उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी के नाम से मशहूर कानपुर के बेहटा बुजुर्ग में स्थित जगन्नाथ मंदिर का पत्थर गीला होने की खबरें हैं. अब आप कहेंगे कि पत्थर गीला होना कौन सी बड़ी बात है तो आपको बता दें कि पिछले कई हजार साल से इस मंदिर को मॉनसून की भविष्यवाणी करने के लिए जाना जाता है. ऐसे में इस मंदिर का पत्थर गीला होना एक खास खबर बन गया है. मंदिर अपनी वास्तुकला और देवता के कारण सदियों से विद्वानों को हैरान करता रहा है. इस मंदिर की लोकप्रियता इसकी सटीक मानसून भविष्यवाणी के कारण ही बढ़ी है.
कहते हैं कि आसपास के किसान अपनी फसल बोने के लिए मंदिर की भविष्यवाणी पर ही निर्भर रहते हैं. वेबसाइट लाइव हिन्दुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार इस मंदिर के गुंबद में लगा पत्थर अभी से भीगने लगा है. हालांकि अभी मॉनसून को लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता है. इस मंदिर में अभी बूंदे नहीं बनी हैं. इन बूंदों के आधार पर ही बारिश और मॉनसून का कयास लगाया जाता है. मंदिर के महंत बूंदों को देखकर बताते हैं कि मॉनसून कैसा रहेगा. आमतौर पर मॉनसून आने से 20 दिन पहले मई और जून की गर्मी के बीच मंदिर के पत्थर से बूंदे टपकने लगती हैं. हैरान करने वाली बात है कि बारिश शुरू होते की पत्थर पूरी तरह से सूख जाता है.
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भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर अपने चमत्कारिक स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है. कानपुर के भीतरगांव विकासखंड से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर भगवान जगन्नाथ के मंदिरों में से एक है. लोगों की आस्था इस मंदिर के साथ ऐसी जुड़ी हुई है कि लोग दर्शन करने के लिए दूर-दूर आते रहते हैं. ये बूंदे जिस आकार की टपकती हैं, उसी के आधार पर बारिश भी होती है. मंदिर की सबसे अनोखी बात ये है कि जैसे ही बारिश शुरू होती है, मंदिर की छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है. मंदिर के गुंबद पर एक चक्र लगा हुआ है और इसकी वजह से आज तक यहां पर आकाशीय बिजली नहीं गिरी.
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मंदिर को लेकर कई तरह की रहस्यमयी बातें हैं. मंदिर के बारे में आज तक कोई पता नहीं लगा पाया कि यह मंदिर कितना पुराना है और इसकी छत से पानी कैसे टपकता है और कब बंद हो जाता है. कहा जाता है कि पुरातत्व विभाग के लोग और वैज्ञानिक कई बार यहां आए, लेकिन इस रहस्य का पता लगाने में असफल रहे. पुरातत्व विभाग को सिर्फ इतना ही पता चल पाया है कि मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य 11वीं सदी में किया गया था. इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति है. मंदिर की बनावट किसी बौद्ध मठ की तरह है, जिसकी दिवारें 14 फीट मोटी हैं. इससे मंदिर के सम्राट अशोक के शासन काल में बनाए जाने के अनुमान लगाए जाते हैं. मंदिर के बाहर मोर का निशान और चक्र बना है, जिससे ये अंदाजा लगाया जाता है कि चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के कार्यकाल में ये बना होगा.
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