
जौनपुर के छोटे से गांव मेहौड़ा से निकला एक साधारण सा लड़का, जिसके पास न तो ऊंची डिग्री थी और न ही कोई बड़ा बैकग्राउंड, आज करोड़ों की कंपनी का मालिक है. आनंद राय की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं, जहां मेहनत, लगन और सपनों ने एक डिलीवरी बॉय को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सब्जियां पहुंचाने वाला उद्यमी बना दिया. 47 साल के आनंद राय ने न सिर्फ अपनी किस्मत बदली, बल्कि अपने गांव के 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार देकर उनकी जिंदगी भी संवारी.
उनकी मशरूम प्रोडक्शन कंपनी आज 5-6 करोड़ रुपये का टर्नओवर कर रही है, और उनकी सब्जियां सिंगापुर, यूक्रेन और स्पेन की थालियों में सज रही हैं.
आनंद राय की जिंदगी की शुरुआत जौनपुर के सूरतपुर गांव में हुई, जहां उन्होंने महज 10वीं तक पढ़ाई की. उनके पिता एक साधारण किसान थे, जिनके पास फसल बचाने के लिए तिरपाल तक खरीदने के पैसे नहीं थे. आनंद बताते हैं, “बारिश में फसल भीग जाती थी, और हम बेबस थे.”
गांव की तंगहाली और सीमित संसाधनों ने आनंद को बेचैन कर दिया. उन्होंने ठान लिया कि वे कुछ बड़ा करेंगे. इसके लिए उन्होंने घर छोड़ा और नौकरी की तलाश में शहर का रुख किया.
शुरुआत में आनंद ने डिलीवरी बॉय के तौर पर काम किया. उस वक्त उनकी कमाई सिर्फ 200-250 रुपये महीना थी. आनंद याद करते हैं, “मुंबई की सड़कों पर, कभी-कभी रात को डिलीवरी करते वक्त मुश्किलें आती थीं. एक बार तो रेड लाइट एरिया में मेरे सामान लूट लिए गए, लेकिन मैंने कस्टमर की लैब रिपोर्ट बचा ली.” इन छोटी-छोटी घटनाओं ने आनंद को मेहनत और ईमानदारी का पाठ पढ़ाया.
आनंद ने डिलीवरी बॉय के काम को सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि सीखने का मौका माना. सप्लाई चेन की बारीकियों को समझते हुए उन्होंने धीरे-धीरे बेहतर मौके तलाशे. कई कंपनियों में काम किया, अनुभव बटोरा और आखिरकार एक ऐसी नौकरी पाई, जहां उनकी तनख्वाह 50,000 रुपये महीना तक पहुंच गई. लेकिन आनंद का सपना नौकरी तक सीमित नहीं था. वे कुछ बड़ा करना चाहते थे.
साल 2016 में आनंद ने एक साहसी कदम उठाया. उन्होंने ‘गोजावास’ नाम की लॉजिस्टिक्स कंपनी में 51% हिस्सेदारी खरीदी, जिसका टर्नओवर उस वक्त 650 करोड़ रुपये था. यह कोई छोटा-मोटा कदम नहीं था. आनंद की अपनी कंपनी ‘पिजन एक्सप्रेस’ का टर्नओवर तब 20 करोड़ से भी कम था. फिर भी, उनकी मेहनत और दूरदृष्टि ने उन्हें यह जोखिम लेने का हौसला दिया. इस कदम ने उन्हें सिंगापुर बेस्ड एनआरआई बना दिया, लेकिन उनका दिल हमेशा अपनी मिट्टी से जुड़ा रहा.
साल 2024 में आनंद ने अपने गांव मेहौड़ा में एक मशरूम प्रोडक्शन प्लांट शुरू किया. यह फैसला उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. आनंद ने मशरूम की खेती पर गहन रिसर्च की और आधुनिक तकनीकों को अपनाया. आज उनका प्लांट प्रतिदिन 1 टन मशरूम का उत्पादन करता है, जिसका टर्नओवर 5-6 करोड़ रुपये सालाना है.
आनंद ने सिर्फ प्रोडक्शन तक खुद को सीमित नहीं रखा. उन्होंने गांव और आसपास के 100 लोगों को रोजगार दिया और उन्हें मशरूम खेती की ट्रेनिंग भी दी. वे बताते हैं, “मैं चाहता था कि मेरे गांव के लोग भी आत्मनिर्भर बनें. इसलिए मैंने स्थानीय लोगों को अपने साथ जोड़ा.” आनंद की यह पहल न सिर्फ रोजगार सृजन कर रही है, बल्कि गांव की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत कर रही है.
आनंद की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उनकी उगाई मशरूम और सब्जियां अब सिंगापुर, यूक्रेन और स्पेन जैसे देशों में निर्यात की जा रही हैं. वे गर्व से कहते हैं, “जब मैं सोचता हूं कि मेरे गांव की मिट्टी में उगी सब्जियां विदेशी थालियों में सज रही हैं, तो दिल खुशी से भर जाता है.” यह उपलब्धि न सिर्फ आनंद के लिए, बल्कि पूरे जौनपुर और भारत के किसानों के लिए गर्व का विषय है.
आनंद यहीं नहीं रुक रहे. वे मशरूम खेती के बचे हुए अवशेषों से उच्च गुणवत्ता वाला जैविक खाद (फर्टिलाइजर) बनाने पर काम कर रहे हैं. लैब टेस्टिंग में उनके फर्टिलाइजर के परिणाम शानदार आए हैं. आनंद का कहना है, “यह खाद किसानों के लिए वरदान साबित होगी, क्योंकि यह सस्ती और पर्यावरण के लिए फायदेमंद होगी.”
आनंद का विजन बड़ा है. वे अगले 2-3 सालों में अपने मशरूम प्रोडक्शन को बढ़ाकर 600-700 लोगों को रोजगार देना चाहते हैं. साथ ही, उनकी कंपनी का टर्नओवर 100 करोड़ रुपये तक ले जाने का लक्ष्य है. वे कहते हैं, “मेरे लिए पैसा उतना मायने नहीं रखता, जितना अपने गांव और देश के लिए कुछ कर पाने का जुनून.”
आनंद राय की कहानी हर उस किसान और युवा के लिए प्रेरणा है, जो सीमित संसाधनों में भी बड़े सपने देखता है. एक डिलीवरी बॉय से करोड़पति बनने तक का उनका सफर मेहनत, लगन और सही दिशा में उठाए गए कदमों का नतीजा है.
(आदित्य प्रकाश भारद्वाज की रिपोर्ट)
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