Rice Variety: बौद्ध भिक्षु उगा रहे हैं ये विदेशी धान, 3-4 दिन तक पकाकर रखो फिर भी नहीं होता खराब, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Rice Variety: बौद्ध भिक्षु उगा रहे हैं ये विदेशी धान, 3-4 दिन तक पकाकर रखो फिर भी नहीं होता खराब, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

बिहार के बोधगया में विदेशी चावल स्टीकी राइस की खेती की जा रही है. बोधगया में रहने वाले विदेशी बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा चार-पांच साल से इसकी खेती की जा रही है. इसके चावल को भाप के द्वारा पकाया जाता है.

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Rice Variety: बौद्ध भिक्षु उगा रहे हैं ये विदेशी धान, 3-4 दिन तक पकाकर रखो फिर भी नहीं होता खराब, पढ़ें पूरी रिपोर्टबोधगया में विदेशी चावल स्टीकी राइस की हो रही खेती. फोटो -किसान तक

इतिहास के सुनहरे पन्नों से लेकर वर्तमान समय तक बिहार के गया जिले की पहचान धार्मिक,पर्यटन,सहित विभिन्न क्षेत्रों में है. वहीं जिले का बोधगया विदेशी श्रद्धालुओं एवं बौद्ध भिक्षुओं का सबसे बड़ा निवास स्थान है. लेकिन अब बोधगया को विदेशी श्रद्धालुओं एवं बौद्ध भिक्षुओं के निवास के अलावा कृषि के क्षेत्र में स्टिकी राइस धान की खेती के तौर पर राज्य स्तर पर एक अलग पहचान मिल रही है. साथ हीं इसकी खेती को लेकर किसानों के बीच एक बेहतर संभावना दिख रही है. बोधगया के वट लाओस बौद्ध मंदिर में रहने वाले थाईलैंड और लाओस के बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा स्टिकी राइस धान की खेती की जा रही है. 

चार साल से बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा किराये की जमीन पर  की जा रही है स्टिकी राइस धान की खेती. फोटो -किसान तक
चार साल से बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा किराये की जमीन पर की जा रही है स्टिकी राइस धान की खेती. फोटो -किसान तक

लाओस बौद्ध मंदिर के केयर टेकर संजय कुमार बताते हैं कि पिछले चार साल से बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा किराये की जमीन पर स्टिकी राइस धान की खेती की जा रही है. ताकि यहां के  सभी विदेशी बौद्ध भिक्षु को आसानी से यह स्टिकी राइस मिल सकें. यह स्टिकी राइस थाईलैंड, लाओस और कंबोडिया के बौद्ध भिक्षु को बहुत पसंद हैं, जो भारत में नहीं मिलता है. इसे थाईलैंड से मंगवाना पड़ता है.

थाईलैंड से बीज मंगाकर की गई खेती

लाओस बौद्ध मंदिर के प्रभारी वेन ह्वैक्सना बॉउनथवोंग कहते हैं कि बोधगया में पूरे साल थाईलैंड, लाओस,कंबोडिया सहित विभिन्न देशों के बौद्ध भिक्षु व विदेशी श्रद्धालुओं का आने जाने का सिलसिला लगा रहता है. लेकिन स्टिकी राइस गया जिले में नहीं मिलने से काफी दिक्कत होती थी. वहीं विदेश से चावल मंगवाने पर कीमत ज्यादा पड़ती थी जिसको देखते हुए 2020 में बौद्ध भिक्षु के द्वारा थाईलैंड से बीज मंगवाकर किराये की तीन बीघा जमीन में खेती शुरू की गई. वहीं वर्षा होने के बाद थाईलैंड,लाओस और कंबोडिया सहित विभिन्न देशों के बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा  स्टिकी राइस धान रोपाई की गई है. बौद्ध भिक्षुओं के बीच यह चावल काफी पसंद किया जाता है.इसलिए बौद्ध भिक्षु लीज पर जमीन लेकर खुद स्टिकी राइस की खेती कर रहे हैं ताकि साल भर इनको स्टिकी राइस मिल सके.

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स्टिकी राइस चार दिनों तक नहीं होता है खराब

लाओस बौद्ध मंदिर केयर टेकर संजय कुमार कहते हैं कि स्टिकी चावल बनने के दो से तीन दिनों तक खराब नहीं होता है. गर्मी के दिनों में दो दिन और ठंड के मौसम में तीन से चार दिनों तक यह चावल आसानी से चल जाता है. वहीं इसका चावल स्टीम (भाप) की मदद से पकाया जाता है. आगे यह बताते हैं कि धान की रोपाई से लेकर कटाई और पैकिंग तक सभी काम बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा किया जाता है. 

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विदेशी मेहमानों की कमी देख घटा खेती का रकबा

वैसे स्टिकी राइस धान की खेती पिछले चार साल से हो रही है लेकिन कोरोना के बाद से बोधगया में विदेशी मेहमानों के आने की संख्या में कमी देखने को मिल रही है. जिसको देखते हुए अब तीन बीघा की जगह इस साल एक बीघा में धान की खेती की गई है. वहीं संजय कुमार कहते हैं कि अगर इस साल बौद्ध भिक्षु व विदेशी श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती है तो अगले साल खेती का रकबा बढ़ाया जाएगा.


 

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