जोबनेर कृषि विश्वविद्यालय ने बारिश का पानी बचाकर बनाए वाटर पौंड, 35 करोड़ लीटर है भराव क्षमता

जोबनेर कृषि विश्वविद्यालय ने बारिश का पानी बचाकर बनाए वाटर पौंड, 35 करोड़ लीटर है भराव क्षमता

वाटर पौंड बनने से पहले विश्वविद्यालय प्रशासन कैंपस की जरूरतों के लिए पानी खरीद रहा था. पिछले करीब 25 साल से पानी खरीदा जा रहा था. ढाई दशक से विश्वविद्यालय जल संकट से जूझ रहा था. पीने के लिए भी पानी खरीदा जाता था. पानी की कमी के चलते कई अनुबंध भी टूट चुके थे. इस मॉडल से क्षेत्र के किसान भी जागरूक हो रहे हैं और अपने खेतों में पौंड बनवा रहे हैं.

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जोबनेर कृषि विश्वविद्यालय ने बारिश का पानी बचाकर बनाए वाटर पौंड, 35 करोड़ लीटर है भराव क्षमताजोबनेर में श्री कर्ण नरेन्द्र सिंह कृषि यूनिवर्सिटी ने बारिश का पानी को जमा कर करोड़ों लीटर पानी बचाया है. फोटो साभार- SKNSAU

राजस्थान की सबसे बड़ी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में शुमार श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर ने अपने नाम एक कीर्तिमान रचा है. विश्वविद्यालय ने कैंपस और इससे बाहर बरसात के पानी को इकठ्ठा कर पानी की जरूरत को पूरा कर लिया है. कैंपस सहित यूनिवर्सिटी ने करीब 10 वाटर पौंड बनाए हैं जिनकी कुल क्षमता 35 करोड़ लीटर से अधिक है. इसी में एक वाटर पॉन्ड 11 करोड़ लीटर भराव क्षमता का भी है. इस वाटर टैंक से कैंपस की पानी संबंधी सारी जरूरतें लगभग पूरी हो जाएंगी. इतना ही नहीं जरूरत के बाद भी पानी बचेगा जो अगले साल काम आ सकेगा.

कैच द रेन थीम पर बने यह वाटर पौंड बरसात के पानी को बेकार बहने से रोकने का सबसे अच्छा उदाहरण माना जा रहा है. 

पहले खरीद कर ला रहे थे पानी

वाटर पौंड बनने से पहले विश्वविद्यालय प्रशासन कैंपस की जरूरतों के लिए पानी खरीद रहा था. पिछले करीब 25 साल से पानी खरीदा जा रहा था. ढाई दशक से विश्वविद्यालय जल संकट से जूझ रहा था. पीने के लिए भी पानी खरीदा जाता था. पानी की कमी के चलते कई अनुबंध भी टूट चुके थे. इस मॉडल से क्षेत्र के किसान भी जागरूक हो रहे हैं और अपने खेतों में पौंड बनवा रहे हैं. पौंड को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत किया गया है. 11 करोड़ लीटर वाला वाटर पौंड 135 मीटर लंबा, 90 मीटर चौड़ा और 12 मीटर गहरा है. 

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यूनिवर्सिटी के वीसी बलराज सिंह ने किसान तक को बताया, “पहले कैंपस में पानी की बेहद कमी थी. बाहर से पानी खरीद कर लाना पड़ रहा था. लेकिन वाटर पौंड बनने से हमारी सारी जरूरतें पूरी हो रही हैं.  फिलहाल 10 पौंड बनाए गए हैं, जिनकी भराव क्षमता 35 करोड़ लीटर की है. इनमें से दो पौंड कैंपस से बाहर हैं. इनमें करण सागर, मरू सागर और नरेन्द्र सागर प्रमुख हैं. ”
बलराज जोड़ते हैं, “वाटर पौंड के अलावा कैंपस में ही एक वाटर रीसाइकलिंग प्लांट भी लगाया जा रहा है. जिसकी क्षमता एक लाख लीटर रोजाना की होगी. रीसाइकलिंग  टैंक बनकर तैयार हो चुका है, इसके कैंपस के हॉस्टल और अन्य जगहों से जोड़ने का काम बचा हुआ है. इस टैंक के बनने से कैंपस में इस्तेमाल होने वाला पानी इसमें जमा होगा. जिसे रीसाइकिल करने के बाद खेती के काम में लिया जाएगा.”

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10 हेक्टेयर में हो रहा खेती में शोध

कैंपस में बने इन पानी के बड़े पौंड से यूनिवर्सिटी मे कई तरह के अनुसंधान और शोध के काम हो रहे हैं. करीब 10 हेक्टेयर में उन्नत बीज उत्पादन और अन्य कृषि संबंधी काम किए जा रहे हैं. यूनिवर्सिटी कैंपस में बने इन तालाबों को राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र तक देखने आ चुके हैं. 

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