Bihar News: सोनपुर मेले में अब थिएटर बना चर्चा का केंद्र, मवेशियों की आवक हुई कम

Bihar News: सोनपुर मेले में अब थिएटर बना चर्चा का केंद्र, मवेशियों की आवक हुई कम

एशिया का सबसे बड़ा सोनपुर पशु मेला समय के साथ काफी बदल चुका है. कभी पशुओं को लेकर अपनी पहचान बनाने वाला मेला अब थिएटर पर आकर सिमट गया है. इसी बीच घोड़ा बाजार पशु मेले का इज्जत बचाए हुए है. मेले में घोड़ों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. 

Sonapur Mela Bihar 2023Sonapur Mela Bihar 2023
अंक‍ित कुमार स‍िंह
  • PATNA,
  • Dec 06, 2023,
  • Updated Dec 06, 2023, 5:59 PM IST

बिहार की राजधानी पटना से करीब तीस किलोमीटर दूर सारण जिले के गंडक और गंगा नदी के संगम पर लगने वाला सोनपुर का पशु मेला विश्व विख्यात है. लेकिन इतिहास के बदलते पन्नों के साथ मेले का रूप और प्रारूप काफी बदल चुका है. बदलने को तो पटना के किनारे से गुजरने वाली गंगा नदी की दूरी भी बदल चुकी है. कभी पटना शहर को छूते हुए गुजरने वाली गंगा अब कई किलोमीटर दूर से ही गुजर जा रही है. खैर इस विषय पर बात बाद में होगी. अभी सोनपुर के हरिहर क्षेत्र में लगने वाले मेले की करते हैं.

घोड़ा बाजार सोनपुर मेला, बिहार. फोटो-किसान तक

मेले को काफी नजदीक से बदलते हुए देखने वाले स्थानीय निवासी 65 वर्षीय राम बिहारी सिंह घोड़ा बाजार में कहते हैं कि एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला कहे जाने वाले सोनपुर मेले की इज्जत घोड़ा बाजार ने बचा रखा है. नहीं तो अब यहां पशु मेला नहीं, थिएटर मेला चल रहा है. कभी पशुओं के तौर पर एशिया में अपना स्थान रखने वाला यह मेला अब थिएटर के दरवाजे तक आकार सिमट सा गया है. कभी सूई से लेकर हाथी तक इस मेले में बिकते थे. लेकिन यह अब सौंदर्य का मेला बन चुका है. इस मेले को बर्बाद करने में सरकार की भी भूमिका काफी अधिक रही है क्योंकि मेले में पशुओं का आना ही बंद हो चुका है. इस पर सरकार के द्वारा ध्यान कम दिया जा रहा है. 

बातचीत के दौर में बीच में टोकते हुए रामेश्वर राय कहते हैं कि पहले मेले के द्वार पर हाथी खड़ा रहता था. अब मेले के द्वार पर हाथी का गुब्बारा खड़ा है.  जिस मगरमच्छ (ग्राह) से हाथी को बचाने के लिए नारायण आए थे. वहीं हाथी मेले में खरीद बिक्री पर प्रतिबंधित हो चुका है. सरकार के द्वारा मेले में कई जानवर और चिड़िया की खरीद बिक्री पर प्रतिबंध लगा हुआ है जिसकी वजह से मेले में पशु के नाम पर गाय, घोड़ा सहित बकरी, कुत्ता ही बिक रहे हैं. 

थिएटर बना चर्चा का केंद्र 

उत्तर सारण के गंगा और गंडक नदी के संगम पर लगने वाले सोनपुर मेले को लेकर कई बातें प्रचलित हैं जिसमें ‘’वैष्णव शैव मिलन स्थल है. लोग कहते हैं कि इस मेले का विस्तार सोनपुर, पहलेजा घाट से लेकर हाजीपुर तक फैला हुआ था. लेकिन मेले का विस्तार अब कम हो चुका है. पहले पूरा दिन मेला घूमने के लिए कम होता था. लेकिन अब दो से तीन घंटा मेला घूमने के लिए काफी है. अब पशु मेले से कम और थिएटर को लेकर मेला अपनी पहचान बना चुका है. थिएटर पहले पशु मेले में आए बाहर के व्यापारियों के मनोरंजन के लिए होता था. लेकिन अब थिएटर ही मेले की मुख्य पहचान बन चुका है. 

सोनपुर मेले में पशु नहीं थिएटर चर्चा का केंद्र. फोटो -किसान तक

मेले से दूर होते गए पशु

समय के साथ सोनपुर मेले का स्वरूप और दायरा भी कम हुआ है. कभी पशुओं के तौर पर एशिया में अपना स्थान रखने वाला पशु मेला अब थिएटर के दरवाजे तक आकार सिमट सा गया है. वहीं इस मेले से पशुओं की बढ़ती दूरी को लेकर वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र कहते हैं कि अंग्रेजों के समय यह मेला हाजीपुर में लगता था. लेकिन पोलो ग्राउंड और घोड़दौर को लेकर मेला सोनपुर में लगना शुरू हुआ. 1997 तक मेले में बाहर से पशु आते थे. लेकिन उसके बाद पशुओं के आने का क्रम कम होता गया. मेले में गायों की बिक्री पर वे कहते हैं कि 1997 तक मेले में पंजाब और हरियाणा से बड़ी संख्या में गाय आती थीं. लेकिन रास्ते में बड़ी रुकावट आने लगी. तस्करी के नाम पर पैसा उगाही किया जाने लगा. जिसके बाद लोग अपने पशु लाना बंद कर दिए. अब स्थानीय गाय ही मेले में दिखेंगी. वहीं बाहर से गायों को लाने के लिए सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया. 

भैंस की खरीदारी बड़े पैमाने पर पश्चिम बंगाल और असम के व्यापारी करते थे. लेकिन इन पर भैंसों की तस्करी का आरोप लगाया गया. भैंसों को भेजने भेजने को लेकर जमकर विरोध किया गया. जिसके बाद राज्य सरकार ने 2007 के आसपास बिहार के बाहर भैंसों को भेजना बंद कर दिया. मेले में पहले से ही हाथी की खरीद बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया गया. वहीं अब घोड़ा बाजार पशु मेले की रौनक बनने में लगा हुआ है. लेकिन अब मेले की रफ्तार थिएटर पर आकर सिमट गई है. चिड़िया बाजार में कुत्ता बाजार ने स्थान लिया है. वहीं  बकरी मेला खरीदारी का केंद्र बिंदु है.

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