इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और अमूल के पूर्व एमडी डॉ. आरएस सोढ़ी का कहना है, ‘बाजार में एनिमल प्रोडक्ट जैसे, दूध, घी, अंडा-चिकन, मीट आदि की डिमांड बढ़ रही है. आने वक्त भी इसी बाजार का है. आने वाले सात साल इसी इंडस्ट्री के हैं. नौकरियों के साथ-साथ यहां कारोबार करने के भी बहुत मौके मिलेंगे. जब तक खाने वाले पेट बढ़ेंगे (जनसंख्या) तब तक ये इंडस्ट्री भी तरक्की करेगी’. एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि देश की चारा इंडस्ट्री भी इसी से जुड़ी हुई है. अगर देश में एनिमल प्रोडक्ट के लिए पशुओं की संख्या बढ़ेगी तो उनके लिए फीड और फोडर की डिमांड भी बढ़ेगी.
ऐसे में हरा चारा अजोला की खेती बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है. क्योंकि कम होती जमीन के चलते लाइव स्टॉक सेक्टर में हरे और सूखे चारे की लगातार कमी हो रही है. बाजार में महंगा भी होता जा रहा है. ऐसे में छोटे-बड़े सभी पशुओं के लिए गुणवत्ता वाले चारे की जरूरत है. जबकि अजोला उत्पादन का तरीका अलग है. इसके लिए कोई बहुत ज्यादा जमीन की जरूरत नहीं है.
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जानें क्या है हरा चारा अजोला
हरा चारा अजोला पानी की सतह पर होता है. जरूरी नहीं कि अजोला तालाब में हो, पानी की टंकी में भी इसका उत्पादन किया जा सकता है. चारा एक्सपर्ट की मानें तो अजोला में बड़ी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है. इसके अलावा प्रोटीन, जरूरी एमिनो अम्ल, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी 12 और बीटा केरोटिन), बढ़वार के लिए जरूरी कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटाश, लोहा, तांबा, मैग्निशियम भी बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं. अजोला में 25-30 फीसद प्रोटीन, 10-15 फीसद खनिज, 7-10 फीसद एमिनो अम्ल, जैव सक्रिय पदार्थ और जैव पोलिमर्स आदि पाये जाते हैं. अजोला में कार्बोहाइड्रेट और नमी की मात्रा बहुत कम होती है. अजोला का साइज और बनावट इसे अत्यंत पौष्टिक और फायदेमंद पशु आहार बनाती है. इसे पशुओं द्वारा आसानी से पचाया जा सकता है, क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा ज्यादा और लिग्निन की मात्रा कम होती है. पशु बहुत ही जल्दी इसके आदि हो जाते हैं. सबसे खास बात ये कि अजोला के उत्पादन का तरीका आसान और सस्ता है.
ऐसे करें अजोला का उत्पादन
- सबसे पहले करीब 10 से 15 किलोग्राम छनी हुई उपजाऊ मिट्टी गड्ढे में सिलपोलिन शीट पर फैला दें. दो किलो गोबर और 30 ग्राम सुपर फॉस्फेट 10 लीटर पानी में घोल बनाकर गड्ढे में डाल दें. इसमें पानी डालकर, पानी का लेवल 10 सेंमी तक कर दें. और 500 ग्राम से एक किलोग्राम तक अजोला कल्चर गड्ढे के पानी में डाल दें.
- अजोला चारा बहुत तेजी से विकसित होता है और 10 से 15 दिन के अंदर पूरे गड्ढे में फैल जाता है. इसके बाद 400-600 ग्राम अजोला हर रोज गड्ढ़े से बाहर निकाला जा सकता है.
- प्रत्येक पांच दिन में एक बार 20 ग्राम सुपर फॉस्फेट और करीब एक किलो गोबर गड्ढे में डालने से अजोला तेजी से विकसित होता है.
- ऊपर बताए तरीके अपनाने से आप औसत हर रोज 500 ग्राम अजोला प्रति गड्ढा उत्पादन लिया जा सकता है.
- अजोला में खनिज की मात्रा को और बढ़ाया जा सकता है. इसके लिए जरूरी है कि मैग्नीशियम, लोहा, तांबा, सल्फर आदि को मिलाकर समय-समय पर उचित मात्रा में गड्ढे में मिलाते रहना चाहिए.
- सिलपौलिन शीट का इस्तेमाल करने से अजोला की पैदावार के दौरान कीट और बीमारियों का आक्रमण बहुत कम पाया जाता है. अजोला में कीट और बीमारियां होने पर यूरोडान 10 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से इस्तेमाल किया जा सकता है. इसी तरह अजोला को वैभेस्टिन घोल के साथ मिलाकर डालने से फफूंद को भी फैलने से रोका जा सकता है.
- अगर अजोला पर कीट का हमला हो जाए तो पूरी क्यारी को साफ कर देना चाहिए और नये सिरे से नई जगह पर क्यारी बनानी चाहिए.
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अजोला खिलाने का ये है सही तरीका
- अजोला से भरी ट्रे को एक बाल्टी के उपर रखकर पानी से अच्छे से धोना चाहिए. गोबर का गंध निकलनी चाहिए. धोने से छोटे-छोटे पौधे भी निकाल देने चाहिए. बाल्टी में जमा हुए पानी और छोटे-छोटे पौधों को दोबारा से गड्ढे में दबा देना चाहिए.
- ताजी अजोला को पशु दाने के साथ 1:1 के अनुपात में मिलाकर पशु को खिलाना चाहिए.
- ताजा अजोला पोल्ट्री (लेयर और ब्रॉयलर) को भी खिलाया जा सकता है.
- अजोला को पशुओं के सामान्य दाने के साथ 1:1 अनुपात में मिलाकर एक सप्ताह तक देने से दूध उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है.
- गर्मियों में दाने के साथ अजोला मिलाने से दूध में बढ़ोतरी के साथ ही पशुओं की हैल्थ में भी बदलाव आता है.
- गांव में, शहरी घर या पशुओं के बाड़े में कहीं भी अजोला का उत्पादन किया जा सकता है.
- अजोला पशुओं के साथ-साथ मुर्गियों के लिए भी उत्तम आहार है.