ओडिशा का कंधमाल जिला वह जगह है जहां पर आदिवासी किसानों की संख्या बहुत ज्यादा है. किसी समय में यहां पर फायदा न होने की वजह से पड़ोसी राज्यों में किसान बंधुआ मजदूरों के तौर पर काम करने को मजबूर थे. लेकिन अब ड्रैगन फ्रूट ने यहां पर किसानों को नए मौके दिए हैं. इसकी खेती से न केवल यहां के किसानों को फायदा हो रहा है बल्कि वो अब अपने ही जिले में खेती करके मालामाल भी हो रहे हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि ये किसान कभी गैर-कानूनी तरीके से गांजा की खेती करते थे.
ओडिशा टीवी की रिपोर्ट के अनुसार गांवों में कमाई को कोई और जरिया न होने की वजह से किसान या तो पड़ोसी राज्यों में मजदूर के तौर पर काम करते या फिर गांजा उगाने के लिए मजबूर थे. ड्रैगन फ्रूट की खेती ऐसे तमाम किसानों के लिए वरदान बनकर आई है जो अब लाखों कमा रहे हैं और आत्मनिर्भर बन गए हैं. किसान कैंद्र कन्हार ने कहा, 'आईटीडीए ने हमें ट्रेनिंग दी और ड्रैगन फ्रूट की खेती को समझने में हमारी मदद की. उनके निर्देशों के तहत ही हमने ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की और इसने हमें आत्मनिर्भर बना दिया है. शुरुआती फसल उम्मीद से कम थी लेकिन अब उत्पादन साल दर साल बढ़ रहा है.'
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एक और किसान बेलर कन्हार बताते हैं, 'पिछले साल हमारे पास सिर्फ 50 किलोग्राम ही फसल थी. हालांकि इस साल यह बढ़कर 3.50 क्विंटल हो गई है. हम इस साल के अंत से पहले एक और 1 क्विंटल फसल की उम्मीद कर रहे हैं. हम खुश हैं कि हमारी मेहनत आखिरकार रंग ला रही है.'
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दो साल पहले माओवादी प्रभावित फिरिंगिया ब्लॉक के गांव बेटाकेटा में पांच एकड़ जमीन सिंचाई न होने की वजह से बंजर पड़ी थी. जिला कलेक्टर के आदेश पर आईटीडीए ने इसमें हस्तक्षेप किया और ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए किसानों को जरूरी ट्रेनिंग और मदद मुहैया कराई.' अब यह इलाका ड्रैगन फ्रूट से भरा हुआ है जिसने क्षेत्र के कई किसानों को नई जिंदगी दी है. शुरुआत में ड्रैगन फ्रूट की खेती सिर्फ एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुई थी. लेकिन यह प्रयोग सफल रहा. अब जिला प्रशासन का लक्ष्य ड्रैगन फ्रूट की खेती को जिले के बाकी हिस्सों तक लेकर जाना है.
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यहां के ड्रैगन फ्रूट खरीदकर घर ले जाने वाली ममता मोहंती की मानें तो फूलबनी में ड्रैगन फ्रूट उनके लिए कुछ नया अनुभव है. उनका कहना था कि यह स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है. वह खुश हैं कि अब यहां के किसान आखिरकार कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं आईटीडीए के प्रोजेक्ट मैनेजर पी. मुरली मोहन की मानें तो इसने उन बाकी किसानों के लिए एक मिसाल कायम की है जिन्होंने खेती करना छोड़ दिया है या प्रवासी मजदूरों के तौर पर काम करना पसंद कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि पहले तो किसान ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे लेकिन अब जब उन्हें मुनाफ हुआ तो उनकी रूचि भी बढ़ गई है.
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