भोपाल की रहने वाली लवली गुप्ता ने यह साबित कर दिया कि जब संकल्प मजबूत हो और दिशा सही हो, तो कोई भी राह असंभव नहीं होती. पेशे से फार्मासिस्ट रहीं लवली ने पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते फार्मा कंपनी की नौकरी छोड़ने का कठिन फैसला लिया, लेकिन अपने आत्मबल और नई सोच से उन्होंने स्वरोजगार की राह पकड़ी. अपने बच्चे की बीमारी के दौरान घर के करीब रहकर कोई काम शुरू करने की सोच ने उन्हें मत्स्य पालन की ओर प्रेरित किया.
मछली विभाग से मार्गदर्शन पाकर उन्होंने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का लाभ लिया और सब्सिडी लेक रंगीन मछलियों की यूनिट लगाई. अपने पति के सहयोग से उन्होंने भोपाल और आसपास के जिलों में रंगीन मछलियों की बिक्री और एक्वेरियम को लगाने का काम शुरू किया. आज उनकी इकाई से उन्हें लगभग 1 लाख रुपये प्रति माह की शुद्ध आय प्राप्त हो रही है. यह सिर्फ उनकी सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि उन सात लोगों की भी है जिन्हें उन्होंने इस काम से प्रत्यक्ष रूप से रोजगार दिया है. इसके अतिरिक्त विक्रय केंद्रों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से भी रोजगार के अवसर बनाए गए हैं.
लवली गुप्ता का यह सफर न केवल आत्मनिर्भरता की मिसाल है, बल्कि यह भी दिखाता है कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना जैसे सरकारी कार्यक्रम किस प्रकार से आम नागरिकों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला रहे हैं. लवली ने मत्स्य विभाग, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके सहयोग के बिना यह संभव नहीं था.
मत्स्य पालन से जुड़ी एक और सफलता की कहानी भोपाल जिले से ही है. भोपाल के एक गांव ईटखेड़ी में जलील मो. खान ने 2022-23 में अपनी निजी भूमि पर “प्रमोशन ऑफ़ रेक्रीऐशनल फिशरीज” इकाई की स्थापना की. इस इकाई का निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि मत्स्यपालन और मछली उत्पादन के साथ-साथ मनोरंजन की गतिविधियां भी चल सकें, जिससे आमजन का मत्स्य पालन गतिविधियों की ओर जुड़ाव बढ़े और साथ ही आय का साधन भी विकसित हो.
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत जलील खान ने आवेदन दिया जिले जिला स्तरीय समिति से अनुमोदन मिला और इकाई के 50.00 लाख रुपये के खर्च के बाद 20.00 लाख की अनुदान राशि दी गई. निर्माण के बाद पार्क में लोगों की रुचि बढ़ी और बीते एक साल में अलग-अलग आयोजनों के माध्यम से औसतन 60,000 रुपये प्रतिमाह की आय मिली है. साथ ही, लगभग 12.00 मीट्रिक टन पंगेशियस मछली का उत्पादन कर उसे बेचने से 8.00 लाख की आय प्राप्त हुई. इस प्रकार कुल 15.00 लाख की वार्षिक आय हुई है.
पार्क के संचालन में स्थानीय लोगों को सम्मिलित कर रोजगार के अवसर भी दिए गए हैं. हलाली नदी के नजदीक स्थित होने के कारण भविष्य में जल कीड़ा गतिविधियों के संचालन की योजना बनाई जा रही है, जिससे अतिरिक्त आय और स्थानीय लोगों को रोजगार के और अधिक अवसर मिल सकें. इस प्रकार प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के माध्यम से निर्मित ईटखेड़ी स्थित ऐक्वा पार्क न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता का माध्यम बना है, बल्कि ग्रामीण विकास और रोजगार सृजन का भी प्रभावी उदाहरण बन रहा है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today