दुनिया की छोटी गायों की नस्लों में केरल की वेचुर गाय भी शामिल है. वेचुर की ऊंचाई 3 से 4 फीट तक होती है. वेचुर मुख्य रूप से दक्षिण केरल के कोट्टायम जिले के वैकम के पास वेम्बनाड झील के किनारे एक छोटे से स्थान वेचुर की नस्ल है. इस क्षेत्र में उपलब्ध अन्य बौने मवेशियों की तुलना में वेचुर मवेशियों में दूध का उत्पादन अपेक्षाकृत अधिक होता है. वहीं, इस नस्ल के मवेशी ज्यादातर केरल के अलपुझा, अलेप्पी, कोट्टायम, पथानामथिट्टा और कासरगोड में पाए जाते हैं. इस नस्ल के मवेशी रोजाना दो से तीन लीटर तक दूध देते हैं. एनडीडीबी (राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड) के अनुसार, यह एक ब्यांत में औसतन 561 लीटर दूध देती है. इसके अलावा वेचुर नस्ल के मवेशी हल्के लाल, काले या भूरे और सफेद रंग के होते हैं. गाय की इस नस्ल का इस्तेमाल ना सिर्फ दूध के लिए बल्कि खाद के लिए भी किया जाता है.
वेचुर गाय का दूध बहुत अच्छी गुणवत्ता का होता है. केरल में पारंपरिक रूप से इसका इस्तेमाल दवाइयां बनाने के लिए किया जाता है. क्योंकि इस नस्ल के दूध में बहुत सारे औषधीय गुण होते हैं. वेचुर गाय को अन्य गायों की नस्लों की तुलना में बहुत कम खर्च में पालि जा सकती है. क्योंकि यह बहुत कम चारे पर बड़ी होती है. इन गायों के दूध में 4.5 से 6 प्रतिशत वसा होती है. पहली बार ब्याने के समय इन गायों की उम्र तीन साल होती है. क्योंकि ये कम दूध देती हैं, इसलिए दूध का कारोबार करने वाले लोग इन्हें कम ही पालते हैं.
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आमतौर पर गायों की कीमत उनकी उम्र, नस्ल, स्थान और दूध देने की क्षमता के आधार पर तय की जाती है. शुद्ध वेचुर गायों की बाजार कीमत 50 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक होती है. कुछ राज्यों में इस गाय की कीमत कम या ज्यादा भी हो सकती है.
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जिस तरह वेचुर गाय के दूध का इस्तेमाल दवाइयां बनाने और अलग-अलग चीजों में किया जाता है. ठीक उसी तरह इस गाय के गोबर का इस्तेमाल खाद बनाने में किया जाता है. यह पौधों को अधिक पोषण देता है और उसे बढ़ाने में मदद करता है. यही कारण है कि लोग इसके गोबर को फेंकते नहीं हैं और इसका इस्तेमाल अपने खेतों में करते हैं.
वेचुर गाय की देखभाल के लिए आपको एक साफ शेड की जरूरत होती है. शेड की वजह से पशु को गर्मी, सर्दी या बारिश से कोई परेशानी नहीं होगी. इसके अलावा आपको शेड में पशु के लिए साफ पानी और साफ हवा की जरूरत होगी. इसके अलावा वेचुर कम चारा खाता है, इसलिए उसे सही तरीके से संतुलित आहार दें. अपने पशु को फलीदार चारा देने से पहले उसमें भूसा और दूसरा चारा जरूर मिला दें.