भारत में कृषि सेक्टर इस समय कई तरह की चुनौतियों से गुजर रहा है. प्रकृति की अनियमितता अनिश्चितता, मिट्टी का लगातार क्षरण होना और दिन पर दिन इसमें आय का घटना, यह कुछ ऐसी कठोर वास्तविकताएं हैं जिन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल है. लेकिन इनके बीच ही आंध्र प्रदेश की एक महिला किसान ने प्राकृतिक खेती में जिस तरह की सफलता हासिल की है, उसके बाद अब वह दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा बन गई हैं. जानिए क्या है कहानी आंध्र के एनटीआर जिले की किसान के रामदेवी की.
एनटीआर जिले के जी कोंडुरु मंडल के चेवुतुरु गांव की के रामदेवी एक नए प्रतीक के तौर पर उभरी हैं. उन्होंने प्राकृतिक खेती के जरिये जो सफलता हासिल की है, उसके बारे में अब सब जगह चर्चा हो रही है. रामदेवी बार-बार फसल के खराब होने से मिलती असफलताओं से खासी निराश हो चुकी थीं. लेकिन फिर उन्होंने कम से कम पानी और केमिकल फ्री इनपुट के तरीकों का प्रयोग करके स्थायी आजीविका के एक साधन को तैयार कर लिया है.
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रामदेवी और उनके पति श्रीनिवास राव ने कई सालों तक अपनी 2.30 एकड़ ज़मीन पर कपास की एकल फसल उगाने के लिए संघर्ष किया. उन्होंने बताया, 'उर्वरकों के बहुत ज्यादा प्रयोग से मिट्टी पत्थर की तरह सख्त हो गई थी. हमारे पास कोई बोरवेल नहीं था और अपने 42 आम के पेड़ों को जीवित रखने के लिए हमें सिंचाई के पानी के लिए पड़ोसियों पर निर्भर रहना पड़ता था.'
बार-बार फसल खराब होने के बाद परिवार ने करीब पांच साल तक खेती करना ही छोड़ दिया था. साल 2018 में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब रमादेवी ने आंध्र प्रदेश सामुदायिक प्रबंधित प्राकृतिक खेती (APCNF) की तरफ से प्राकृतिक खेती जागरूकता सत्र में भाग लिया. इसे रायथु साधिकारा संस्था (RySS)की तरफ से आयोजित किया गया था. इसके बाद एक लोकल सेल्फ हेल्प ग्रुप की नेता के तौर पर उन्होंने किचन गार्डन के साथ प्रयोग करना शुरू किया.
रमादेवी कहती हैं कि अब सब्जियों का स्वाद बेहतर हुआ है और वो लंबे समय तक ताजा रहती हैं. साथ ही मेरे परिवार का स्वास्थ्य भी बेहतर हुआ. यहीं से उन्हें अपने पूरे आम के बगीचे में प्राकृतिक खेती करने का आत्मविश्वास मिला. उन्होंने प्री-मानसून ड्राई सोइंग (PMDS) को अपनाया, फसल विविधता की शुरुआत की, और जीवामृतम और नीम-आधारित रिपेलेंट्स जैसे प्राकृतिक इनपुट का प्रयोग किया. केंचुओं की वापसी और मिट्टी की नमी बनाए रखने के साथ उनके खेत फिर से जिंदा हो गए. उनकी कपास की फसल 2024 की बुडामेरु बाढ़ का सामना कर सकी, जबकि पड़ोसी रासायनिक खेतों को भारी नुकसान हुआ.
हाल ही में केरल के कृषि मंत्री पी प्रसाद के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने उनके खेत का दौरा किया. इस प्रतिनिधिमंडल ने पाया कि ब्रिक्स मूल्य 15 फीसदी है जो पौधों के स्वास्थ्य और पोषक तत्वों की मात्रा का एक संकेतक होता है. यह रासायनिक खेती वाले खेतों की तुलना में कहीं ज्यादा है. रामदेवी की आय में भी काफी बदलाव आया है. अब वह कपास से 64,000 रुपये और अंतर-फसल से 38,000 रुपये कमाती हैं. वहीं उनका 'एनी टाइम मनी' (एटीएम) सब्जी मॉडल हर महीने 10,000 रुपये कमाता है. उनका कहना है कि प्राकृतिक खेती ने उनके जीवन में स्थिरता ला दी है. अब उन्हें सूखे या कीटों के हमलों का डर भी नहीं रहता.
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