संविदा से हटाए गए PhD स्‍कॉलर की ठेले से चल रही जीविका, जम्मू-कश्मीर चुनाव में दिखेगा बेरोजगारी का असर?

संविदा से हटाए गए PhD स्‍कॉलर की ठेले से चल रही जीविका, जम्मू-कश्मीर चुनाव में दिखेगा बेरोजगारी का असर?

जम्मू-कश्मीर में युवा समेत हर आयु वर्ग में बेरोजगारी का स्‍तर काफी बढ़ गया है. यही वजह है कि पढ़े-लिखे और उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त युवा भी रोजगार के लिए ठोकरें खा रहे हैं. यहां सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र में सीमित अवसर उपलब्‍ध हैं.

फल बेचने को मजबूर पीएचडीधारी डॉ. मंजूर उल हसनफल बेचने को मजबूर पीएचडीधारी डॉ. मंजूर उल हसन
क‍िसान तक
  • Srinagar,
  • Sep 22, 2024,
  • Updated Sep 22, 2024, 8:16 PM IST

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की शुरुआत धमाकेदार तरीके से हुई है, क्योंकि पहले फेज में भारी मतदान हुआ. 24 सीटों पर 61 फीसदी वोटिंग हुई. 10 साल बाद हो रहे विधानसभा चुनाव में अपनी सरकार चुनने के लिए जम्मू कश्मीर की अवाम का जोश हाई नजर आ रहा है. विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपने घोषणापत्र जारी किए हैं, जिसमें सड़क, बिजली, पानी से लेकर आर्टिकल 370 तक पर वादा किया गया है, लेकिन हर विजन डॉक्यूमेंट में जो चीज गायब है, वो है बेरोजगारी के मुद्दे को हल करने का रोड मैप. 

13 साल संविदा पर किया काम

जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी खतरनाक पर पहुंच गई है. यहां हाई एजुकेशन हासिल करने वाला शिक्षित युवा भी बेरोजगार है. क्योंकि सरकारी और प्राइवेट दोनों सेक्टर में सीमित अवसर हैं, जिससे हजारों युवाओं के लिए निराशाजनक स्थिति है. हताशा की एक ऐसी ही कहानी है दक्षिण कश्मीर के शोपियां इलाके की.

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यहां रहने वाले डॉ. मंजूर उल हसन पॉलिटिकल साइंस में पीएचडी स्कॉलर हैं, लेकिन वह अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए ठेले पर मेवे बेचने को मजबूर हैं, उन्होंने नौकरी के लिए कई प्रयास किए लेकिन कहीं नौकरी नहीं लगी. हसन के अनुसार उन्होंने एक सरकारी विभाग में 13 साल तक संविदा पर काम किया है, लेकिन उन्हें रेग्युलर नहीं किया गया और इसके बजाय उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. 

पहले फेज की हो चुकी है वोटिंग

मंजूर की कहानी उसके जैसे हजारों लोगों की कहानी है, जो हाई एजुकेशन के बावजूद कहीं नहीं जा पाते और इस तरह अपने परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए छोटे-मोटे काम करने को मजबूर हैं, मंजूर की कहानी वायरल हो गई है और वोटिंग पैटर्न को भी प्रभावित कर सकती है, क्योंकि यह मुद्दा लोगों की नाज़ुक नस को छूता है.

बता दें कि आर्टिकल-370 हटने के बाद कई दावे किए गए थे कि अब घाटी में निवेश बढ़ेगा. प्राइवेट और सरकारी क्षेत्र में नौकरियां बढ़ेंगी. कई कंपनियां आएंगी, लेकिन जमीनी हालात कुछ और ही इशारा कर रहे हैं. जम्मू कश्मीर में पहले फेज की वोटिंग हो चुकी है, जबकि दूसरे फेज की वोटिंग 25 सितंबर औऱ तीसरे फेज की वोटिंग 1 अक्टूबर को होगी. जम्मू-कश्मीर में 8 अक्टूबर को काउंटिंग होगी.  

मीर फरीद की रिपोर्ट

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