Cow farming: देश के ग्रामीण इलाकों में लोगों के लिए खेती-किसानी के बाद पशुपालन ही सबसे अच्छा व्यवसाय का विकल्प माना जाता है. वहीं, आमदानी के लिहाज से पशुपालन किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद सौदा है. आमतौर पर पशुपालक यह समझ नहीं पाते कि किस गाय को पालने पर कम लागत में ज्यादा मुनाफा होगा. अगर आप भी ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं तो थारपारकर नस्ल की गाय पालन आपके लिए सही विकल्प साबित हो सकता है.
रायबरेली के पशु विशेषज्ञ डॉ. इंद्रजीत वर्मा ने इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में बताया कि थारपारकर गाय पशुपालकों के लिए ‘दुधारू सोना’ है. इसकी खासियत है कि यह भीषण गर्मी व सर्दी को सहन करने की क्षमता रखती है. यह गाय अन्य नस्ल की गायों को तुलना में बेहद अलग है. उन्होंने बताया कि रायबरेली जिले में 300 से अधिक पशुपालक थारपारकर गाय को पालकर हर महीने अच्छी कमाई कर रहे है.
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डॉ. वर्मा बताते हैं कि थारपारकर गाय की नस्ल कर्नाटक की हैं. इस नस्ल की क्रास ब्रीडिंग के बाद अब राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर और जोधपुर में भी पालन किया जा रहा है, जो अपने दुग्ध उत्पादन के लिए जानी जाती है. दरअसल, इसकी उत्पत्ति मुख्य रूप से पाकिस्तान के सिंध प्रांत के जिले थारपारकर में हुई थी. अगर पहचान की बात करें तो थारपारकर गायों का मुंह लंबा और कान चौड़ा होता है. सींग मध्यम आकार के होते हैं. ये गायें सबसे गर्म स्थानों पर भी आसानी से रहने की क्षमता रखती हैं. एक थारपारकर गाय की कीमत 15-20 हजार से लेकर 40-45 हजार तक है. यह गाय एक दिन में 10-15 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है.
पशु विशेषज्ञ डॉ. इंद्रजीत वर्मा के मुताबिक, थारपारकर गायें अपनी दोहरी क्षमता के लिए जानी जाती हैं. ये न सिर्फ़ दूध के मामले में अच्छी हैं, बल्कि खेती में भी उपयोगी हैं. इसके अलावा, अगर थारपारकर गाय को हरा चारा कम मिले, तो भी इसकी दूध उत्पादकता में कमी नहीं आती. इस नस्ल की गाय एक ब्यांत में 1400 से 1600 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है. थारपारकर गायों का इम्यून सिस्टम भी अच्छा होता है, जिसकी वजह से ये बीमार नहीं पड़तीं और अगर बीमार पड़ भी जाती हैं, तो जल्दी ठीक हो जाती हैं. उन्होंने बताया कि यूपी सरकार की तरफ से इस खास नस्ल की गाय को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी भी दी जा रही है.
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