हिमाचल प्रदेश में मंडी जिले के गोहर उपमंडल के चर्खा गांव के युवा भाग सिंह ने तकनीकी क्षेत्र से निकलकर खेती की राह चुनी और फूलों की खेती (फ्लोरीकल्चर) करके सफलता हासिल की है. IT में ग्रेजुएट होने के बाद भाग सिंह ने कुछ समय तक तकनीकी क्षेत्र में काम किया, लेकिन जल्द ही उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें खेती करने में दिलचस्पी है.
लेकिन परंपरागत खेती में आने वाली परेशानियां जैसे अनिश्चित आय और मौसम की मार आदि. ऐसे में, भाग सिंह ने सस्टेनेबल खेती के विकल्प तलाशने शुरू किए. इस दौरान उन्हें बागवानी विभाग से मार्गदर्शन मिला.
ट्रेनिंग लेकर शुरू की खेती
पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद भाग सिंह ने 2020 में "मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (MIDH)" और "हिमाचल पुष्प क्रांति योजना" के तहत तीन पॉलीहाउस लगाए और फूलों की खेती शुरू की. शुरुआत उन्होंने कार्नेशन फूल से की, जिसे दिल्ली की मंडियों में अच्छी मांग और मुनाफा मिला. इस सफलता ने उन्हें अपनी खेती का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया.
आज भाग सिंह लगभग 1,700 वर्ग मीटर जमीन पर कार्नेशन, स्प्रे कार्नेशन, स्टॉमा और जिप्सोफिला जैसे उच्च मांग वाले फूलों की खेती कर रहे हैं. करीब 20 लाख रुपये की लागत से उन्होंने सिंचाई प्रणाली, पौधारोपण और सपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया. इस लागत में 15–16 लाख रुपये की सब्सिडी उन्हें सरकार की योजनाओं से मिली.
हर महीने लाख रुपये की कमाई
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट की मुताबिक, भाग सिंह सालाना 10–12 लाख रुपये की आय कर रहे हैं यानी लगभग लाख रुपये प्रतिमाह. उन्होंने बताया कि सरकार की योजनाओं से सिर्फ आर्थिक मदद ही नहीं, बल्कि नवाचार की प्रेरणा भी मिलती है जिससे युवा खेती को एक आधुनिक और फायदे वाले पेशे के रूप में अपना सकते हैं.
गोहर ब्लॉक में हिमाचल पुष्प क्रांति योजना और MIDH अब लोकप्रिय हो रही हैं। अब तक 66 किसान पॉलीहाउस आधारित फूलों की खेती अपना चुके हैं. साल 2022 से अब तक लगभग 60 लाख रुपये की सब्सिडी दी जा चुकी है. इन योजनाओं के तहत पॉलीहाउस पर 85% तक, ड्रिप सिंचाई पर 80% और परिवहन खर्च पर 25% की राहत मिलती है. साथ ही सोलर फेंसिंग से फसलों को आवारा जानवरों से सुरक्षा भी मिलती है.
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