बाजार में ऑर्गनिक दूध-दही और घी-मक्खन ही नहीं ऑर्गनिक मीट की भी डिमांड बढ़ रही है. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो दूध और मीट किसी दवाई से ऑर्गनिक नहीं बनेंगे. इसके लिए पशुओं की बीमारी में एंटीबायोटिक्स दवाई का इस्तेमाल कम करने के साथ ही उन्हें सभी तरह का ऑर्गनिक चारा खिलाया जाए. चारा हरा हो या सूखा या फिर मिनरल मिक्चर, सभी ऑर्गनिक होना चाहिए. ऑर्गनिक दूध या मीट का सर्टिफिकेट भी तभी मिलता है जब जांच में सब कुछ सही पाया जाए. इसी को देखते हुए केन्द्र सरकार परंपरागत कृषि विकास योजना की उपयोजना भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) को बढ़ावा दे रही है.
अब अगर आपको 24 घंटे ऑर्गनिक चारा चाहिए तो इसके लिए आप बीपीकेपी से संपर्क कर सकते हैं. खास बात ये है कि आप बीपीकेपी की मदद से गाय के गोबर और मूत्र से चारा फसलों के लिए नेचुरल खाद तैयार कर सकेंगे. मतलब दूध तो दूध अब गायों के लिए ऑर्गनिक हरा चारा गायों के गोबर और मूत्र से ही उगाया जाएगा.
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कृषि मंत्रालय से जुड़े कई संस्थानों में किसानों को ऑर्गेनिक चारा उगाने के बारे में बताया जा रहा है. इतना ही नहीं बकरी और गाय रिसर्च सेंटर में खुद संस्थान भी खेतों में ऑर्गेनिक चारा उगा रहे हैं. ऑर्गनिक और नेचुरल फार्मिंग के लिए जीवामृत, नीमास्त्र और बीजामृत बनाया जा रहा है. चारा एक्सपर्ट साइंटिस्ट डॉ. मोहम्मद आरिफ ने किसान तक को बताया कि जीवामृत बनाने के लिए गुड़, बेसन और देशी गाय के गोबर-मूत्र में मिट्टी मिलाकर बनाया जा रहा है. यह सभी चीज मिलकर मिट्टी में पहले से मौजूद फ्रेंडली बैक्टीरिया को और बढ़ा देते हैं. इसी का फायदा चारे को मिलता है.
डॉ. मोहम्मद आरिफ का कहना है कि बकरे-बकरियों और भैंस को खासतौर पर ऑर्गेनिक चारा खिलाने का बड़ा फायदा है. जब मीट एक्सपोर्ट होता है तो उससे पहले हैदराबाद की एक लैब में मीट की जांच होती है. जांच में यह देखा जाता है कि मीट में किसी तरह के नुकसानदायक पेस्टीसाइट तो नहीं है. और यह सिर्फ बकरे के मीट ही नहीं बीफ के मामले में भी ऐसा ही होता है. रिर्पोट पॉजिटिव आने पर मीट के कंसाइनमेंट को रोक दिया जाता है. इससे कारोबारी को बड़ा नुकसान होता है.
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केन्द्र सरकार ने भारतीय प्रकतिक कृषि पद्वति (बीपीकेपी) उपयोजना के तहत आठ राज्यों छत्तीसगढ़, करेल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, आंध्रा प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु में बीपीकेपी केन्द्र बनाए गए हैं. ये सभी केन्द्र करीब चार लाख हेक्टेयर जमीन पर होने वाली नेचुरल फार्मिंग को कवर कर रहे हैं.