
हिमाचल प्रदेश के बंजार उपमंडल के तरगाली गांव की अनीता देवी का नाम आज जैविक खेती की दुनिया में बड़ी पहचान बना चुका है. 2018 में महज 12 बिस्वा जमीन पर खेती शुरू करने वाली अनीता आज 13 बीघा भूमि में जैविक खेती कर सालाना 40 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी कमा रही हैं. उनकी यह यात्रा न सिर्फ आर्थिक सफलता की मिसाल है, बल्कि एक प्रेरणादायक कहानी भी है, जिसने कई अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की राह दिखाई है.
अनीता देवी किसान तक को बताती हैं, "मैं कुल्लू से ताल्लुक रखती हूं और खेती करते हुए मुझे 25 साल हो गए हैं. शादी के बाद से ही खेती से जुड़ी रही, लेकिन शुरुआत में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करती थी. हम लहसुन, गोभी, मटर और टमाटर उगाते थे और ठीक-ठाक मुनाफा भी होता था. लेकिन धीरे-धीरे महसूस हुआ कि रासायनिक खेती से जमीन की उर्वरता खत्म हो रही है. खेत में स्प्रे करने जाती तो मेरा शरीर बीमार पड़ने लगा, हाथों में खुजली होती और थकान महसूस होती थी."
इसी दौरान, अनीता ने हिमाचल प्रदेश के नेचुरल फार्मिंग डायरेक्टर द्वारा आयोजित एक कैंप में भाग लिया और प्राकृतिक खेती के बारे में सीखा. इसके बाद उन्होंने ठान लिया कि अब वे जैविक खेती की राह अपनाएंगी.
अनीता ने शुरुआत में 12 बिस्वा जमीन में जैविक खेती की. गोबर खाद का उपयोग करने के बाद मिट्टी की उर्वरता धीरे-धीरे वापस आने लगी. फिर उन्होंने 3 बीघा में जैविक खेती का एक मॉडल तैयार किया. इस मॉडल में मुख्य फसल सेब थी, लेकिन उन्होंने मिश्रित खेती की तकनीक अपनाई और 10-12 अलग-अलग फसलें उगाईं.
साथ ही, उन्होंने नर्सरी का भी काम शुरू किया. वे बताती हैं, "2020-21 में मैंने 1500 पेड़ लगाए थे, अगले साल यह संख्या 15,000 हुई, फिर 20,000 और इस बार 40,000 पौधे तैयार किए हैं. इन पौधों की अच्छी गुणवत्ता देखकर लोग इन्हें खरीदने आने लगे. तब मुझे समझ आया कि सिर्फ फसल ही नहीं, बल्कि पौधों की नर्सरी से भी अच्छी कमाई की जा सकती है."
अनीता बताती हैं कि रासायनिक खेती में हर साल 50,000 से 1 लाख रुपये तक खर्च हो जाता था, लेकिन जैविक खेती के बाद यह लागत घटकर मात्र 10,000-15,000 रुपये रह गई. साथ ही, उत्पादन भी बेहतर हुआ.
वह कहती हैं, "सेब की खेती से हम 200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं, जिससे सालाना 4-5 लाख रुपये की कमाई हो जाती है. लेकिन असली मुनाफा नर्सरी से होता है. अब तक 25,000 पौधे बिक चुके हैं, जिससे 32-33 लाख रुपये की आय हो चुकी है. कुल आमदनी हर साल करीब 38-39 लाख रुपये तक पहुंच जाती है."
शुरुआत में अनीता को अपने परिवार का समर्थन नहीं मिला था. वे बताती हैं, "घरवाले जैविक खेती के पक्ष में नहीं थे, लेकिन मैंने छह महीने मेहनत कर उन्हें दिखाया कि यह मिट्टी कैसे उपजाऊ बन सकती है. जब उन्होंने नतीजे देखे, तो वे भी मेरा साथ देने लगे और अब पूरा परिवार इस काम में लगा है." बता दें, अनीता की एक बेटी है जिनकी शादी हो चुकी है, एक बेटा है जो उन्हीं साथ खेती में लगा है. और साथ ही पति भी उनका साथ देते हैं.
अनीता की सफलता ने न सिर्फ उनके परिवार, बल्कि पूरे गांव और अन्य महिलाओं को भी प्रेरित किया. 2019 में उन्हें बंजार ब्लॉक की मास्टर ट्रेनर बनाया गया और अब तक वे 36 प्रशिक्षण शिविरों में 300 से अधिक किसानों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं. इनमें से 70% महिलाएं हैं, जो किचन गार्डन से लेकर खेतों तक जैविक खेती कर रही हैं और लाखों रुपये कमा रही हैं.
अनीता की मेहनत को कई मंचों पर सराहा गया है. वे बताती हैं, "2010 में मुझे बेस्ट फार्मर अवार्ड मिला था. हाल ही में लुधियाना में आईसीएआर की ओर से इनोवेटिव वुमन एंटरप्रेन्योर अवार्ड मिला. पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय ने मुझे 'उन्नत एवं प्रेरणास्रोत कृषि दूत' सम्मान दिया, जबकि राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, हरियाणा ने भी सम्मानित किया है."
अनीता अब अपने खेती के मॉडल को और आगे बढ़ाने की योजना बना रही हैं. वे चाहती हैं कि हिमाचल प्रदेश में जैविक खेती एक आंदोलन बने, जिससे किसान अपनी जमीन की उर्वरता बनाए रखते हुए बेहतर आमदनी कमा सकें.
उनका सपना है कि आने वाले वर्षों में और अधिक किसान जैविक खेती की ओर बढ़ें और इससे न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो, बल्कि स्वास्थ्य भी बेहतर बना रहे. अनीता देवी की कहानी इस बात का प्रमाण है कि अगर सच्ची लगन और मेहनत हो, तो सीमित संसाधनों में भी सफलता की नई ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है.
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