मछली पालन को जलकृषि भी कहा जाता है. इसी वजह से मछली पालते वक्त पानी को लेकर खास ख्याल रखा जाता है और अधिक सावधानियां भी बरती जाती हैं. पानी की तरफ से की गई जरा से भी अनदेखी मछली पालक को बड़ा नुकसान पहुंचाती है. मछली में कई तरह की बीमारी हो जाती हैं. पानी में कई ऐसे जीव-जन्तु पैदा हो जाते हैं जो मछलियों को नुकसान पहुंचाते हैं. पानी में प्रदूषण बढ़ने से ऑक्सीजन की कमी भी होने लगती है.
नदी-समुंद्र में मछलियां खुद से तो पलती ही हैं, लेकिन इसके अलावा तीन और तरीके से मछलियों को पालकर अच्छी कमाई की जा सकती है. जाल लगाकर, घर-खेत में टैंक बनाकर और तालाब खोदकर. सबसे बेहतर तालाब में मछली पालन माना गया है. कम खर्च में ज्यादा मछलियां पल जाती हैं. तालाब में मछलियों की देखभाल भी अच्छी तरह से हो जाती है. और अगर देखभाल सही तरीके से की जाए तो मछलियों में बीमारी भी कम होती है.
मछली पालक एमडी खान का कहना है कि मछली पालन के लिए तैयार किए गए टैंक या तालाब खुले में ऐसी जगह होने चाहिए जहां सूरज की सीधी धूप पड़ती हो. पानी में सीप और घोंघे आदि जीव-जन्तु न पनपने पाएं. मछलियों को मांसाहारी जीव-जन्तु से बचाने के लिए जाल का इस्तेतमाल करें. एक्सपर्ट की सलाह पर पानी में दवा का छिड़काव करते रहें.
मछली पालक शरीफ की मानें तो गर्मी और सर्दी में तालाब और टैंक के पानी का खासतौर पर ख्याल रखा जाता है. अगर सर्दी है तो तालाब और टैंक के पानी को ज्यादा ठंडा न होने दें. सुबह-शाम मोटर चलाकर ताजा पानी मिलाकर तालाब के पानी को सामान्य कर दें. इसी तरह से गर्मी में ताजा पानी चलाकर उसकी गर्महाट को कम कर दें. इसके लिए तालाब के पास पानी की बड़ी मोटर का इंतजाम करके रखें.
पानी में प्रदूषण के चलते ऑक्सीजन की मात्रा कम होना एक सामान्य बात है. लेकिन बड़ी बात यह है कि इसके चलते मछली पालक को कई बार बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. ऑक्सीजन की कमी के चलते मछलियां मरने लगती हैं. इसलिए समय-समय पर उपकरण की मदद से पानी का ऑक्सीजन और पीएच लेवल जांच लेना चाहिए. अगर ऑक्सीजन की कमी ज्यादा है तो मशीनों की मदद से ऑक्सीजन पानी में छोड़ी जानी चाहिए.