कौन कहता है कि सफल होने के लिए डिग्री की जरूरत होती है. कई बार महत्वाकांक्षी और दृढ़ निश्चयी होना भी काफी होता है. आज हम ऐसे ही एक सफल किसान की कहानी बताएंगे जो महत्वाकांक्षी और दृढ़ निश्चयी है. हम बात कर रहे हैं पंजाब के कपूरथला के परमजीतपुरा गांव के रहने वाले 65 वर्षीय किसान फुमन सिंह कौररा की. किसान परिवार से होने के कारण अपने पिता और दादा को खेतों में मेहनत करते हुए देखा, ताकि वे अपना पेट पाल सकें. विकट परिस्थिति से गुजरते हुए फुमन सिंह ने धान की खेती को छोड़कर गाजर की खेती की और वो सफल हुए. इसमें वो अब वो सालाना 1 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई करते हैं. आइए जानते हैं उनकी कहानी.
फुमन सिंह ने बताया कि स्थिति इतनी विकट थी कि उन्हें BA सेकंड ईयर के बाद उनको अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. जिसके बाद उन्होंने अपने परिवार की मदद करना शुरू कर दिया क्योंकि वे अब उनकी कॉलेज की फीस नहीं भर सकते थे. वह अपने धान और गेहूं के खेत में काम करते थे. साथ ही डेयरी फार्म भी चलाते थे. यह देखते हुए कि यह लाभदायक नहीं था और लंबे समय तक टिकाऊ नहीं होगा.
उन्होंने अपनी वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए अन्य विकल्पों पर विचार करना शुरू किया. फिर फुमन सिंह को गाजर की खेती का विकल्प सुझा, जिसके बाद उन्होंने एक गाजर किसान से मदद मांगी. हालांकि, किसान ने उसकी मदद करने के बजाय उन्हें डांटा और कहा कि यह उसके बस की बात नहीं है. फिर उन्होंने ठान लिया और अब वो पिछले 30 सालों से 4.5 एकड़ जमीन से शुरुआत करके गाजर की खेती करके अपने परिवार की किस्मत बदल दी.
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आज उनके परिवार के पास, जिसमें उनके दो भाई भी शामिल हैं, 80 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन है, जो मुख्य रूप से गाजर की खेती पर केंद्रित है. गाजर उगाने के अलावा, वह बीज भी सप्लाई करते हैं, जो 650 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन पर बोने के लिए काफ़ी है. साथ ही अपने बेटे के साथ मिलकर खेती करते हुए, वह आज गाजर और बीज की खेती से सालाना 1 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई करते हैं.
अपने आस-पास के माहौल में गाजर से होने वाले लाभ को देखते हुए फुमन सिंह ने 1993 में इस खेती में बढ़ने के बारे में सोचा. उन्होंने किताबें पढ़कर और पास के कृषि विश्वविद्यालय में जाकर गाजर की खेती की बारीकियां सीखी. इसके बाद उन्होंने अपने परिवार की 4.5 एकड़ जमीन पर गाजर के बीज बोने का साहस किया. यह प्रयोग सफल रहा और तब से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इसके अलावा उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) के कार्यक्रमों में भाग लिया और नई किस्मों और तकनीकों के बारे में सीखा, जिनका उन्होंने अपने खेत में इस्तेमाल किया.
शुरुआत में उन्हें बीज हाथ से बोने पड़ते थे और फसल बेचने के लिए जालंधर, लुधियाना और अमृतसर जैसे दूरदराज के बाजारों में जाना पड़ता था. लेकिन समय के साथ उन्होंने बीज बोने के लिए मशीनें खरीदीं. वहीं, गाजर की क्वालिटी अच्छी होने और नाम कमाने के बाद, खरीदार उनके खेत पर आने लगे. आज फुमन सिंह को अपनी फसल बेचने के लिए किसी बाजार में जाने की जरूरत नहीं है, बाजार उनके पास आता है.
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