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जलवायु परिवर्तन ने खाद्य असुरक्षा को बढ़ाया, खाने की कमी से जूझ रहे लोगों की संख्या 33 करोड़ हो गई 

जलवायु परिवर्तन ने खाद्य असुरक्षा को बढ़ाया, खाने की कमी से जूझ रहे लोगों की संख्या 33 करोड़ हो गई 

जलवायु परिवर्तन के चलते साल 2023 में मौसम ने जमकर कहर ढाया. लू, बाढ़, सूखा, जंगलों में आग और तेज होते समुद्री तूफानों के कारण फसलों और आम लोगों के जीवन पर खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है. फसलों पर विपरीत असर से वैश्विक उपज में आई कमी ने खाद्य असुरक्षा को बढ़ा दिया है.

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2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा. 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा.

जलवायु परिवर्तन के चलते साल 2023 में मौसम ने जमकर कहर ढाया. लू, बाढ़, सूखा, जंगलों में आग और तेज होते समुद्री तूफानों के कारण फसलों और आम लोगों के जीवन पर खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है. फसलों पर विपरीत असर से वैश्विक उपज में आई कमी ने खाद्य असुरक्षा को बढ़ा दिया है. संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) 23 मार्च को विश्व मौसम दिवस से पहले एक ताजा रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार जलवायु परविर्तन की समस्या मानवता के लिए बहुत बड़ी चुनौती है. इससे खाद्य असुरक्षा बढ़ती जा रही है. इसके कारण विश्व में खाने की कमी से जूझ रहे लोगों की संख्या 149 मिलियन से बढ़कर 330 मिलियन (33 करोड़) हो गई है. वर्ष 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है. 

2023 में मौसम ने जमकर कहर ढाया 

23 मार्च को विश्व मौसम दिवस (World Weather Day 23 March) से पहले आई संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) की ताजा द स्टेट आफ ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन के चलते साल 2023 में मौसम ने जमकर कहर ढाया है. रिपोर्ट कहती है वर्ष 2023 में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, धरती के तापमान, समुद्री की सतह पर बढ़ती गर्मी, समुद्री जलस्तर में बढ़ोत्तरी के साथ अंटार्कटिक क्षेत्र में बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने के नए रिकॉर्ड बने हैं. इसमें धरती पर बढ़ता खारापन भी शामिल है. लू, बाढ़, सूखा, जंगलों में आग और तेज होते समुद्री तूफानों के कारण फसलों और आम लोगों के जीवन पर खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है. इससे अरबों डालर का आर्थिक नुकसान भी हुआ है. रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है. यह सर्वाधिक गर्म दस वर्ष की अवधि रही. 

जलवायु परिवर्तन धरती का तापमान बढ़ा रहा 

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा है कि बदलते मौसम से जलवायु परिवर्तन से जुड़े सभी पैरामीटर पर चेतावनी मिल रही है. ये केवल बढ़ नहीं रहे हैं, बल्कि तेजी से सभी अनुमानों से भी आगे जाने का संकेत दे रहे हैं. डब्ल्यूएमओ के महासचिव सेलेस्ते साउलो कहते हैं कि पेरिस समझौते में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के संबंध और तय की गई 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के इतना करीब हम कभी नहीं पहुंचे हैं. डब्ल्यूएमओ विश्व के लिए रेड अलर्ट जारी कर रहा है. जलवायु परिवर्तन तापमान में वृद्धि से भी अधिक बहुत कुछ है. वर्ष 2023 में हमने समुद्र के बढ़े तापमान, ग्लेशियरों पर खतरे और अंटार्कटिक में बर्फ में होती कमी खासतौर पर गंभीर चिंता का विषय हैं. 

ग्लेशियरों की बर्फ पिघलने में आई तेजी ने चिंता बढ़ाई 

वर्ष 2023 में औसतन हर दिन महासागरों का एक तिहाई हिस्सा मैरीन हीटवेव का सामना करता रहा, जिससे बेहद अहम इकोसिस्टम और फूड सिस्टम प्रभावित हो रहे हैं. वर्ष 2023 के आखिरी कुछ माह तक करीब 90 प्रतिशत महासागरों ने कभी न कभी लू वाली स्थिति का सामना किया. वर्ष 1950 से लेकर बीते वर्ष तक ग्लेशियरों की बर्फ सबसे अधिक पिघली. आरंभिक डाटा बताता है कि पश्चिमी उत्तरी अमेरिका और यूरोप में इसका सर्वाधिक प्रभाव देखा गया. अंटार्कटिक समुद्र में बर्फ पिघलने की दर भी चिंताजनक है. सर्दी खत्म होने के समय पिछले वर्ष की तुलना में यह दस लाख वर्ग किमी कम रही. यह फ्रांस और जर्मनी को मिलाकर बने क्षेत्र के बराबर है.  

खाने की कमी से जूझ रहे लोगों की संख्या 330 मिलियन के पार 

साउलो ने कहा कि जलवायु परविर्तन की समस्या मानवता के लिए बहुत बड़ी चुनौती है. बढ़ती खाद्य असुरक्षा, लोगों का विस्थापन जैव विविधता का नुकसान के संकेत दे रहे हैं. विश्व में खाने की कमी से जूझ रहे लोगों की संख्या 149 मिलियन से बढ़कर 330 मिलियन हो गई है. कोविड से पहले और 2023 के बीच यह दोगुनी से अधिक वृद्धि है. यह डाटा विश्व खाद्य कार्यक्रम की निगरानी वाले 78 देशों का है. रिपोर्ट के अनुसार मौसम और जलवायु में बदलाव इसके मूल कारण नहीं हो सकते हैं, लेकिन निश्चित तौर पर ये खाद्य असुरक्षा बढ़ाने वाले कारक हैं. मौसम की अति के कारण वर्ष 2023 में विस्थापन भी बढ़ा जिससे संकेत मिलता है कि कैसे संवेदनशील आबादी पर पड़ने वाले प्रभाव को जलवायु के कारण हो रहे नुकसान में कम आंका जा रहा है. हालांकि फिर भी आशा की एक किरण है.
 

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