हरियाणा का नाम सुनते ही लोगों को लगता है कि यहां के किसान सिर्फ धान-गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों की ही खेती करते हैं, लेकिन ऐसी बात नहीं है. अब यहां के किसान दूसरे राज्यों की तरह बागवानी में भी दिलचस्पी ले रहे हैं. इससे उन्हें बंपर कमाई भी हो रही है. आज हम सिरसा जिले के थूसरी चोपता क्षेत्र के एक ऐसे किसान के बारे में बात करेंगे, जो अनार के खेत में तरबूज, खरबूज, खीरा और लौकी की खेती से लाखों रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं. उनका कहना है कि बागवानी फसलों की खेती से उनकी किस्मत चमक गई है.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सफल किसान का नाम मोहर सिंह न्योल है और वे कुम्हारिया गांव के रहने वाले हैं. मोहर सिंह का कहना है कि उन्होंने तीन साल पहले तीन एकड़ में अनार की खेती शुरू की थी. जब तक पौधे बड़े नहीं हो गए, उन्होंने अनार के पौधों के बीच तरबूज, खीरा, लौकी और कुम्हड़ा की खेती की, जिससे उन्हें एक्स्ट्रा इनकम होने लगी. मोहर सिंह का कहना है कि जब तक अनार के पेड़ों में फल नहीं लगते, तब तक वे तरबूज, खीरा, लौकी और कुम्हड़ा उगाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं. उनके अनुसार, पारंपरिक खेती के साथ-साथ बागवानी और फल-सब्जियां उगाकर किसान आत्मनिर्भर बन सकते हैं.
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मोहर सिंह ने बताया कि नहरी पानी की कमी, प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों के कारण पारंपरिक फसलों की पैदावार कम हो गई है, जिससे बचत कम हो रही है. खेती से आय बढ़ाने के लिए उन्होंने अन्य विकल्प तलाशने शुरू किए. उनके बेटे रोहताश ने अखबारों में बागवानी के बारे में पढ़ा और तीन एकड़ में अनार का बाग लगाया. अब तक अनार के पेड़ों में फल लगने शुरू हो गए हैं, इसलिए मोहर सिंह ने तीन एकड़ में अनार की कतारों के बीच तरबूज, खीरा, लौकी और कुम्हड़ा लगाया, इससे उन्हें इस सीजन में करीब 3 लाख रुपये की कमाई हुई है.
उन्होंने बताया कि वे बागवानी में मुख्य रूप से जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं. जब तक अनार के पौधे पूरी तरह से पककर फल देने न लगें, तब तक वे कतारों के बीच सब्जियां उगाते रहेंगे, जिससे उन्हें अतिरिक्त आय होगी. इस तरह उन्हें दोगुना फायदा हुआ. उन्होंने यह भी बताया कि कुम्हारिया, खेड़ी, गुसाईना और आसपास के गांवों के लोगों को उनके खेत की सब्जियां बहुत पसंद आईं. आधुनिक तरीकों से खेती कर मोहर सिंह इलाके और राजस्थान के आसपास के गांवों के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं.
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किसान मोहर सिंह ने बताया कि उन्होंने अपने खेत में डिग्गी (पानी की टंकी) बनाई है और जरूरत पड़ने पर वे ड्रिप सिस्टम से सीधे जड़ों में सिंचाई करते हैं. इससे पानी की बचत होती है और पौधों को जरूरत के मुताबिक पानी और पोषक तत्व मिलते रहते हैं. मोहर सिंह ने बताया कि सिरसा का बाजार उनके गांव से बहुत दूर है, जिससे परिवहन लागत बढ़ जाती है और बचत कम हो जाती है. इसके अलावा, फलों को संरक्षित करने के लिए आस-पास कोई वैक्सिंग प्लांट भी नहीं है. उन्होंने सुझाव दिया कि अगर नाथूसरी चोपता में फलों और सब्जियों की मंडी विकसित की जाए और वैक्सिंग प्लांट स्थापित किया जाए, तो परिवहन लागत कम हो जाएगी, जिससे किसानों को अधिक बचत होगी.
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