खेती-बाड़ी एक ऐसा पेशा है, जिसे अगर समझ के साथ किया जाए तो यह नाम के साथ-साथ पैसा भी दिलाता है. यहीं कारण है कि काफी संख्या में नए युवा इससे जुड़ रहे हैं और तकनीक का इस्तेमाल कर खेती कर रहे हैं और इससे करियर के विकल्प के तौर पर चुन रहे हैं. झारखंड के रांची जिले में रहने वाले एक ऐसे ही युवा किसान सचिन झा हैं, जो नई सोच के साथ खेती करते हैं. मसलन, वह खेती को उद्योग समझते हैं. इसी मंत्र के साथ उन्होंने पत्रकारिता छोड़ खेती की शुरुआत की और अब उन्हें आईसीएआर ने पूर्वी क्षेत्र में परवल की खेती के लिए ब्रांड अंबेसडर घोषित किया है.
सचिन झा बताते हैं कि उनका जन्म बिहार में हुआ, इसके बाद रांची में पढ़ाई लिखाई पूरी की. किसान परिवार से संबंध था इसलिए बचपन से ही घर में खेती-बाड़ी होते देखा. यहीं कारण रहा कि बचपन से ही उन्हें खेती का शौक था. 2001 में वह रांची आ गए, इसके बाद 2009 में डिप्लोमा इन इलेक्ट्राॅनिक एंड प्रिंट मीडिया की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद दूरदर्शन ज्वाइन कर लिया. यहां उन्होंने बतौर कृषि पत्रकार के तौर पर नौ सालों तक काम किया. कृषि कि रिपोर्टिंग करने के दौरान उन्होंने कृषि के क्षेत्र में किसानों के सामने आ रही समस्याओं को समझा, साथ ही झारखंड में कृषि कि बारीकियों को समझा.
कृषि में शुरुआत के साथ ही उन्होंने 2013 में मैत्री फाउंडेशन की स्थापना की. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूर्वी प्रक्षेत्र पलांडू के वैज्ञानिक धनंजय कुमार ने उन्हें पूरा सहयोग किया. इसके बाद सचिन झा ने 2017 में लापुंग में खेती करने के लिए लीज पर जमीन लिया. हालांकि यहां पर उन्हें सफलता नहीं मिली और दो साल में ही यहां पर उन्हें प्रोजेक्ट बंद करना पड़ा. इसके बाद उन्होंने रांची के ओरमांझी में लीज पर जमीन ली और खेती शुरु किया. फिर अच्छे से खेती करने के लिए दूरदर्शन से इस्तीफा दे दिया और खेती में पूरा ध्यान देने लगे.
सचिन झा ने प्रमुख तौर पर परवल की खेती करते हैं. वह झारखंड के 26 जिलों में परवल की खेती को बढ़ावा देने के लिए झारखंड सरकार की योजना के साथ कार्य कर रहे हैं. इस योजना के तहत इन जिलों के सैंकड़ों किसानों को परवल की खेती से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है.
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इसके अलावा वो राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसानों को 90 प्रतिशत अनुदान पर ड्रिप और स्प्रिंकल मुहैया कराते हैं. सचिन फिलहाल ओरमांझी में 24 एकड़ जमीन में कृषि कार्य करते हैं. यहां पर वह तरबूज, खरबूज, पत्तागोभी और फूलगोभी की खेती के अलावा ग्राफ्टिंग पौधे तैयार करते हैं और किसानों को देते हैं.
ग्राफ्टेड पौधे का फायदा यह होता है कि इसमें स्टेम बोरर नाम का कीट नहीं लगता है. सचिन ने बताया कि उन्होंने सिमडेगा, खूंटी, चाईबासा और रांची के किसानों को ग्राफ्टेड पौधे दिए थे. बैंगन और टमाटर दोनों की आईसीएआर की वेरायटी है. सचिन ने बताया की इन पौधो का रिस्पॉंस काफी अच्छा रहा और किसानों की तरफ से खूब मांग भी आ रही है. ग्राफ्टेड बैंगन के पौधे से प्रति पौधा 15-20 तक पैदावारा हासिल होती है जबकि टमाटर में 8-10 किलो तक पैदावार हासिल होती है.
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