भारत के विकासोन्मुख राज्यों में बिहार तेजी से आगे बढ़ रहा है. इस बदलते बिहार में ग्रामीण क्षेत्रों में आय का एक प्रमुख स्रोत मधुमक्खी पालन बनता जा रहा है. इस क्षेत्र में कई महिलाओं ने ऐसी सफलता हासिल की है कि जिससे उनकी पहचान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बन गई है. इन किसानों की प्रेरणादायक कहानियां स्कूली छात्रों को भी बताई जा रही है. इन्हीं में से एक नाम अनीता कुशवाहा का भी है, जो न केवल स्वयं सशक्त हैं, बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक और आत्मनिर्भर बना रही हैं.
मुजफ्फरपुर जिले के बोचहा प्रखंड के पटियासा जलाल गांव की निवासी अनीता कुशवाहा पिछले 25 वर्षों से मधुमक्खी पालन से जुड़ी हुई हैं. उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी मेहनत और लगन से अपनी आर्थिक स्थिति को न केवल सुदृढ़ किया है, बल्कि अन्य लोगों को भी मधुमक्खी पालन और शहद मार्केटिंग का प्रशिक्षण दे रही हैं. इस व्यवसाय से सालाना 14 लाख रुपये से अधिक की कमाई हो रही है. वहीं, उनकी सफलता की कहानी राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की चौथी कक्षा की पाठ्यपुस्तक में भी शामिल की गई है.
अनीता कुशवाहा बताती हैं कि उन्होंने 2002 में केवल दो बॉक्स के साथ मधुमक्खी पालन की शुरुआत की थी. लेकिन इन दो बॉक्स को खरीदने के लिए भी उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी. वह बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण नियमित स्कूल नहीं जा पाती थीं. किताबों के प्रति उनके लगाव ने उन्हें बिना घर वालों को बताए स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया. विद्यालय द्वारा कक्षा पांच तक निःशुल्क शिक्षा दी गई. लेकिन, आगे की कक्षाओं के लिए आर्थिक समस्या बनी रही. इसी कारण, उन्होंने कक्षा छह से ही छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया.
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आगे अनीता बताती हैं कि उनके गांव के लीची बागानों में बाहर से लोग मधुमक्खी पालन के लिए आते थे, जिन्होंने उन्हें भी इस व्यवसाय करने की सलाह दी. जिसके बाद उन्होंने ट्यूशन से बचाए हुए दो हजार रुपये और परिवार से मिले तीन हजार रुपये मिलाकर कुल पांच हजार रुपये में दो बॉक्स खरीदे और मधुमक्खी पालन शुरू कर दिया. आज उनके पास 450 बॉक्स हैं, जिनसे सालाना लगभग 15,000 किलो शहद का उत्पादन होता है. वर्तमान में वह सरसों, लीची, जामुन और तुलसी के फूलों से शहद संग्रह कर रही हैं.
अनीता कुशवाहा बताती हैं कि उनके गांव में 80 प्रतिशत लोग मधुमक्खी पालन से जुड़े हुए हैं. हालांकि, किसानों को उनकी मेहनत के अनुरूप शहद का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है. इसका मुख्य कारण यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को बाजार में शहद बेचने का सही तरीका नहीं पता है. इसी जानकारी के अभाव में किसान मजबूर होकर 80 रुपये प्रति किलो के हिसाब से शहद कंपनियों को बेच देते हैं. इन्हीं समस्याओं को देखते हुए अनीता ने खुद की शहद प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की.
पिछले दो वर्षों से वे 'अनीता's शहद' के नाम से शहद का पैकेजिंग और बिक्री कर रही हैं. जहां पहले वे 80 रुपये प्रति किलो शहद बेचती थीं, अब वे 300 से 400 रुपये प्रति किलो शहद बेच रही हैं. अनीता न केवल अपने शहद का प्रसंस्करण करती हैं, बल्कि अन्य किसानों के शहद की प्रोसेसिंग भी करती हैं और उन्हें शहद को खुद बेचने के लिए प्रेरित करती हैं. वे अपने शहद को सरकार द्वारा आयोजित मेलों और विभिन्न दुकानों में भी बेचती हैं.
अनीता कुशवाहा ने पोस्ट ग्रेजुएट किया है. यह कहती हैं कि उनके घर में महिलाओं या लड़कियों को पढ़ने का अधिकार नहीं था. उनकी मां, चाची, दादी सहित अन्य बहनें उस समय स्कूल नहीं जाता था. लेकिन उनके पढ़ने के साथ ही आज उनकी मां भी शिक्षित हो चुकी हैं. जहां कभी बैंक में पैसे निकालने के लिए मां को दूसरे का सहारा लेना पड़ता था. वहीं, उन्होंने खुद की पढ़ाई करने के साथ अपनी मां को लिखना और पढ़ना सिखाया. आज वह खुद बैंक में जाकर अपना पैसा निकाल लेती हैं और जमा कर लेती हैं.
अनीता शिक्षा और अपनी मेहनत की बदौलत आज सामाजिक स्तर पर इस मुकाम पर पहुंच चुकी हैं कि उनकी सफलता की कहानी लोग जानना चाहते हैं. वहीं, अब राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (ncert) की चौथी क्लास के एनवायरमेंट स्ट्डीज लुकिंग अराउंड पाठ्य पुस्तक में विद्यार्थी इनकी सफलता की कहानी पढ़ रहे हैं. अपने जीवन में उसका अनुसरण कर रहे हैं.
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अनीता कुशवाहा बताती हैं कि उनके घर में महिलाएं और लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं. उनकी मां, चाची, दादी सहित अन्य बहनें कभी स्कूल नहीं गई थीं. लेकिन अनीता ने अपनी पढ़ाई के साथ मां को भी शिक्षित बनाया. वह कहती हैं कि पहले, उनकी मां को बैंक में पैसे निकालने के लिए दूसरों का सहारा लेना पड़ता था. लेकिन अनीता ने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपनी मां को भी पढ़ना-लिखना सीखा दिया जिसके बाद से उनकी मां खुद बैंक जाकर अपना पैसा निकाल और जमा करती हैं.
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