झारखंड के चतरा जिले की एक महिला किसान ने सरकारी योजना की सहायता से सफलता की कहानी लिख दी है. यह महिला खेती, पशुपालन और पोल्ट्री तीनों में काम कर रही है. इनका नाम है मुनिया देवी जो लावालौंग खंड के ग्राम-पोटम की रहने वाली हैं. चतरा जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर रहने वाली मुनिया के पास चार एकड़ जमीन है. जिसमें उन्होंने टमाटर, अरहर, सरसों, धान, मक्का और सब्जियों की खेती की हुई है. साथ में पशुपालन और पोल्ट्री से भी उन्हें आय बढ़ाने में मदद मिल रही है. उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले तक खेती में लागत के अनुपात में उन्हें फायदा नहीं मिल पाता था, लेकिन अब खेती फायदे का सौदा हो गई है. वजह है केंद्र की एक योजना आत्मा.
आत्मा योजना (ATMA Yojana) का पूरा नाम कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (Agriculture Technology Management Agency) है. जिसके तहत किसान और कृषि वैज्ञानिक एक-दूसरे के आमने-सामने आते हैं. कृषि वैज्ञानिक किसानों को आधुनिक तरीके से खेती करने की ट्रेनिंग देते हैं. किसानों को खेती का नया तौर-तरीका पता चलता है जिससे वो ज्यादा पैदावार ले पाते हैं और इससे इनकम बढ़ जाती है. मुनिया इस योजना का फायदा लेने वाली अकेली किसान नहीं हैं. दूसरे किसान भी इसका फायदा उठाकर अपनी आय बढ़ा रहे हैं. फिलहाल मुनिया की जिंदगी इस योजना से बदली और आज वो खेती करके अपनी और अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही है.
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महिला किसान ने बताया कि एक किसान गोष्ठी में भाग लेने के दौरान आत्मा योजना से जुड़ने का अवसर मिला. वो बुवाई से पहले बीजों का उपचार करने लगीं. बीजों को कार्बेन्डाजिम 50WP का 02 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित कर बोआई कर फसलों को पंक्ति में लगाने लगीं. साथ ही समय पर कीट व रोग के बारे में आत्मा से सम्पर्क स्थापित कर कीट व रोग नियंत्रण में सही दवा का प्रयोग की. जिसकी वजह से खेती के लागत में कमी आई.
इसी योजना के जरिए बैकयार्ड पोल्ट्री पालन के बारे में जानकारी मिली. उनके पास दो दर्जन से अधिक देसी मुर्गियां हैं. जिसे पालने में कोई अलग से मेहनत नहीं करनी पड़ती है. यह खेती से अलग आय का अच्छा श्रोत मिला है. इनके एक अंडे की कीमत दस रुपये मिल रही है. इसके अलावा घर के सदस्यों को एक अच्छे पोषण में सहयोग हो जाता है. मुनिया के पास 12 बकरियां और पांच गाय भी हैं. एक बकरी लगभग 10,000 रुपये में बिक जाती है. जबकि गाय से जो दूध प्राप्त होता है उसे अपने उपयोग में लाती हैं. गोबर, फसल अवशिष्ट, कूड़ा-कचरा को एक गड्ढे में सड़ाकर उसे फिर खाद के रूप में बना लेती हैं. इससे रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम करना पड़ता है.
महिला किसान ने बताया कि टमाटर की खेती से सबसे ज्यादा लाभ मिलता है. इसकी खेती के लिए अब बीज उपचार, कार्बनिक खाद, जैविक रासायन इत्यादि का समय पर प्रयोग करती हैं. जिससे फसल की गुणवत्ता अच्छी रहती है. उत्पादन में वृद्धि होती है. गुणवत्ता अच्छी रहने से व्यापारी घर से ही टमाटर खरीद ले जाते हैं. उनके घर से टमाटर कलकत्ता, बनारस इत्यादि के बाजारों तक जाता है.
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