उत्तराखंड में नैनीताल जिले के रामनगर में रहने वाले किसान जगदीप सिंह लोगों के लिए एक मिसाल पेश कर रहे हैं. जगदीप सिंह ने अपने दो एकड़ खेत में जैविक तरीकों से बेर की चार किस्म उगायी हैं. उन्होंने बेर के 250 पेड़ लगाए हैं. आपको बता दें कि पारंपरिक रूप से बेर की खेती गुजरात, राजस्थान और बिहार जैसे गर्म इलाकों में होती है. लेकिन जगदीप सिंह ने नई कृषि तकनीक अपनाकर रामनगर जैसे ठंडे इलाके में भी बेर उगा लिए हैं.
इन चार वैरायटी के बेर लगा रहे जगदीप
पीटीआई से बात करते हुए जगदीप सिंह ने बताया कि उन्होने दो एकड़ जमीन पर 250 से ज्यादा पेड़ लगाए हैं और उनके पास चार वैरायटी हैं बेर की. इनमें ग्रीन एप्पल बेर हैं, रेड एप्पल है, एक कश्मीरी है और एक कश्मीरी की ही दूसरी वैरायटी है. उन्होंने खेती के बारे में बताया कि बेर के पेड़ लगाने के पहले साल में कोई उत्पादन नहीं आता है. दूसरे साल में थोड़ी-बहुत उपज मिलती है. तीसरे साल में अच्छी खासी फसल मिल रही है.
बागवानी विभाग के अधिकारी और प्रकृति प्रेमी जगदीप सिंह के नए कृषि तौर-तरीकों की तारीफ कर रहे हैं. इससे किसानों की पारंपरिक खेती पर निर्भरता कम होने के साथ-साथ कई तरफ की फसलों की खेती को बढ़ावा मिल रहा है. बागवानी अधिकारी अर्जुन सिंह परवाल ने कहा, "इन्होंने आम, लीची, अमरूद से हटकर एक यूनिक क्रॉप का उत्पादन किया है, जिसका आस-पास के क्षेत्र में उत्पादन दिख नहीं रहा है. मैं चाहूंगा कि इन क्षेत्र के किसान भी कुछ ऐसी यूनिक चीजों का उत्पाद करें."
एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं लोग
बागवानी के प्रोफेसर डॉ. जीसी पंत का कहना है कि पहले लोग इस तरह के प्रयोग नहीं करते थे और लेकिन आज साधन उपलब्ध हैं. आज लोग पुणे का पेड़ लाकर पहाड़ पर लगा रहे हैं, फल आ रहा है. आप पुणे से गुलाब मंगा कर लगा रहे हैं. पहले यातायात के ऐसे साधन नहीं थे. लोग भी इतने प्रयोग नहीं करते थे. पहले परंपरागत बीजों को संभाल कर रखा जाता और उन्हीं को लगाया जाता था.
जगदीप सिंह के मुताबिक खरीदार सीधे उनके खेत से 100-120 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से फल खरीद रहे हैं. जिससे पारंपरिक खेती की तुलना में उन्हें काफी ज्यादा मुनाफा मिल रहा है. अब दूसरे किसान भी उनसे यह तरीका सीखने की इच्छा जता रहे हैं.
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