दिहाड़ी से पद्मश्री तक: असम के सर्वेश्वर बसुमतारी बने 'इंटीग्रेटेड फार्मिंग' के मिसाल

दिहाड़ी से पद्मश्री तक: असम के सर्वेश्वर बसुमतारी बने 'इंटीग्रेटेड फार्मिंग' के मिसाल

असम के चिरांग जिले के पनबारी गांव के 63 वर्षीय बोडो आदिवासी किसान सर्वेश्वर बसुमतारी ने दिहाड़ी मजदूरी से शुरुआत कर एकीकृत खेती (इंटीग्रेटेड फार्मिंग) में नवाचार (इनोवेशन) करते हुए कृषि क्षेत्र में पद्मश्री हासिल किया है. उन्होंने बहुफसली खेती, मत्स्य पालन, सूअर पालन और रेशम उत्पादन को जोड़कर स्थानीय किसानों और युवाओं के लिए एक स्थायी विकास मॉडल पेश किया है.

Advertisement
दिहाड़ी से पद्मश्री तक: असम के सर्वेश्वर बसुमतारी बने 'इंटीग्रेटेड फार्मिंग' के मिसालपद्मश्री किसान सर्वेश्वर बसुमतारी

असम के चिरांग जिले के पनबारी गांव के 63 वर्षीय बोडो आदिवासी किसान सर्वेश्वर बसुमतारी आज भारत खेती-किसानी में प्रेरणा का प्रतीक बन चुके हैं. कभी मात्र 2-3 रुपये रोज कमाने वाले मजदूर से लेकर देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्मश्री (2024) तक का उनका सफर संघर्ष, नवाचार और समर्पण से भरा रहा है.

सर्वेश्वर बसुमतारी को यह सम्मान एकीकृत खेती (इंटीग्रेटेड फार्मिंग) के क्षेत्र में उनके क्रांतिकारी योगदान के लिए मिला है. उन्होंने खेती को सिर्फ उत्पादन का साधन नहीं, बल्कि ग्रामीण समृद्धि और युवाओं के सशक्तिकरण का जरिया बना दिया है. उन्होंने 1990 के दशक में पारंपरिक एक फसल की खेती का सीमित दायरा महसूस किया और मल्टी-क्रॉपिंग, मत्स्य पालन, सूअर पालन, रेशम उत्पादन, बागवानी, और जैविक खेती जैसे तरीकों को अपनाकर खेती को सालभर लाभदायक बनाया.

बसुमतारी ने यह पाया कि सालों भर एक दो फसलों की बार-बार खेती से बहुत कुछ हासिल होने वाला नहीं है. उन्होंने महसूस किया कि इससे घर के खाने का खर्च तो चल सकता है, लेकिन कमाई का जरिया नहीं बना सकते. यही सोच कर उन्होंने खेती में नवाचार का इस्तेमाल करते हुए इंटीग्रेटेड फार्मिंग को बढ़ावा देना शुरू किया. उनकी मेहनत रंग लाई और आज वे एक सफल किसान के रूप में जगह पा चुके हैं.

कम शिक्षा, लेकिन बड़ा विजन

सिर्फ पांचवीं तक पढ़े सर्वेश्वर ने कुछ सीखने और समझने की कोई सीमा नहीं मानी. 1996 में बिजनी के कृषि कार्यालय में ट्रेनिंग से शुरू कर, उन्होंने मछली पालन, बागवानी और रेशम उत्पादन में गहन तर्जुबा हासिल किया. उनके पास आज 9 एकड़ निजी और 15-16 एकड़ पट्टे की जमीन है, जहां वे सुपारी, संतरा, अदरक, पपीता, हल्दी, लीची, धान और मक्का जैसी कई फसलें उगाते हैं.

उनके 2.5 एकड़ में फैले पांच मछली तालाब, और सूअर पालन से तालाबों को खाद जैसे पोषक तत्व मिल जाते हैं. उनकी इस इनोवेटिव तकनीक ने कृषि विज्ञानियों का भी ध्यान खींचा है. ड्रिप सिंचाई, खेत की मेड़ पर नींबू-पपीते के पेड़, और जैविक खाद जैसे नवाचार उनके फार्म की पहचान हैं.

युवाओं के लिए रोल मॉडल

'thelogicalindian.com' की एक रिपोर्ट बताती है, सर्वेश्वर केवल खुद की खेती तक सीमित नहीं हैं. वह बोर्डोसिला किसान उत्पादक कंपनी लिमिटेड के प्रमोटर हैं, जो युवाओं को खेती में ट्रेनिंग और पौधों की नर्सरी के माध्यम से स्वरोजगार के अवसर दिलाती है. उनके भतीजे पूर्णो बोरो समेत कई युवा उनकी देखरेख में सफल हो रहे हैं.

राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

उनके कार्यों की सराहना करते हुए उन्हें कई पुरस्कार मिले, जिनमें शामिल हैं:

  1. मत्स्य विभाग पुरस्कार (2005)
  2. रेशम उत्पादन में उत्कृष्टता पुरस्कार (2015)
  3. एनआईएएम जयपुर प्रमाणपत्र (2017)
  4. असम गौरव पुरस्कार (2022-23)
  5. पद्मश्री पुरस्कार (2024)

सरकार और समाज के लिए प्रेरणा

सर्वेश्वर का मॉडल न केवल आर्थिक रूप से सशक्त है, बल्कि यह क्लाइमेट स्मार्ट, संसाधन-कुशल और सामाजिक रूप से एक साथ लेकर चलने वाला है. उनकी सफलता पर आधारित असम सरकार की वीडियो प्रोफाइल (अक्टूबर 2025) बताता है कि कैसे एक किसान पूरे क्षेत्र को बदल सकता है. यह कहानी बताती है कि सीमित संसाधनों, कम शिक्षा और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अगर इरादा मजबूत हो तो कोई भी व्यक्ति बदलाव का मुखिया बन सकता है.

POST A COMMENT