गधे की पहचान धोबी का बोझा ढ़ोने की है. तो वहीं देश की बड़ी आबादी मूर्ख का पर्यायवाची गधाें को मानती है, जिसके लिए जुमले, ताने, गुस्सा और किस्से, कहानी जिम्मेदार हैं. मौजूदा सच ये है कि देश-विदेश में गधों की खास डिमांड है, जिसमें दूध के लिए पाले जाने वाला गधी की खूब मांग है. चौंकिये, मत ये हलारी नस्ल के गधों की बात हो रही है. दूध के लिए हलारी गधी की मांग में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. लेकिन, दूसरी तरफ हलारी नस्ल के गधे देश में विलुप्त होने की कगार में हैं.
केन्द्रीय पशुपालन विभाग की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हलारी ब्रीड के सिर्फ 439 गधे बचे हैं. इसी के चलते गधी का कुनबा बढ़ाने में परेशानियां आ रही हैं. वहीं दूध के लिए हलारी गधी बचाने की पूरी कोशिश हो रही है. नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज (एनबीएजीआर), हरियाणा भी इस कोशिश में लगा हुआ है.
मार्च, 2022 में गुजरात के एक एनजीओ सहजीवन ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था. यह एनजीओ पशुओं की खास ब्रीड बचाने पर काम करता है. उसमे से एक हलारी गधा भी है. इसी कार्यक्रम में केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परुषोत्तम रूपाला भी शामिल हुए थे. कार्यक्रम के दौरान रूपाला ने बताया था कि साल 2015 में हलारी गधों की संख्या 1200 दर्ज की गई थी. लेकिन साल 2020 में यह संख्या घटकर 439 ही रह गई. अब हलारी को बचाने के लिए कई स्तर पर काम हो रहा है.
देश में हलारी समुदाय के पास ही हलारी गधे बचे हुए हैं. असल में पशुओं को माल कहा जाता है और जो पशुओं के मालिक हैं उन्हें धारी कहा गया है. इसी से मिलकर मालधारी बना है. गुजरात के राजकोट, जामनगर और द्वारका में मालधारी समुदाय रहता है. यह यूपी और राजस्थान से गए लोग हैं. छोटे पशुओं को पालकर यह अपना जीवन जीते हैं. साल के 7 से 8 महीने यह लोग पशुओं को चराने के लिए घर से बाहर रहते हैं. बच्चों के शादी-ब्याह और जन्मअष्टमी मनाने के लिए यह लोग मानसून के मौसम में घरों को लौटते हैं.
हलारी गधी के दूध का बाजार वैश्विक है. इसके दूध को स्कीन के लिए बेहतर माना जाता है. इस वजह से इसके दूध से कॉस्मेटिक समेत साबुन का निर्माण किया जाता है. जिसकी मांग खाड़ी देशों यूरोप के कई देशों में है. जहां इसके दूध से बने साबुनों को बेहतर दाम मिलता है.
एनबीएजीआर के मुताबिक हलारी गधे आमतौर पर सफेद रंग के होते हैं. मुंह और नाक के पास की जगह काली होती है. इनके खुर भी काले होते हैं. माथा ज्यादातर उभरा होता है. हलारी गधे का शरीर मजबूत और दूसरे गधों के मुकाबले आकार में बड़ा होता है. हलारी गधे की औसत ऊंचाई 108 सेमी और गधी की 107 सेमी होती है. गधे की औसत लंबाई 117 सेमी और गधी 115 सेमी की होती है. एक दिन में यह गधे 35 से 40 किमी तक का सफर तय कर लेते हैं. गाड़ी में जोतकर भी इनके साथ सफर किया जाता है.
एनबीएजीआर, करनाल, हरियाणा के मुताबिक देश में गधों की तीन खास ब्रीड रजिस्टर्ड हैं जिसमे गुजरात की दो कच्छी और हलारी हैं. वहीं हिमाचल की स्पीती ब्रीड है. बड़ी संख्या में ग्रे कलर के गधे यूपी में भी पाए जाते हैं. लेकिन यह नस्ल रजिस्टार्ड नहीं है. अच्छी नस्ल के गधों के मामले में गुजरात अव्वल है. एक्सपर्ट के मुताबिक दूध की डिमांड के चलते अब गधी की मांग ज्यादा होने लगी है. अगर दूध हलारी गधी का हो तो फिर कहने ही क्या. लेकिन हलारी नस्ल के गधे ही कम बचे हैं तो गधी भी कम हो रही हैं.