किसान नेता राकेश टिकैत के संगठन भारतीय किसान यूनियन ने देश के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है. ये पत्र BKU ने GM धान (जेनेटिकली मोडिफाइड) पर रोक लगाने को लेकर लिखा है. उन्होंने पत्र में लिखा है कि भारतीय किसान यूनियन कई दशकों से जीएम फसलों के खतरों और दुष्प्रभावों को लेकर आवाज लगा रहा है. कृषि मंत्री को धन्यवाद देते हुए लिखा कि जीएम फसलों के खिलाफ आपने बार-बार आवाज़ उठाई है. हालांकि, आप इस बात में गलत हैं कि जीएम फसलों के कारण पैदावार बढ़ती है. चाहे आप जीएम सरसों का उदाहरण देख लें, जिससे अधिक पैदावार वाली गैर जीएम किस्में भारत में आज भी हैं, या फिर कपास और सोयाबीन देख लें, जिससे अधिक पैदावार आम किस्में दे रही हैं.
BKU ने पत्र में लिखा है कि हम आपके जीन एडिटेड धान की घोषणा का विरोध करते हैं. अगर जरूरत पड़ी तो इसका सड़कों और खेतों में भी विरोध करेंगे. आपको गुमराह किया गया है कि जीन एडिटिंग फसलें सुरक्षित हैं. विश्व भर की देशों में जीन एडिटेड फसलों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो रहा है कि जीन एडिटिंग जीएम तकनीक एक नया अवतार है और उसमें भी वही खतरे हैं.
1. जीन एडिटिंग में भी जीएम फसलों की तरह बाहर के जीन का प्रयोग होता है. जीन एडिटेड धान में भी यही हुआ है. इसमें बाहरी वायरस और बैक्टीरिया के जीन का प्रयोग किया गया है. हम यह कैसे मान लें कि उनका कोई प्रभाव नही पढ़ रहा हो और उसके कण पूरी तरह से हटा दिए गए हैं.
2. जीन एडिटिंग में भी देसी बीज किस्मों में नुकसान होने का खतरा है, जैसे बीटी कपास में भी हुआ है. जीन एडिटेड धान आसानी से देसी जंगली धान कि किस्मों को प्रदूषित कर सकते हैं, जिससे हमारी धान की जैव विविधता को खतरा रहेगा. ऐसा ही नुकसान भारत की कपास किस्मों पर जीएम कपास के कारण हो चुका है.
3. जीन एडिटिंग फसलों में भी जीएम फसलों की तरह जीन में दुष्परिणाम और गलत जगह बदलाव देखने को मिलते हैं. दुनिया भर में आ रहे परिणाम बताते कि जीन एडिटिंग एक सटीक तकनीक नहीं है. इसके कारण अनचाहे परिणाम और गलत जगह बदलाव भी देखने को मिलते हैं.
4. चावल को भारतीय संस्कृति में अक्षत (जो टूटा हुआ न हो) के रूप में जाना जाता है और कई रीति-रिवाजों में वैसे ही प्रयोग में होता है. परन्तु जीन एडिटेड चावल का जीन तोड़ा हुआ है. यह क्षतिग्रस्त है और यह हमारे रीति-रिवाजों में उपयोग के लिए कारगर नहीं रहेगा.
जीन एडिटेड धान को सूखे, खारी स्थितियों, अधिक पैदावार आदि के लिए लाया जा रहा है. लेकिन हमारे पास ऐसी अनेक देसी चावल की किस्में हैं जो यह सब गुण दे सकते हैं. आपको और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) को इन किस्मों को बढ़ावा देना चाहिए. आप इसमें बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े सवालों के बारे में अवगत हैं. यह सभी सवाल स्वतंत्र, रिटायर्ड वैज्ञानिकों द्वारा उठाए जा चुके हैं.
अगर आपको और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) के वैज्ञानिकों को जीन एडिटेड तकनीक पर इतना ही भरोसा है, तो कृप्या उसकी जैव सुरक्षा का पूरा ब्यौरा और दस्तावेज को सार्वजनिक करें. पत्र में कुछ शोध का हवाला देते हुए BKU ने लिखा कि कई महत्वपूर्ण परीक्षण भी नहीं होते हैं, जो होते हैं उनमें भी अक्सर गलतियां पाई जाती हैं, जैसा डॉ पुष्पा भार्गव ने और सुप्रीम कोर्ट की टेक्निकल एक्सपर्ट समिति ने जीएम फसलों के अध्ययन में पाया था.
BKU ने अपने पत्र में लिखा कि जीन एडिटेडधान की जैव सुरक्षा से जुड़े दस्तावेज़ जनता से साझा कराई जाए, जैसा हमने देखा असली परिणाम तभी सामने आते हैं. SDN&1 और SDN&2 जीन एडिटिंग तकनीक को भी जीएम तकनीक रोकने में शामिल किया जाए और जीएम तकनीक से उगाई गई फसलों के कमियों को सुधारा जाए. उन्होंने लिखा कि हमें आशा है कि जीएम फसलों के जैसे जीन एडिटेड फसलों में भी कृषि मंत्री होने के नाते आप किसान हितैषी फैसला लेंगे.
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