पंजाब में भले ही पिछले कुछ सालों में पराली जलाने के मामलों में कमी आई है, लेकिन ये घटनाएं अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रही हैं. आज भी कई किसान समय बचाने और पैसों की कमी के चलते फसल अवशेष प्रबंधन न कर पाने के कारण खेतों में आग लगा रहे है. इस सब के बीच, अटारी के पास बसेरके गिला गांव के रहने वाले किसान मनदीप सिंह पराली प्रबंधन के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं. मनदीप सिंह ने चार साल पहले खेत में पराली जलाना छोड़ दिया था. 'दि ट्रिब्यून' की रिपोर्ट के मुताबिक, मनदीप ने ना सिर्फ अपने खेत में पराली जलाना बंद किया, बल्कि पड़ोसियों, आस-पास के किसानों और रिश्तेदारों की भी मदद कर उनके यहां भी इस प्रथा को बंद कर दिया है. कुल मिलाकर देखें तो उन्होंने 70 किसानों की मदद की है.
हरमनदीप ने कहा, " मैं अब तक कम से कम 70 किसानों की मदद कर उन्हें पराली जलाने से रोक पाया हूं. लोगों को विश्वास दिलाने की जरूरत है. जब मैंने खेत में पराली जलाना बंद किया तो दोस्तों-रिश्तेदारों को भी भरोसा हुआ कि वाकई में ये संभव है और पराली नहीं जलाना चाहिए."
हरमनदीप ने बताया कि शुरू में लोग पराली प्रबंधन में रुचि नहीं ले रहे थे, लेकिन जब उन्होंने मेरे खेत में प्रबंधन के परिणाम देखे तो वे इसके लिए तैयार हो गए. हरमनदीप ने दावा किया कि उन्होंने पिछले चार सालों में अपने 10 एकड़ के खेत में धान या गेहूं के फसल अवशेष नहीं जलाएं हैं.
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हरमनदीप ने बताया कि वह गेहूं की बुवाई के लिए सुपर-सीडर मशीन का उपयोग कर रहे हैं. उन्होंने पराली प्रबंधन के फायदे को लेकर कहा कि खेतों में फसल अवशेष को खाद की तरह सड़ने देने से मिट्टी की क्वालिटी में सुधार हुआ है. अब पहले के मुकाबले फसलें आसानी से अपनी जड़ें फैला रही हैं. साथ ही पैदावार में भी इजाफा हुआ है. इसके अलावा खाद पर, खासकर यूरिया खरीदने पर उनका खर्च काफी कम हो गया है, जिससे लागत भी बच रही है. साथ ही यह दावा भी किया कि उनके खेत में पराली जलाने वाले किसानों के मुकाबले बेहतर पैदावार होगी.
हरमनदीप ने कहा कि पराली जलाने की समस्या छोटे किसानों से ज्यादा जुड़ी है, क्योंकि वे मशीन-उपकरण का खर्च नहीं उठा सकते हैं. एक सुपर-सीडर मशीन की कीमत 2 लाख रुपये से ज्यादा है. सब्सिडी मिलने के बाद भी इनमें से ज्यादातर किसान इसका खर्च नहीं उठा सकते. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में ज्यादतर किसानों ने पराली जलाना बंद कर दिया है.
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