तेलंगाना के करीमनगर जिले में अथॉरिटीज कई किसानों को एक से ज्यादा फसलें उगाने के लिए प्रेरित कर रही हैं. उनका मकसद ऐसा करके मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करना और परिस्थितिक संतुलन को बरकरार रखना है. कई किसान इस नई तकनीक को अपनाने से हिचके तो कुछ इसलिए निराश थे कि उन्हें मनमाफिक नतीजे नहीं मिल सके. वहीं दूसरी ओर कोंडपुर गांव में कुछ ऐसा हुआ है जो बाकी किसानों को प्रेरणा दे सकता है. यहां के एक किसान ने धान के खेत में पपीते की खेती करके सबको हैरान कर दिया है.
यहां के किसान कुंता अंजनैया अपनी 4.2 एकड़ भूमि में धान की खेती कर रहे थे. वह इससे अच्छा पैसा भी कमा रहे थे. लेकिन अधिकारियों की तरफ से लगातार किसानों को बाकी फसलें उगाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा था. इस वजह से उन्होंने 'ताइवान रेड लेडी पपीता' को अपनी दूसरी फसल के रूप में चुना. इसे उगाने के लिए खेत में 1.2 एकड़ जगह अलॉट कर दी और बस इसकी खेती शुरू हो गई.
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अंजनैया को कृषि प्रौद्योगिकी और प्रबंधन एजेंसी (एटीएमए) के कर्मचारियों ने उन्हें पपीते की खेती की तकनीक को समझने में मदद की. साथ ही उन्हें उर्वरक प्रबंधन के बारे में जानकारी दी. अंजनैया ने बताया कि वह पपीता उगाकर आज हर महीने 53,600 रुपये का नेट प्रॉफिट कमाने में सक्षम हैं. उनकी सफलता की कहानी आसपास के कई लोगों के लिए प्रेरणा है. आस-पास के इलाकों के किसान उनके खेत पर आते हैं और उनसे कई तरीके सीखते हैं.
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शुरुआत में उन्हें डर लग रहा था कि क्या वह उपज बेच पाएंगे. हालांकि वह उत्पाद सीधे खेत से खरीद करने वाले व्यापारियों को बेचते हैं. वो उनकी फसल लेते हैं और उसे बाजार में बेचते हैं. अंजनैया के मुताबिक फसल के मौसम के दौरान वह करीमनगर बाजार में 250 किलोग्राम पपीता बेच सकते हैं. वह बताते हैं कि खरीफ सीजन के दौरान वह धान उगाते हैं. लेकिन वह सब्जियों की खेती करना चाह रहे हैं क्योंकि उन्होंने देखा कि पपीता उगाने से उन्हें धान की खेती से मिलने वाला मुनाफा बहुत ज्यादा है.
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एटीएमए प्रोजेक्ट डायरेक्टर एन प्रियदर्शनी ने बताया कि वो किसानों को पपीता और ड्रैगन फ्रूट उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं. उनकी मानें तो किसानों की सहायता के लिए कृषि वैज्ञानिकों की एक टीम को शामिल किया गया है. इनकी पहचान संगठन की तरफ से की गई है. वह बताती हैं कि पपीते की फसल छह महीने में तैयार हो जाती है, जिससे किसान को अच्छा रिटर्न मिलता है. हालांकि ऐसी संभावना है कि पीला मोजेक वायरस फसल को प्रभावित करता है. ऐसे में किसान सही नर्सरी मैनेजमेंट के साथ इसे नियंत्रित कर सकते हैं.
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