मजदूर से लखपति‍ दीदी बनीं डांग की मांगीबेन, रागी के उत्‍पाद बेचकर हर महीने 60 हजार कमाता है समूह

मजदूर से लखपति‍ दीदी बनीं डांग की मांगीबेन, रागी के उत्‍पाद बेचकर हर महीने 60 हजार कमाता है समूह

गुजरात में ‘विकास सप्ताह’ के दौरान ‘कृषि विकास दिवस’ मनाया जा रहा है. डांग की मांगीबेन खास ने प्राकृतिक खेती और नागली उत्पादों के जरिए आत्मनिर्भरता हासिल की है, जिनकी कहानी जिलेभर की मह‍िलाओं को प्रेरित कर रही है. पहले मजदूर रहीं मांगीबेन अब हर महीने 60 हजार रुपये का कारोबार करती हैं और अन्य महिलाओं को रोजगार दे रही हैं.

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मजदूर से लखपति‍ दीदी बनीं डांग की मांगीबेन, रागी के उत्‍पाद बेचकर हर महीने 60 हजार कमाता है समूहदक्षिण डांग में नर्सरी तैयार करने और पौधारोपण का काम करती स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं. (फाइल फोटो/एएनआई)

7 अक्टूबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार शपथ लेने के 24 साल पूरे हुए. इस अवसर को याद करते हुए राज्‍य में 7 से 15 अक्टूबर तक ‘विकास सप्ताह’ मनाया जा रहा है. इस साल भी यह आयोजन जारी है, जिसके तहत 14 अक्टूबर को ‘कृषि विकास दिवस’ (Krushi Vikas Divas) के रूप में मनाया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए लगातार प्रेरित करते रहे हैं. उनका मानना है कि यह खेती टिकाऊ, लाभदायक और पर्यावरण के अनुकूल है. 

मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) की ओर से जारी बयान के मुताबिक, राज्य में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ मिट्टी और पर्यावरण की गुणवत्ता में भी सुधार हो रहा है. इसी कड़ी में, गुजरात के डांग जिले की मांगीबेन खास की कहानी आज पूरे राज्य के लिए प्रेरणा बन गई है. अपने घने जंगलों, वन उपज और जनजातीय संस्कृति के लिए प्रसिद्ध डांग  को 2021 में ‘पूरी तरह रासायनिक मुक्त खेती वाला जिला’ घोषित किया गया था. ‘हमारा डांग, प्राकृतिक डांग’ अभियान के तहत यहां की जनजातीय महिलाओं ने प्राकृतिक खेती को अपनाया और आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम उठाया है.

मजदूरी से सफल उद्यमी बनने तक का सफर किया तय

डांग जिले के अहवा तालुका के धवलीडोड गांव की रहने वाली मांगीबेन पहले मनरेगा के तहत मजदूरी करती थीं. उनके जीवन में बदलाव तब, आया जब मिशन मंगलम (राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन – NRLM) के फील्ड समन्वयकों ने उन्हें एक स्व सहायता समूह (SHG) से जुड़ने के लिए प्रेरित किया.

SHG से जुड़ने के बाद मांगीबेन ने महसूस किया कि उनके आस-पास के जंगल और खेतों में मौजूद प्राकृतिक संसाधन कितने मूल्यवान हैं. खासतौर पर ‘नागली (रागी या फिंगर मिलेट)’ नाम की मोटी अनाज वाली फसल, जो डांग में पारंपरिक रूप से उगाई जाती है, उनकी नई पहचान बनने वाली थी. नागली पोषक तत्वों से भरपूर है और आज के समय में इसे ‘सुपरफूड’ माना जाता है.

मिलेट प्रोसेसिंग की निशुल्‍क ट्रेनिंग ली

मांगीबेन को ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (RSETI) से मिलेट प्रोसेसिंग का निःशुल्क प्रशिक्षण मिला. उन्होंने नागली के आटे, लड्डू, कुकीज और हेल्थ मिक्स जैसे कई उत्पाद बनाना सीखा. प्रशिक्षण ने न केवल उन्हें नए कौशल सिखाए, बल्कि आत्मविश्वास भी दिया.

जब गुजरात सरकार ने डांग को “केमिकल-फ्री फार्मिंग डिस्ट्रिक्ट” घोषित किया, तो मांगीबेन ने पूरी तरह जैविक तरीके से नागली की खेती करने का फैसला किया. उन्होंने रासायनिक खादों की जगह गोबर खाद और प्राकृतिक जैव उर्वरकों का इस्तेमाल किया. इससे मिट्टी की सेहत बनी रही और उत्पादों की गुणवत्ता भी बढ़ी.

आर्थिक सशक्तिकरण की बनीं मिसाल

प्राकृतिक खेती से तैयार नागली उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी. पहले महीने में मांगीबेन ने 15,000 रुपये के उत्पाद बेचे. इसके बाद उन्होंने अपने समूह की 10 अन्य महिलाओं को भी इस कार्य में जोड़ा. आज उनकी इकाई हर महीने लगभग 60,000 रुपये का कारोबार करती है और मांगीबेन को 20,000 रुपये तक की मासिक आय होती है.

मांगीबेन अब न सिर्फ खुद आत्मनिर्भर हैं, बल्कि अन्य महिलाओं को भी रोजगार दे रही हैं. सरकार की मदद से वे विभिन्न प्रदर्शनियों और मेलों में अपने उत्पाद बेचती हैं. प्राकृतिक खेती मिशन के तहत उन्हें ब्रांडिंग और मार्केटिंग में भी सहयोग मिल रहा है.

मांगीबेन आज डांग जिले की कई जनजातीय महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं. उनकी सफलता यह संदेश देती है कि यदि स्थानीय संसाधनों का सही उपयोग किया जाए, तो आत्मनिर्भरता और सतत विकास दोनों संभव हैं. (एएनआई)

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