
कुछ सफर ऐसे भी होते हैं, जहां एक आम आदमी की आम सी जिंदगी धीरे-धीरे बहती है, जैसे नदी का शांत बहाव. वहीं, कुछ सफर ऐसे होते हैं जो बिलकुल फिल्मी लगते हैं, जहां उतार-चढ़ाव, जीवन की जिग-जैग और रोमांचक मोड़ आपको हैरान कर देते हैं. लेकिन एक सफर ऐसा भी होता है, जहां नायक तो आम आदमी ही होता है, लेकिन उसका सफर इतना असाधारण होता है कि वह लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन जाता है. यह सफर फर्श से अर्श तक का होता है, जीरो से हीरो बनने की कहानी होती है, और कुछ नहीं से बहुत कुछ बन जाने की यात्रा होती है.
सबसे बड़ी बॉयलर कंपनी के मालिक
आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने न सिर्फ अपने सपनों को हकीकत में बदला, बल्कि एक पूरी इंडस्ट्री को बदलकर रख दिया. यह कहानी है बहादुर अली साहब की, जिन्होंने एक छोटी सी साइकिल शॉप से शुरुआत करके देश की सबसे बड़ी बॉयलर कंपनी का साम्राज्य खड़ा किया. उनकी यात्रा ने न सिर्फ पोल्ट्री इंडस्ट्री में क्रांति ला दी, बल्कि लाखों लोगों की सोच और जीवन को भी बदल दिया. उनका संघर्ष, उनकी मेहनत, और उनकी लगन हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को पूरा करने का हौसला रखता है.
कम उम्र में आ गईं परिवार की जिम्मेदारियां
तो चलिए, आज हम बहादुर अली साहब के जीवन के उन पलों को जानते हैं, जिन्होंने उन्हें एक साधारण इंसान से असाधारण काम करने के काबिल बनाया. यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि हर उस शख्स की है, जो मेहनत और लगन से अपने सपनों को पूरा करना चाहता है. राजनांदगांव के एक छोटे से गांव से शुरू हुआ सफर अब एक प्रेरणादायक कहानी बन चुका है. एक साधारण परिवार में पले बड़े बहादुर के पिता साइकिल पंक्चर बनाने और लांड्री का काम किया करते थे. बहादुर अली भी अपने पिता और भाई के साथ साइकिल के दुकान पर काम करते थे.
पिता की मौत की वजह से कम उम्र में ही परिवार की जिम्मेदारियां दोनों भाइयों के कंधों पर आ गई. अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए बहादुर और उनके भाई ने साइकिल की दुकान चलाने का काम संभालना शुरू किया. साइकिल पंक्चर बनाने का काम उनके परिवार के लिए काफी नहीं था और हालात मुश्किल बने हुए थे.
अमेरिकन एक्सपर्ट की सलाह ने जिंदगी बदल दी
1984 कंपनी की शुरुआत हुई थी. इसके लगभग 12 साल बाद 1996 में दिल्ली के प्रगति मैदान में हुए एक एक्सपो में बहादुर अली को अमेरिका के एक पोल्ट्री एक्सपर्ट से एक अद्भुत सलाह मिली. इस सलाह ने उनकी जिंदगी बदल दी. उन्होंने बहादुर अली को पोल्ट्री बिजनेस के बारे में समझाया. बहादुर अली को ये आइडिया जबरदस्त लगा. और इस तरह बहादुर अली ने पोल्ट्री इंडस्ट्री में कदम रखा. मुर्गियों को पालना एक बात थी पर उन्हें बेचना एक और बड़ी चुनौती बहादुर अली के सामने अब ये सवाल था मुर्गियों को कैसे बेचा जाए? इस दिक्कत को हल करने के लिए बहादुर अली ने स्थानीय बाजारों में गहराई से अध्ययन किया. उन्होंने अपने प्रॉडक्ट को बेचने के लिए खुद का आउटलेट खोलने का फैसला लिया. धीरे-धीरे उनकी बिक्री बढ़ने लगी और उनकी मेहनत रंग लाने लगी.
1985 में खोली पहली दुकान
1985 में बहादुर अली ने नागपुर में एक छोटी सी दुकान खोली. मकसद सिर्फ इतना था- महीनेभर में 500 मुर्गियां बेच डालना. इसके लिए उन्होंने अखबार में विज्ञापन छपवाया. और जब पहले ही दिन 300 चिकन बिक गए तो उनमें जोश आया. इस सफलता ने उनके आत्मविश्वास को कई गुना बढ़ा दिया. नागपुर के एक बड़े होटल से उन्हें महीने में 2000 चिकन सप्लाई करने का ऑर्डर मिला.
1987 में पहली बार लिया लोन
पिता की साइकिल की दुकान छोड़कर एक नई दुनिया में प्रवेश करना बहादुर अली के लिए आसान नहीं था लेकिन उन्हें रिस्क लिया. 1987 में बैंक से पहला लोन लिया और मुर्गीपालन के बिजनेस को बढ़ाने के लिए जमीन खरीदी. इस लोन ने उनके बिज़नेस को विस्तार का मौका दिया. अली का ये कदम मुर्गीपालन बिजनेस के लिए एक अहम मोड़ साबित हुआ और 1996 तक अपनी कंपनी आइबी ग्रुप का टर्नओवर 5 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया. इस समय तक बहादुर अली की इंडियन बॉयलर ग्रुप कंपनी 40,000 चिकन प्रति महीने का उत्पादन करने लगी.
11000 करोड़ है आईबी ग्रुप का टर्नओवर
1998 तक बहादुर अली का बिजनेस नई ऊंचाइयां छूने लगा. इसी सफलता के बाद उन्होंने Abis Export India Private Limited की नींव रखी. यहीं से आईबी ग्रुप का ब्रांड नाम एबिस हुआ. इसका हेडक्वार्टर छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव जिले के इंदमारा गांव में स्थित है. 200 मुर्गियों से शुरू हुआ सफर आज 11000 करोड़ के टर्नओवर तक पहुंच चुका है. आइबी ग्रुप के उत्पादों में खाद्य तेल, मछली के फीड आदि शामिल हैं. उनका बिजनेस छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, विदर्भ, ओडिशा के अलावा पूरे देश में फैला हुआ है. बहादुर अली साहब का ये सफर साबित करता है कि अगर इरादे मजबूत हों और हौसले बुलंद हों, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं.
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