मत्स्य पालन आज ग्रामीण इलाकों में रोजगार का एक मजबूत जरिया बनकर उभरा है. अब ऐसे कई किसान हैं, जिनके पास अपनी जमीन है और वे खेती के साथ-साथ उसी जमीन के कुछ हिस्से में तालाब बनवाकर मछली पालन कर रहे हैं. इससे उनकी आमदनी में इज़ाफा हो रहा है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बहुत से किसान तालाब तो खुदवा लेते हैं, मगर सही तरीके से मछली पालन की वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं अपनाते हैं. खासतौर पर तालाब की मिट्टी और पानी की जांच न करवाना सबसे बड़ी गलती साबित होती है. यही वजह है कि कई बार तालाब में मछलियों की बढ़ोतरी (ग्रोथ) उम्मीद के मुताबिक नहीं हो पाती.
मत्स्य वैज्ञानिकों के अनुसार, मछली पालन शुरू करने से पहले किसान को प्रयोगशाला में या खुद मिट्टी और पानी की जांच जरूर करवाना चाहिए क्योंकि कहा भी जाता है कि जिसने पानी और मिट्टी को समझ लिया, वही मत्स्य पालन में कमाल कर गया.
बिहार पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग की ओर से जारी जानकारी के अनुसार, किसान चाहें तो मिट्टी की प्रारंभिक जांच स्वयं अपने घर पर ही कर सकते हैं. इससे उन्हें यह अंदाजा हो जाता है कि तालाब निर्माण के लिए उनकी मिट्टी उपयुक्त है या नहीं. सबसे पहले किसान को तालाब की सतह से थोड़ी मिट्टी लेकर उसे हाथों से गीला कर गेंद के आकार में गूंथ लेना चाहिए. इसके बाद उस मिट्टी की गेंद को हवा में उछालकर फिर हाथ में पकड़ें. यदि गेंद गिरने पर टूटे नहीं और अपनी आकृति बनाए रखे, तो यह संकेत है कि मिट्टी अच्छी है और तालाब निर्माण के लिए उपयुक्त है.
वहीं, यदि मिट्टी की गेंद हवा में उछालते ही बिखर जाए, तो इसका अर्थ है कि उस मिट्टी में बालू या कंकड़ की मात्रा अधिक है. ऐसी मिट्टी आपस में नहीं चिपकती और तालाब निर्माण के लिए अनुपयुक्त मानी जाती है. ऐसी मिट्टी में बने तालाब में पानी लंबे समय तक बना नहीं रहता है, जिससे मछली पालन अधिक सफल नहीं होता है.
मत्स्य वैज्ञानिकों के अनुसार, किसान मिट्टी की जांच एक दूसरी विधि से भी कर सकते हैं. यदि वे अपनी भूमि में मछली पालन के लिए तालाब निर्माण करवाना चाहते हैं, तो सबसे पहले भूमि में लगभग 2 फीट लंबा, 2 फीट चौड़ा और 3 फीट गहरा एक गड्ढा खोदें. सुबह के समय उस गड्ढे में पानी भरें और शाम को देखें कि उसमें कितना पानी शेष बचा है. गड्ढे के पानी में आई कमी वाष्पीकरण और मिट्टी द्वारा पानी के अवशोषण के कारण होती है.
इसके बाद गड्ढे को फिर से पानी से भरें और चौड़े पत्तों वाले झाड़ से ढक दें. अगले दिन जलस्तर को फिर से मापें और देखें कि यदि गड्ढे में अधिकांश पानी शेष बचा है, तो उस भूखंड में तालाब निर्माण उपयुक्त है. सामान्यतः बलुई (रेतीली) मिट्टी में पानी तेजी से रिसता है, जबकि चिकनी या दोमट मिट्टी में पानी धीरे-धीरे रिसता है.
बिहार पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग की ओर से जारी सूचनाओं के अनुसार, मैदानी क्षेत्रों में जल का तापमान सामान्य मछली पालन के लिए 20°C से 35°C तक उपयुक्त माना जाता है. वहीं, तालाब के पानी का रंग उसमें उपस्थित प्लैंकटॉन (Plankton) की मात्रा को दर्शाता है. जिसमें हरा और भूरा रंग पानी की सर्वोत्तम स्थिति को दर्शाता है. यदि पानी रंगहीन दिखाई दे, तो इसका अर्थ है कि तालाब में प्लैंकटॉन की मात्रा बहुत कम है.
वहीं यदि पानी का रंग गहरा हरा दिखाई दे, तो यह तालाब में अल्गल ब्लूम (Algal Bloom) की स्थिति को दर्शाता है, जो मछलियों के लिए हानिकारक हो सकता है. यदि जल की पारदर्शिता 20 सेमी से कम है, तो यह बताता है कि तालाब में पोषक तत्वों की अधिकता है. इसके विपरीत, यदि पारदर्शिता 35 से 40 सेमी से अधिक है, तो यह जल की उत्पादकता में कमी को दर्शाता है.
यदि किसान मछली पालन के लिए तालाब निर्माण करवा रहे हैं, तो वह मिट्टी और पानी के नमूने प्रयोगशाला में जांच के लिए निम्नलिखित तरीके से एकत्र करें. जिसमें सबसे पहले मिट्टी का नमूना कम से कम ढाई सौ ग्राम लें और इसे 75 सेंटीमीटर गहराई से निकालें. वहीं, पानी का नमूना 1 लीटर मात्रा में, किसी साफ और अच्छी बोतल में भरें. पानी का नमूना उसी दिन लेना चाहिए जिस दिन इसे प्रयोगशाला भेजा जाएगा.