गाय-भैंस हो या भेड़-बकरी, किसी के भी इलाज में बरती गई लापरवाही जहां पशुपालक की लागत को बढ़ा देती है, वहीं पशु की जान भी जोखिम में आ जाती है. हालांकि शुरुआत में होती ये छोटी सी परेशानी है, लेकिन जाने-अनजाने हुई लापरवाही के चलते ये बड़ी बीमारी बन जाती हैं. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो इसमे कुछ बीमारी ऐसी होती हैं जिनका इलाज सिर्फ पशु चिकित्सक यानि डॉक्टर ही कर सकता है, लेकिन कुछ ऐसी भी हैं जो घर पर ही बहुत सस्ते में ठीक की जा सकती हैं.
कुछ बीमारियों के उपाय ऐसे हैं जिन्हें अगर रोजमर्रा की दिनचर्या में शामिल कर लिए तो कई बीमारी गाय के पास फटकेंगी भी नहीं. एक्सपर्ट का कहना है कि गाय को होने वाली आम बीमारियां पशुपालक की लागत को बढ़ा देती हैं. क्योंकि गाय की मामूली सी बीमारी का असर भी सीधे उसके दूध उत्पादन को प्रभावित करता है.
गाय के जूं और किलनी होने के दौरान नीम के पत्तों को पानी में उबालकर गाय के शरीर पर स्प्रे करें. या फिर एक कपड़े को नीम के पानी में डालकर कपड़े से पशु को धोना चाहिए. इस उपाय को कई दिन लगातार करने से गाय की जूं और किलनी की परेशानी दूर हो जाती है.
किसी भी पशु को निमोनिया बहुत परेशान करता है. डॉक्टनरों की मानें तो पानी में बहुत ज्यालदा देर तक भीगने की वजह से निमोनिया होता है. निमोनिया होने पर गाय का तापमान बढ़ जाता है, सांस लेने में दिक्कत होती है और उसकी नाक बहने लगती है. गाय में ये लक्षण दिखने पर उबलते पानी में तारपीन का तेल डालकर उसकी भांप पशु को सुंघानी चाहिए. इसके साथ ही पशु के पंजार में सरसों के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करनी चाहिए. गाय को सर्दी के मौसम में निमोनिया से बचाने के लिए उसके शेड में गर्मी करनी चाहिए.
गाय के प्रसव के बाद जेर पांच घंटे में गिर जानी चाहिए. अगर ऐसा न हो तो गाय दूध भी नहीं देती. अगर ऐसा हो तो फौरन ही पशुओं के डॉक्ट र से सलाह लेकर जेर से जुड़े उपाय अपनाने चाहिए. इसके साथ ही पशु के पिछले भाग को गर्म पानी से धोना चाहिए. और ख्यासल रहे कि किसी भी हाल में जेर को ना तो हाथ लगाएं और ना ही जेर को खींचने की कोशिश करनी चाहिए.
चोट या घाव में कीड़े पड़ने से कोई भी पशु बहुत ज्याहदा परेशानी महसूस करता है. जब भी पशु के शरीर पर कोई भी चोट या घाव देखें तो फौरन ही उसकी गर्म पानी में फिनाइल या पोटाश डालकर सफाई करनी चाहिए. घाव में अगर कीड़े हों तो एक पट्टी को तारपीन के तेल में भिगोकर पशु के उस हिस्सेट पर बांध देनी चाहिए. मुंह के घावों को हमेशा फिटकरी के पानी से धोना चाहिए. लेकिन साथ ही साथ घाव से जुड़े उपाय जानने के लिए डॉक्टार से से संपर्क जरूर करना चाहिए.
योनि में इंफेक्श न तब बनता है जब बच्चाु देने के बाद गाय की जेर आधी शरीर के अंदर और आधी बाहर लटक जाती है. ऐसा होनेपर गाय के शरीर का तापमान बढ़ जाता है और योनि मार्ग से बदबू आने लगती है. इसके साथ ही पशु की योनि से तरल पदार्थ रिसने लगता है. इस स्थिति में पशु चिकित्सक की निगरानी में गाय के उस हिस्सेस को गुनगुने पानी में डिटॉल और पोटाश मिलाकर साफ करना चाहिए.
गाय को दस्तफ और मरोड़ होने पर वो पतला गोबर करने लगती है. डॉक्टिरों का कहना है कि किसी भी पशु को इस तरह की परेशानी तब होती है जब पशु के पेट में ठंड लग जाए. अगर ऐसा होता है तो इस दौरान गाय को हल्का आहार देना चाहिए जैसे चावल का माड़, उबला हुआ दूध, बेल का गुदा आदि. वहीं साथ ही बछड़े या बछड़ी को दूध कम पिलाना चाहिए.
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