
केसर की सफल खेती केसर को लेकर कहा जाता है कि इसे खाने से सौंदर्य बढ़ता है. आम तौर पर इसकी खेती कश्मीर जैसे ठंडे इलाकों में होती है. ऐसे में अगर कोई बताए कि छत्रपति संभाजीनगर जैसे गर्म इलाके में भी केसर उग रहा है, तो यह बात हैरान कर देती है. लेकिन संभाजीनगर शहर की CA प्रिया अग्रवाल पहाड़े ने यह संभव कर दिखाया है. उन्होंने अपने ही ऑफिस में आर्टिफिशियल तरीके से केसर उगाकर एक नई दिशा दी है.
मराठवाड़ा जैसे सूखे से जूझते क्षेत्र में केसर की खेती की कल्पना भी मुश्किल लगती है. लेकिन प्रिया ने करीब एक साल तक लगातार अध्ययन किया और फिर ऑफिस के एक छोटे कमरे में कृत्रिम खेती शुरू की. वे आगे इसे बड़ी स्केल पर व्यावसायिक रूप देने की तैयारी कर रही हैं.
किसी भी काम से पहले उसका पूरा अध्ययन जरूरी होता है. इसी सोच के साथ प्रिया ने इंटरनेट पर केसर खेती की जानकारी जुटाना शुरू किया. देश के अलग-अलग राज्यों में किए गए सफल प्रयोगों के बारे में पढ़ा, लोगों से संपर्क किया और विस्तार से समझा. इसके बाद वे पुणे गईं और फिर कश्मीर जाकर प्रत्यक्ष रूप से केसर उत्पादन की प्रक्रिया देखी.
जब यह समझ आया कि ठंडे वातावरण में उगने वाला केसर तकनीक की मदद से गर्म प्रदेशों में भी संभव है, तो उन्होंने घर वालों से चर्चा की और ऑफिस में ही एक आर्टिफिशियल रूम बनाकर खेती करने का फैसला लिया.
प्रिया ने अपने ऑफिस में एक कंट्रोल रूम बनाया है, जहां तापमान को जरूरत के हिसाब से बढ़ाया या घटाया जा सकता है. इसमें वर्टिकल फार्मिंग की तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. कमरे में ठंडा वातावरण बनाए रखने के लिए मशीनें लगाई गई हैं.
प्रिया का कहना है कि इस सेटअप पर करीब 7 से 8 लाख रुपये खर्च आया है. जितना केसर एक एकड़ जमीन में उगाया जाता है, उतनी ही मात्रा इस कमरे में तैयार की जा रही है.

उनका कहना है कि यह खेती पार्ट टाइम में भी की जा सकती है. पूरा सिस्टम मोबाइल पर ऑपरेट होता है, इसलिए लगातार निगरानी की जरूरत नहीं पड़ती.
प्रिया बताती हैं कि इस प्रयोग में उनके पति ने हर कदम पर उनका साथ दिया और वे इस सफलता का श्रेय भी उन्हें ही देना चाहती हैं.
यह प्रिया की पहली फसल है, जिसे वे ‘एक्सपेरिमेंटल स्टेज’ मान रही हैं. आने वाले समय में कुछ और तकनीकी जांच पूरी करने के बाद वे इसे बिजनेस मॉडल के रूप में शुरू करने की सोच रही हैं.
मराठवाड़ा में जहां किसानों की हालत लगातार खराब हो रही है और पिछले 11 महीनों में 900 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है. वहीं प्रिया का यह प्रयास नई उम्मीद दिखाता है. आर्टिफिशियल खेती ने यह साबित किया है कि तकनीक के साथ खेती के नए रास्ते भी खुल सकते हैं.(इसरारुद्दीन चिस्ती का इनपुट)
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