देश में आठवां पोषण माह मनाया जा रहा है. कुछ दिन पहले पीएम नरेन्द्र मोदी ने मध्य प्रदेश से इसकी शुरुआत की थी. केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्रालय भी पशु पोषण को लेकर जागरुकता अभियान चला रहा है. पशुपालकों को साइलेज के फायदे गिनाए जा रहे हैं. मकसद है प्रति पशु दूध उत्पादन को बढ़ाना. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो देश में 30 करोड़ पशु हैं, लेकिन दूध सिर्फ 10 करोड़ ही देते हैं. इसलिए ऐसे चारे की जरूरत है जो पोषण से भरपूर हो.
यही वजह है कि देशभर में साइलेज को बढ़ावा दिया जा रहा है. साइलेज के फायदे गिनाए जा रहे हैं. सर्दी-गर्मी हो या सूखा हर वक्त साइलेज के रूप में हरा चारा मिल जाता है. कम लागत में हरा चारा लम्बे वक्त के लिए स्टोर हो जाता है. और सूखे चारे के मुकाबले साइलेज खिलाने से पशु 25 से 30 फीसद तक ज्यादा दूध देते हैं.
फोडर एक्सपर्ट का कहना है कि बेशक हम साइलेज और हे घर पर तैयार कर सकते हैं, लेकिन उसके लिए बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है. इसलिए बिना किसी एक्सपर्ट की सलाह और ट्रेनिंग के तैयार किए गए साइलेज-हे पशुओं को खिलाने की कोशिश ना करें. साइलेज बनाने के लिए सबसे पहले उस हरे चारे की कटाई सुबह के वक्त करें जिसका हम साइलेज बनाने जा रहे हैं. ऐसा करने से हमे दिन का वक्त उस चारे को सुखाने के लिए मिल जाएगा. क्योंकि साइलेज बनाने से पहले चारे के पत्तों को सुखाना जरूरी है.
चारे को कभी भी जमीन पर सीधे ना सुखाएं. लोहे का कोई स्टैंड या जाली पर रखकर सुखाएं. चारे के छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर लटका कर भी चारे को सुखाया जा सकता है. क्योंकि जमीन पर चारा डालने से उसमे फंगस लगने के चांस ज्यादा रहते हैं. कुल मिलाकर करना ये है कि जब चारे में 15 से 18 फीसद नमी रह जाए तभी उसे साइलेज की प्रक्रिया में शामिल करें. और एक बात का खास ख्याल रखें कि किसी भी हाल में पशुओं को फंगस लगा चारा खाने में ना दें.
एक्सपर्ट का कहना है कि साइलेज बनाने के लिए फसल का चुनाव करना भी बेहद जरूरी है. क्योंकि साइलेज बनाने के दौरान सबसे बड़ी कोशिश यही होनी चाहिए कि चारे में फंगस नहीं लगे. इसके लिए करना ये चाहिए कि साइलेज बनाने के लिए हमेशा पतले तने वाली चारे की फसल का चुनाव करें. फसल को पकने से पहले ही काट लें. फसल के तने को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें. उसके बाद उन्हें ऊपर बताए गए तरीके के मुताबिक सुखा लें. पतले तने वाली फसल का चुनाव करने से फायदा ये होता है कि वो जल्दी सूख जाती है. तने में नमी का पता इस तरह से भी लगाया जा सकता है कि तने को हाथ से तोड़कर देख लें.
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