FMD: गाय-भैंस के बछड़ों में दिखें खुरपका-मुंहपका के लक्षण, तो बाड़े में तुरंत शुरू कर दें ये काम

FMD: गाय-भैंस के बछड़ों में दिखें खुरपका-मुंहपका के लक्षण, तो बाड़े में तुरंत शुरू कर दें ये काम

FMD Disease पशुओं की छोटी से छोटी बीमारी भी सबसे पहले दूध उत्पादन पर असर डालती है. जिसका सीधा नुकसान पशुपालक को होता है. अगर ये बीमारी खुरपका-मुंहपका (FMD) जैसी बड़ी हो तो ये नुकसान डबल हो जाता है. इसके चलते पशु की मौत का खतरा भी बढ़ जाता है. बछड़ों में भी ये बीमारी होने का खतरा बना रहता है. 

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नासि‍र हुसैन
  • NEW DELHI,
  • Jun 16, 2025,
  • Updated Jun 16, 2025, 4:16 PM IST

FMD Disease खुरपका-मुंहपका (FMD) पशुओं की जानलेवा बीमारी है. ये उन पशुओं में होती है जिनके खुर के बीच में जगह (गैप) होती है. ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ बड़ी गाय-भैंस में ही होती है. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो गाय-भैंस के बछड़ों को भी ये बीमारी हो जाती है. इसलिए जैसे ही बछड़ों में एफएमडी के लक्षण दिखाई दें तो उनकी देखभाल में बदलाव शुरू कर दें. यहां तक कि पशुओं के बाड़े की भी खास तरह से साफ-सफाई शुरू कर दें. एक्सपर्ट का ये भी कहना है कि एफएमडी बछड़ों में कम ही होती है. लेकिन ये भी सच है कि एक बार होने पर ये अपना असर ठीक वैसे ही दिखाती है जैसे बड़े पशुओं में देखने को मिलता है. 

इसलिए बछड़ों को एफएमडी से बचाने के लिए शेड में ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. एक्सपर्ट के मुताबिक एफएमडी ऐसी बीमारी है जो पशुओं को किसी भी मौसम में हो सकती है. थोड़ी सी देखभाल से बछड़ों को एफएमडी जैसी खतरनाक बीमारी से बचाया जा सकता है. इसके लिए करना सिर्फ ये होगा कि डाक्टर की सलाह पर शेड में कुछ खास इंतजाम करने होंगे. साथ ही बछड़ों के व्यवहार पर भी नजर रखनी होगी. 

बछड़ों में हॉर्ट पर असर करती है FMD

एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि एफएमडी अगर बछड़ों में होती है तो वो उनके हॉर्ट को भी प्रभावित करती है. ऐसा होने पर बछड़ों की मौत तक हो जाती है. इसलिए जहां भी एफएमडी संक्रमण फैला हो या फैलने की आशंका हो तो वहां बछड़ों की खास देखभाल करनी चाहिए. अगर बछड़ों में लक्षण दिखाई दें तो बछड़ों के शेड में भी दवाई का छिड़काव जरूरी हो जाता है. संक्रमण फैलते ही तेज बुखार के साथ मुंह और पैर में छाले हो जाते हैं. ऐसे कुछ लक्षण दिखाई देने पर फौरन ही शेड में ये जरूरत काम शुरू कर देने चाहिए.

  • शेड को 0.1 फीसद पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से धोना चाहिए. 
  • घावों पर बोरोग्लिसरीन लगानी चाहिए. 
  • पैरों को फिनाइल के घोल से धोना चाहिए.
  • संक्रमित बछड़े को स्वस्थ बछड़ों से अलग कर दें. 
  • बछड़ों का टीकाकरण एक महीने, तीन महीने और छह महीने की उम्र में कराना चाहिए.
  • हर छह महीने पर वैक्सीनेशन कराते रहना चाहिए. 
  • पेट के कीड़े मारने के लिए पाइपरजीन देना चाहिए. 
  • पशु शेड को साफ रखने से बाहरी कीड़े अंदर नहीं आते हैं. 
  • लेमनग्रास, तुलसी और निर्गुंडी जैसे फीड को शेड में लटकाना चाहिए.

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