उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के राजेंद्र नगर निवासी युवा किसान प्रतीक बजाज अनूठे तरीके से केंचुओं के जरिए वर्मी कम्पोस्ट (जैविक खाद) बनाकर सफलता की नई इबारत लिख रहे हैं. प्रतीक ने सबसे पहले मटकों में वर्मी कम्पोस्ट बनाया, जिससे उच्च गुणवत्ता वाली खाद मिलती है और केंचुए भी सुरक्षित रहते हैं. इससे उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है, बल्कि आसपास के किसान भी उनसे जैविक खाद प्राप्त कर रहे हैं. उधर, प्रतीक आज गांव के 3 हजार से अधिक किसानों को जैविक खेती करने की ट्रेनिंग भी दे चुके है.
इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में युवा उद्यमी प्रतीक ने बताया कि 18 साल की उम्र में 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद सीए की पढ़ाई शुरू की थी. वहीं साथ में बीकॉम करने लगा. उस समय मेरे बड़े भाई मोहित बजाज ने एक डेयरी फार्म खोला था. मै अपने भाई के साथ बरेली के भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) में ट्रेनिंग लेने गया था. उन्होंने बताया कि मेरा शुरू से एग्रीकल्चर की तरफ कुछ नया करने का मन था. वहां मुझे पहली बार पता चला था वर्मी कम्पोस्ट यानी जैविक खाद के जरिए अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
फिर हमने केंचुओं के जरिए वर्मी कम्पोस्ट बनने की ट्रेनिंग लिया और उसकी बारीकियों को समझा. IVRI बरेली के वैज्ञानिक रंजीत सिंह ने मुझे ट्रेनिंग के दौरान वर्मी कम्पोस्ट बनाने के हर तकनीकी पहलुओं को समझाया. प्रतीक बताते हैं कि जहां मेरे बड़े भाई ने डेयरी फार्म खोला था, वहीं पर हमने पहली बार साल 2013 में वर्मी कम्पोस्ट का यूनिट डाला. दो साल तक हम खुद से वर्मी कम्पोस्ट बनाने का प्रैक्टिकल किया. फिर मुझे पता चला कीकिताबी नॉलेज और खाद से प्रैक्टिकल करने में बहुत बड़ा अंतर हैं. हर मौसम को झेलते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन हिम्मत नहीं हारी इस दौरान मेरे पिता जी ने मुझे काफी मदद की.
उन्होंने बताया कि अपने पुश्तैनी गांव परधौली गांव में एक वर्मी कम्पोस्ट का बड़ा यूनिट साल 2017 में सेटअप किया. तब तक एमकॉम की पढ़ाई पूरी कर चुके थे. और सीए की पढ़ाई बीच में छोड़ दिया था. प्रतीक ने बताया कि फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. खास बात हैं कि मटकों में वर्मी कम्पोस्ट बनाया, जिसकी मार्केट में डिमांड ज्यादा था. क्योंकि वो गुणवत्ता युक्त खाद होती है और केंचुए भी सुरक्षित रहते हैं. वह खुद गौशाला से गोबर लाकर वर्मी कम्पोस्ट तैयार करते हैं. प्रतीक आज चार तरह की वर्मी कम्पोस्ट बनाते हैं, जिनमें ट्राइकोडर्मा आधारित और प्रीमियम क्वालिटी की खाद शामिल हैं.
उन्होंने बताया कि बेड्स को टनल की तरह कवर करने की अनोखी तकनीक विकसित की, जिससे केंचुए सुरक्षित रहते हैं और उत्पादन गुणवत्ता उच्च बनी रहती है. इसके साथ ही उन्होंने बैक्टीरिया कल्चर, ऑर्गेनिक ग्रोथ प्रमोटर और अन्य जैविक तकनीकों का इस्तेमाल किया, जिससे वर्मी कंपोस्ट की ताकत 20 गुना बढ़ जाती है. उनकी बनाई खाद को किसानों ने बहुत पसंद किया. वहीं अगर कोई किसान अपने घर में भी खाद तैयार करना चाहता है तो उसे बेड लगाने की जरुरत नहीं है. वो मटको में वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर सकता हैं. इससे न केवल फसल बेहतर होगी बल्कि लागत भी कम आएगी.
प्रतीक बताते हैं कि तकरीबन 10-15 दिनों में खाद बनने लगती है, जिसे निकालकर इस्तेमाल किया जा सकता है. 45 दिन में यह खाद पूरी तरह तैयार हो जाती है. इस प्रक्रिया में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं आइसिना फोटिडा यानी रेड विग्लर केंचुए. ये केंचुए जैविक कचरे को तेजी से विघटित कर उच्च गुणवत्ता की खाद तैयार करते हैं. यह खाद मिट्टी की संरचना को सुधारती है और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता को काफी हद तक कम कर देती है
राजेंद्र नगर निवासी युवा प्रतीक बजाज ने बताया कि आज 5 हजार से अधिक किसान हमारे साथ जुड़े हुए हैं. वहीं 500 से अधिक किसान हमसे वर्मी कम्पोस्ट खरीदते है. उन्होंने बताया कि हमारी यूनिट से बने वर्मी कम्पोस्ट बरेली के अलावा छत्तीसगढ़, राजस्थान, गोवा, पंजाब, महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा और दिल्ली समेत उत्तर प्रेश के कई शहरों में सप्लाई की जा रही है. प्रतीक ने बताया कि एक साल में 250 मेट्रिक टन उत्पादन करते हैं. जिससे सालाना टर्नओवर एक करोड़ रुपये के करीब पहुंच गया है. जो आने वाले समय में और बढ़ सकता है. बरेली के प्रतीक बजाज आज हजारों किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गए है.
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