बात देसी घी के स्वाद की हो या फिर डिमांड की, सबसे पहले नाम आता है देसी गाय के दूध का. यही वजह है कि घी का काम करने वालों के बीच देसी गाय की डिमांड सबसे ज्यादा रहती है. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो इसकी सबसे बड़ी वजह है गाय के दूध का ए2 होना. ए2 दूध को देसी घी के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. इसमे से ए, डी, ई और के जैसे पोषक तत्व होते है. ये स्वाद में तो बेहतर होता ही है, साथ में पाचन क्रिया को भी अच्छा बनाता है. इसमे बीमारियों से लड़ने की भी क्षमता होती है.
गाय के दूध की एक और खास बात ये है कि इसके दूध से बने घी को अगर बिलोकर बनाया जाता है तो उसका महत्व और बढ़ जाता है. मध्य प्रदेश, यूपी, राजस्थान, गुजरात और बिहार में देसी नस्ल की गायों की सबसे ज्यादा संख्या है. मेरठ, यूपी में देश का सबसे बड़ा कैटल रिसर्च सेंटर बनाया गया है. देसी नस्ल की गायों की संख्या बढ़ाने के लिए आर्टिफिशल सीमेन टेक्नोलॉजी भी इस्तेमाल की जा रही है.
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गिर गाय की पहचान उसके लटके हुए कान, काली आंखें और फैले हुए सींग होते हैं. ये गुजरात की नस्ल है.
साहीवाल गाय की पहचान उसका लाल और भूरा रंगा होता है. ये मूल रूप से पाकिस्तान की नस्ल है.
राठी गाय भूरे, सफेद और लाल रंग की धब्बेदार होती है. इसका मूल स्थान राजस्थान है.
नागोरी गाय की थूथन सींग और खुर पूरी तरह से काले होते हैं. ये राजस्थान के जोधपुर की नस्ल है.
थारपारकर गाय के कान के अंदर की त्वचा का रंग पीला होता है और ये राजस्थान की नस्ल है.
हरियाणवी गाय ज्यादातर सफेद या भूरे रंग में पाई जाती है. इनका चेहरा संकरा और सींग बड़े होते हैं. नाम के मुताबिक ही ये हरियाणा की नस्ल है.
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कांकरेज गाय की पहचान इसके बड़े सींग हैं और ये ज्यादातर गुजरात में ही पाई जाती है.
बद्री गाय का बड़ा ही महत्व है. इसकी पहचान भी खासतौर पर रंग से ही होती है. ये भूरे, सफेद, लाल और काले रंग में होती है. इसका मूल निवास उत्तराखंड है.
पुंगनुर गाय कद में बहुत छोटी होती है. ये तीन से पांच लीटर तक दूध देती है. पीएम भी इसकी तारीफ कर चुके हैं. ये आंध्र प्रदेश में पाई जाती है.
लाल सिंधी गाय नाम के मुताबिक पूरी तरह से लाल रंग की होती है. इसकी नाक भी लाल रंग की ही होती है. ये नस्ल मूल रूप से पाकिस्तान की है.