वो सिर्फ मुर्गियां-मछलियां ही नहीं पालतीं... वो सपने पालती हैं. वो मिट्टी की आख़िरी सांसों में नई ज़िंदगी फूंकती हैं. गाजियाबाद की मंजू कश्यप का नाम आज हजारों महिलाओं के लिए उम्मीद और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका है. लेकिन ये सफर आसान नहीं था. कभी वो भी घर की चारदीवारी में बंधी एक सामान्य गृहिणी थीं. समाज की सीमाओं से बंधी थीं. आज वही मंजू ज़मीन से जुड़े उस आंदोलन की प्रतीक बन गई हैं, जिसे हम एकीकृत खेती के नाम से जानते हैं. आइए, सिलसिलेवार तरीके से मंजू की इस प्रेरणादायी कहानी को जानते हैं
करीब पांच साल पहले मंजू ने पहली बार मछली पालन की तरफ कदम बढ़ाया. लोग हंसे. औरत होकर तालाब में उतरोगी? लेकिन मंजू ने ठान लिया था. उन्होंने तालाब खोदा. उसमें रोहू, कतला, मृगल और ग्लास कार्प जैसी मछलियां डालीं. हर मछली के साथ उन्होंने अपना डर, संकोच और गरीबी भी सी तालाब में विसर्जित कर दी. तरक्की की राह यहीं से खुलना शुरू हुई.
अब मंजू सिर्फ पानी पर ही नहीं, ज़मीन पर भी कमाल कर रही हैं. हाल ही में उन्होंने देसी नस्ल की एक हज़ार 'कैरी रेड' मुर्गियों का पालन शुरू किया है. उन्होंने बताया कि ये मुर्गियां नेचुरल खाना खा लेती हैं, बीमार कम पड़ती हैं और एक साल में 250 अंडे देती हैं. एक अंडा 30-35 रुपये में बिकता है. लेकिन कीमत मायने नहीं रखती है मंजू के लिए ये सिर्फ अंडा नहीं, आत्मनिर्भरता का ज़रिया है.
मंजू जिस जमीन पर खेती कर रही हैं, वो आसपास की फैक्ट्रियों के ज़हर से जूझ रही है. तालाब का पानी तक प्रदूषित हो चुका है. लेकिन मंजू ने हार नहीं मानी. उन्होंने जैविक खेती शुरू की. तालाब के चारों ओर 200 अमरूद के पेड़ लगाए. गोभी, टमाटर, भिंडी और बेलदार सब्जियां भी उन्हीं खेतों में फलने-फूलने लगीं. उनकी मेहनत देख नगर आयुक्त विक्रमादित्य मलिक तक प्रभावित हुए.उनके मॉडल को बड़े पैमाने पर अपनाने का आश्वासन दिया गया है.
बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर), पूसा में 109 उन्नत बीजों की किस्में जारी की थी. तब मंजू कश्यप ने पीएम मोदी से की मुलाकात की थी. मोदी ने उनकी सराहना की थी. पीएम मोदी से बातचीत के दौरान मंजू ने कहा कि गाजियाबाद की भूमि इतनी केमिकल हो चुकी है वहां का पानी मिट्टी दोनों दूषित हो चुका है. हम किसानों के लिए कोई भी फसल करना संभव नहीं है इसलिए वो एकीकृत खेती मॉडल को बढ़ावा दे रही हैं.
मंजू कश्यप आज एक किसान नहीं एक आंदोलन की जननी हैं. वो हर महिला के लिए मिसाल हैं जो बदलाव चाहती है, लेकिन पहला कदम उठाने से डरती है. उन्होंने साबित कर दिया कि अगर इरादा साफ हो तो तालाब भी समंदर बन सकता है और एक आम औरत, असाधारण कहानी लिख सकती है.
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