सरसों की खेती करने वाले किसान इस साल बहुत पछता रहे हैं. जबकि यह प्रमुख तिलहन फसल है. हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश तक कहीं भी ओपन मार्केट में किसानों को इसका एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य के आसपास भी भाव नहीं मिल रहा है. केंद्र सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए सरसों का एमएसपी 5650 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. जबकि किसानों को मार्केट में इसका दाम 3500 से लेकर 4500 रुपये प्रति क्विंटल तक ही मिल पा रहा है. किसानों का कहना है कि वो इसीलिए एमएसपी की गारंटी चाहते हैं ताकि निजी क्षेत्र उनका शोषण बंद करे. अभी एमएसपी सिर्फ सरकारी खरीद पर लागू होती है.
कुल मिलाकर इस साल सरसों की खेती करने वाले किसान 1000 से 2000 रुपये प्रति क्विंटल तक का घाटा सहकर उपज व्यापारियों को बेचने पर मजबूर हैं. ऐसे में अब उन्होंने नई रणनीति के तहत अच्छे दाम की उम्मीद में सरसों को स्टोर करना शुरू कर दिया है. क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत खाद्य तेलों का बड़ा आयातक है इसलिए आने वाले दिनों में इसका दाम तो बढ़ेगा ही. किसानों को यह भी उम्मीद है कि चुनाव के बाद सरकार खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा सकती है. ऐसा हुआ तो दाम बढ़ जाएंगे.
किसानों की सरसों स्टोर करने वाली रणनीति का असर मंडियों पर साफ दिखाई दे रहा है. मंडियों में पिछले वर्षों के मुकाबले सरसों की आवक काफी कम हो गई है.
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केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि 2023 के मुकाबले इस साल सरसों की आवक 20 फीसदी कम है, जबकि 2022 के मुकाबले 28 परसेंट की कमी दर्ज की गई है. मंत्रालय ने इस साल 15 से 22 अप्रैल के बीच किए गए एक विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकाला है.
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर का कहना है रूस और यूक्रेन दोनों देश इस समय बहुत सस्ता सूरजमुखी तेल बेच रहे हैं. कारोबारियों ने सूरजमुखी के तेल का आयात बढ़ा दिया है. इससे भारतीय बाजार में काफी हलचल है. आमतौर पर सूरजमुखी तेल पाम ऑयल और सोयाबीन तेल से महंगा होता है, लेकिन इस समय यह सबसे सस्ता हो गया है. ऐसे में इसका आयात बढ़ गया है. आयात बढ़ने के कारण भारत के किसानों को तिलहन फसलों का सही दाम नहीं मिल रहा है.
किसानों को सरसों का कम दाम मिलने की एक वजह खाद्य तेलों पर कम की गई इंपोर्ट ड्यूटी भी है. सरकार ने खाद्य तेलों की महंगाई घटाने के लिए पिछले वर्षों के मुकाबले आयात शुल्क काफी कम कर दिया है. आयात शुल्क कम है, इसलिए आयात ज्यादा हो रहा है, जिससे भारतीय किसानों को उनकी तिलहन फसलों का दाम नहीं मिल रहा है. हालांकि, अब देखना यह है कि सरसों स्टोर करने वाली किसानों की रणनीति भविष्य में उन्हें फायदा देगी या नहीं.
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