कि चाइना लीची से किसानों को अच्छी आमदनी मिलती है, इसलिए वे इस वैरायटी को अधिक लगाते हैं.
लीची उत्पादक संघ से जुड़े एक बड़े लीची किसान भोला नाथ झा ने बताया कि चाइना किस्म को जहां मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं अनुकूल मौसम की वजह से शाही लीची के करीब 90 फीसदी पेड़ों में मंजर लग चुके हैं. उन्होंने बताया कि किसान मार्च के दूसरे हफ्ते से इस किस्म के फूल खिलने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.
मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र (NRCL) के वैज्ञानिकों के अनुसार, जिले के कुल उत्पादन में चाइना लीची का हिस्सा 65 फीसदी है. खराब फूल आने का कारण सर्दियों और गर्मियों में तापमान में उतार-चढ़ाव है. उन्होंने बताया कि लीची तापमान, बारिश और नमी के प्रति बेहद संवेदनशील होती है. पिछले साल अधिक तापमान और पश्चिमी हवाओं ने फलों के विकास को बुरी तरह प्रभावित किया था.