इरादे बुलंद हों तो बड़े-बड़े काम आसान हो जाते हैं. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है टिहरी गढ़वाल में घनसाली के एक युवक ने. इस युवक का नाम नवीन नौटियाल है जो द्वारी गांव के रहने वाले हैं. इस युवक ने मधुमक्खी पालन को अपना रोजगार बनाया है. नतीजा ये है कि इनका नाम आज दूर-दूर तक फैल गया है. कोरोना काल में होटल लाइन से बेरोजगार हुए नवीन नौटियाल ने पहाड़ में ही अपना रोजगार शुरू किया है. नवीन अब मधुमक्खी पालन (honey bee farming) कर रहे हैं जिससे अच्छी कमाई होने लगी है. इसके अलावा वे आसपास के लोगों को प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार से जुड़ने के लिए जागरूक कर रहे हैं.
नवीन नौटियाल मधुमक्खी पालन के अलावा मशरूम की खेती (mushroom farming) में बड़ा काम कर रहे हैं. इस खेती ने उन्हें अच्छी आमदनी दिलाई है जिससे खुद का कारोबार तो चल ही पड़ा है. साथ में अन्य किसान भी प्रेरणा लेकर इस काम में लग गए हैं. बाकी किसान नई प्रकार की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
टिहरी जिले के घनसाली विधानसभा के द्वारी गांव के युवक नवीन नौटियाल ने कोरोना काल के समय हुई बेरोजगारी को मात देकर पहाड़ में ही मोन पालन (मधुमक्खी) और मशरूम का उत्पादन (mushroom farming) कर रोजगार शुरू किया. इसके बाद कड़ी मेहनत के बाद आज अच्छी कमाई कर अपने घर का भरण पोषण कर रहे हैं.
नवीन नौटियाल पिछले कई साल से होटल में कार्यरत थे मगर कोरोना काल में होटल बंद हो जाने से नवीन नौटियाल बेरोजगार हो गए. इसके बाद घर को चलाने के लिए उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. इस बुरे हालात से निपटने के लिए नवीन ने काफी मशक्कत की और खेती में हाथ आजमाने का सोचा. फिर नवीन नौटियाल ने अपने स्वयं के खर्चे से अपने ही गांव में मधुमक्खी पालन (honey bee farming) और मशरूम का उत्पादन शुरू किया. उनकी कड़ी मेहनत के बाद आज उनको कामयाबी मिली और अच्छी आमदनी मिल रही है.
वहीं अब ग्रामीणों ने नवीन नौटियाल की मेहनत और लगन देखकर कुछ ऐसी ही खेती करना शुरू किया है. नौटियाल को अच्छी रकम मिलती देख उनके गांव के किसान अब नवीन नोटियाल से मधुमक्खी पालन और मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण ले रहे हैं. इस बारे में कुंदन सिंह बिष्ट (स्थानीय निवासी) कहते हैं, जहां तक नवीन नौटियाल की मेहनत और परिश्रम की बात की जाए तो कड़ी मेहनत के बाद आज वे अच्छी तरह से अपने घर का भरण-पोषण कर रहे हैं और लोगों को भी निशुल्क स्वरोजगार से जुड़ने का प्रशिक्षण दे रहे हैं.
दूसरी ओर, स्थानीय लोगों का कहना है कि लगातार युवा बेरोजगारी के चलते रोजगार की तलाश में पहाड़ों से पलायन कर रहे हैं. अगर पहाड़ का युवा पहाड़ में ही स्वरोजगार से जुड़े तो पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आ सकती है. निश्चित तौर पर पहाड़ों से पलायन रुक सकता है.(रिपोर्ट/कृष्ण गोविंद कंसवाल)
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