
देश में किसानों की इनकम को लेकर लगातार बहस जारी है. लेकिन, इसे बढ़ाने में सफलता नहीं मिल पा रही है. इसकी एक बड़ी वजह किसानों द्वारा खेती का तौर-तरीका नहीं बदलना भी है. इनोवेशन से बनाई गई दूरी भी है. ऐसे में अब सरकार इस बात पर फोकस कर रही है कि किसान सिर्फ फसल न उगाएं बल्कि वो प्रोसेसिंग का भी हिस्सा बनें. उस प्रोडक्ट के वैल्यूचेन में शामिल हों. महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के राहता तालुका के लोनी गांव निवासी संजय और अनिता घोगरे ने कुछ ऐसा ही इनोवेशन किया और उनकी इनकम तीन गुना हो गई. यह किसान दंपति उन लोगों के लिए रोल मॉडल बन सकता है जो खेती-किसानी से अपनी आय नहीं बढ़ा पा रहे हैं.
संजय और अनीता ऑर्गेनिक हल्दी की खेती करते हैं. वो सिर्फ कच्ची और सूखी हल्दी नहीं बेचते बल्कि उससे आगे बढ़कर उन्होंने हल्दी पीसकर उसे प्रोडक्ट में बदला और ब्रांड बनाया. राज्य के जिन किसानों ने इस मंत्र को समझ लिया है वो अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. केले की खेती करने वाले जलगांव के किसान ने भी ऐसा ही प्रयोग करके अपनी जिंदगी बदली है, जिसकी कहानी हम आपको अगली खबर में बताएंगे. फिलहाल, संजय और अनीता की सक्सेस स्टोरी पर बात करते हैं.
यह किसान जोड़ी ऑर्गेनिक तरीके से हल्दी उगाकर खुद उसकी प्रोसेसिंग करते हैं. जिसमें हल्दी पाउडर और तेल बनाकर व्यापारियों को न बेचकर सीधा कस्टमर को देते हैं. स्थानीय स्तर पर उनकी शुद्धता की वजह से उनका ब्रांड इतना चमक गया है कि उन्हें हल्दी उगाने वाले आम किसानों के मुकाबले करीब तीन गुना का फायदा हो रहा है. इनके पास 5 एकड़ खेती है. लेकिन सिर्फ एक एकड़ में हल्दी उगाते हैं. उसका पाउडर बेचकर 4 लाख रुपये तक का फायदा कमा लेते हैं.
अनिता ने बताया कि उनकी सफलता की शुरुआत 2008 सबसे पहले ऑर्गेनिक हल्दी की खेती का प्रयोग करने से शुरू हुई. क्षेत्र में कोई किसान हल्दी की खेती नहीं करता था. करीब तीन साल की मेहनत के बाद हल्दी की अच्छी खेती शुरू हुई. उसके बाद प्रोसेसिंग की जानकारी ली. पाउडर बनाने के बाद उन्होंने सबसे पहले अपने जानने वालों को दिया. सबने उन्हें सलाह दी कि ये हल्दी पाउडर बहुत अच्छा है आप इसे मार्केट में बेचो. फिर अनिता ओर संजय ने दोनों से मिलकर ऐसा ही किया. माउथ पब्लिसिटी से इन्हें अच्छा प्रोमोशन मिला.
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अनिता ने बताया कि हल्दी की खेती में प्रति एकड़ लगभग 70 हजार रुपये तक का खर्च आता है. अगर सीधे हल्दी को बाजार में बेचते हैं तो उसका ज्यादा से ज्यादा भाव 80 रुपये किलो के हिसाब से मिलता है. जबकि हल्दी पाउडर की कीमत काफी बढ़ जाती है. इसके 500 ग्राम के पैकेट का भाव 150 रुपये तक मिलता है. प्रति किलो का हिसाब करें तो दाम तीन गुना तक हो जाता है.
आमतौर पर होता यह है कि जो अच्छी क्वालिटी का हल्दी होता है वो एक्सपोर्ट में चला जाता है और उससे कम गुणवत्ता की हल्दी का पाउडर बनाकर बड़े बिजनेसमैन घरेलू बाजार में उतारते हैं. लेकिन हम लोगों से इससे उल्टा किया. हमने एक्सपोर्ट की बजाय अच्छी क्वालिटी की हल्दी को स्थानीय बाजार में बेचने का फैसला किया. ऑर्गेनिक हल्दी का पाउडर 250 रुपये किलों में बेचते हैं. इससे स्थानीय लोगों को अच्छी हल्दी मिल रही है और हमारी इनकम बढ़ रही.
अनिता ने बताता की उनके पास हल्दी की सेलम और पीताम्बरी किस्में हैं. इसके अलावा सफेद हल्दी है जिसे अम्बे हल्दी किस्म कहा जाता हैं और इसका ज्यादातर इस्तेमाल मेडिसिन के तौर पर होता है. अनिता ने बताया कि उन्होंने कोरोना काल में हल्दी का काढ़ा बनाया. इसमें 3-4 किस्म के मसाले डाले हैं जिसे दूध में डालकर पी सकते हैं या फिर पानी में काढ़ा जैसे यूज़ कर सकते हैं. अनीता के पति संजय ने बताया कि वो लोग मुंबई, पुणे और लखनऊ जैसे शहरों की एग्जीबिशन में भी जाते हैं.
अनीता और संजय इसके पहले गन्ना, अदरक और गेंहू की खेती करते थे. लेकिन उसमें इतना मुनाफा नहीं हो पाता था. उनका कहना है कि अगर किसान खुद किसी कृषि उत्पाद की प्रोसेसिंग करे तो अच्छा फायदा होगा. यह किसान दंपत्ति सिर्फ हल्दी पाउडर ही नहीं बेचता बल्कि उसके पत्तों से तेल भी निकालता है. इसका उपयोग कॉस्मेटिक प्रोडक्ट में किया जाता है. पत्तों से तेल निकालने का प्रयोग पहली बार किया है. हल्दी का दूध मसाला, कुमकुम और अचार भी बनाते हैं. अनीता ने बताया हल्दी के अलावा लाल मिर्ची की भी प्रोसेसिंग करते हैं. आने वाले दिनों में अदरक पर भी काम करेंगे. दोनों की किसानों को सलाह है कि वो सिर्फ रॉ मैटीरियल न पैदा करें बल्कि खुद कुछ बनाना भी शुरू करें तो अच्छा मुनाफा होगा.
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