22 जुलाई 2024 धरती का सबसे गर्म दिन रिकॉर्ड हुआ है. यूरोपियन यूनियन (ईयू) के अर्थ ऑब्वजर्वेशन प्रोग्राम कॉपरनिकस की तरफ से पब्लिश किए सैटेलाइट डेटा की तरफ से इस बात की पुष्टि की गई है. इसमें कहा गया है कि 22 जुलाई सोमवार दुनिया में सबसे गर्म दिन था. डेटा की मानें तो इससे पहले हाल ही में एक बार और धरती का तापमान सबसे ज्यादा दर्ज हुआ था. अब यह नया रिकॉर्ड बहुत कम अंतर से बना है जब तापमान सबसे ज्यादा था. इस डेटा के साथ ही ईयू के वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज को लेकर एक बार फिर दुनिया को आगाह किया है.
डेटा के अनुसार 22 जुलाई को दुनिया का औसत तापमान 17.15 डिग्री सेल्सियस था, जो पिछले दिन की तुलना में करीब 0.06 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. इससे पहले तापमान जुलाई 2023 में टूटा था. वहीं इससे पहले पिछला रिकॉर्ड अगस्त 2016 में बना था जब तापमान 16.92 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. दुनिया का तापमान अब करीब 125,000 सालों में सबसे ज्यादा है. यह कोयला, तेल और गैस के जलने और जंगलों की कटाई की वजह से हुए क्लाइमेट चेंज का नतीजा है. हालांकि वैज्ञानिक इस बात को लेकर निश्चित नहीं हैं कि सोमवार उस दौरान सबसे गर्म दिन था. लेकिन औसत तापमान बहुत पहले से इतना ज्यादा नहीं रहा है.
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वैज्ञानिकों की मानें तो तापमान में इजाफा जारी रहेगा. मौसम तब तक खराब होता रहेगा जब तक कि दुनिया जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला के प्रयोग में भारी कटौती नहीं करती और नेट जीरो इमीशन (उत्सर्जन) तक नहीं पहुंच जाती. लंदन के इंपीरियल कॉलेज के जलवायु वैज्ञानिक डॉक्टर जॉयस किमुताई के अनुसार, 'यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा क्लाइमेट साइंस ने हमें बताया था कि अगर दुनिया कोयला, तेल और गैस जलाना जारी रखती है तो क्या होगा. यह तब तक गर्म होता रहेगा जब तक हम जीवाश्म ईंधन जलाना बंद नहीं कर देते और नेट जीरो इमीशन तक नहीं पहुंच जाते.' उनका कहना था कि दुनिया के गर्म होने के साथ ही लोग पीड़ित हैं. लेकिन जब तक उत्सर्जन जारी रहेगा तब तक दर्द भी बढ़ता रहेगा.
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वहीं यूएन क्लाइमेट डायलॉग 2010-2016 की मुखिया रहीं क्रिस्टियाना फिगुएर्स जो क्लाइमेट ऑप्टिमिज्म की को-फाउंडर हैं, उन्होंने भी इस स्थिति पर चिंता जताई है. उनका कहना है, 'बहुत प्रयोग किया जाने वाला शब्द 'अभूतपूर्व' भी अब उस भयानक तापमान का वर्णन नहीं करता है जिसका हम अनुभव कर रहे हैं. जी20 देश एक खतरनाक हकीकत का सामना कर रहे हैं जिसका उन्हें निर्णायक रूप से समाधान करना चाहिए. रिन्यूबल एनर्जी के प्रयोग में तेजी लानी होगी. साथ ही जीवाश्म ईंधन को समझदारी से और चरणबद्ध तरीके से प्रयोग को खत्म करना होगा.' उनका कहना था कि दुनियाभर की बिजली का एक तिहाई हिस्सा अकेले सोलर और विंड एनर्जी से पैदा किया जा सकता है. लेकिन लक्षित राष्ट्रीय नीतियों को उस बदलाव को सक्षम बनाना होगा. नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हम सभी झुलस जाएंगे और जल जाएंगे.
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एक और जलवायु वैज्ञानिक डॉ. कार्स्टन हौस्टीन जो लीपजिग यूनिवर्सिटी से जुड़ हैं, उन्होंने भी कुछ इसी तरह की बात कही है. उनका कहना है, 'आज के समय में रोजाना के तापमान रिकॉर्ड को बहुत ही सावधानी से लिया जाना चाहिए. पिछले सोमवार ने अब तक के सबसे गर्म कंप्लीट ग्लोबल टेम्प्रेचर का नया रिकॉर्ड बनाया है.' उन्होंने कहा कि यह शायद दसियों हजार साल पहले हुआ होगा. उनकी मानें तो पिछले साल जुलाई की शुरुआत में बनाया गया रिकॉर्ड, ERA5 पुनर्विश्लेषण और GFS विश्लेषण डेटा के आधार पर शायद एक छोटे अंतर (0.02-0.07 डिग्री सेल्सियस) से पार हो गया है. उन्होंने आगे कहा कि यह गौरतलब है क्योंकि हम एल नीनो स्थितियों से अलग 'न्यूट्रल' ENSO क्षेत्र में अच्छी तरह से परिवर्तित हो गए हैं जिसने पिछली गर्मियों में वैश्विक तापमान को बढ़ाने में मदद की थी.
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नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस और यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के मौसम विज्ञान विभाग के रिसर्च साइंटिस्ट डॉक्टर अक्षय देवरस ने कहा, 'मानवजनित जलवायु परिवर्तन हमारे ग्रह पर मौसम संबंधी और जल विज्ञान संबंधी चरम सीमाओं को बढ़ा रहा है. इससे मौसम के रिकॉर्ड बार-बार टूट रहे हैं. वर्तमान में हमारे ग्रह के सभी महाद्वीपों में सामान्य से अधिक गर्म मौसम की स्थिति देखी जा रही है. इसलिए, 21 जुलाई को रिकॉर्ड तापमान के लिए जिम्मेदार वार्मिंग पैटर्न पूरे ग्रह में कमोबेश एक जैसा प्रतीत होता है. उन्होंने कहा कि जब तक हम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में तेजी से कटौती करके ग्लोबल वार्मिंग को सीमित नहीं किया जाएगा, तब तक मौसम के रिकॉर्ड बार-बार टूटते रहेंगे.
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