अब खेती घाटे का सौदा नहीं रही, बशर्ते कि पता हो कि इससे फायदा कैसे कमाना है. यही वजह है कि लोग पहले लाचारी में खेती को अपनाते थे. वहीं अब लोग इसे पेशे और शौक के रूप में अपना रहे हैं. ऐसा परिवर्तन इसलिए हुआ है क्योंकि पहले परंपरागत खेती ही एकमात्र विकल्प होती थी. लेकिन अब खेती में नए-नए विकल्प आ गए हैं जिससे कमाई बढ़ गई है. लोग अब परंपरागत खेती को छोड़कर बागवानी में हाथ आजमा रहे हैं और लाखों कमा रहे हैं. इसी तरह की खेती में एक नाम है संजय भाई डोबरिया का जो गुजरात के अमरेली जिले के देवलकी गांव के रहने वाले हैं.
संजय भाई ऐसे किसान हैं जिन्होंने बागवानी फसलों की खेती कर लाखों रुपये की कमाई की है. और यह सिलसिला लगातार जारी है. बागवानी फसलों की कामयाबी उन्हें बड़ा आदमी बना चुकी है और उनका नाम जगजाहिर हो चुका है. उनसे कई किसान प्रेरित हैं और उनकी तरह ही बागवानी फसलों की खेती करना चाहते हैं. कई किसान ऐसे हैं जो परंपरागत खेती के साथ बागवानी फसलों को भी अपना रहे हैं कमाई कर रहे हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आठ साल पहले संजय भाई डोबरिया ने खजूर की खेती से शुरुआत करते हुए बागवानी करने का फैसला किया. आज वे अपनी खजूर की फसल से लाखों कमाते हैं. उन्होंने एक हेक्टेयर जमीन पर 120 खजूर के पेड़ लगाए हैं. प्रत्येक पेड़ से जो कच्चे खजूर की एक इज़राइली किस्म का है, वे 100 से 150 किलोग्राम खजूर की फसल लेते हैं. इस फसल का बाजार मूल्य लगभग 18 लाख रुपये आंका गया है. खेती और श्रम लागत को जोड़ने के बाद, उनका शुद्ध लाभ लगभग 10 लाख रुपये है.
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संजय भाई बताते हैं कि उन्होंने शुरू में पारंपरिक खेती की. लेकिन, कच्छ की यात्रा के दौरान उन्होंने खजूर की सफल खेती देखी और अपने क्षेत्र में खजूर की खेती शुरू करने के लिए प्रेरित हुए. कच्छ के किसानों से प्रेरित होकर उन्होंने अमरेली में खजूर के 120 पौधे लगाए. खजूर की खेती के लिए उन्हें सरकार से 16,000 रुपये की सब्सिडी भी मिली. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर किसान बागवानी फसलों पर ध्यान दें तो उन्हें अच्छा खासा आर्थिक लाभ मिल सकता है.
भारत में गुजरात का कच्छ जिला खजूर की खेती के लिए अग्रणी क्षेत्र है और इस फसल के लिए प्रसिद्ध है. कच्छ के अलावा, अमरेली में भी अब 50 हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन पर खजूर की खेती की जा रही है. राज्य सरकार और कृषि विभाग किसानों को बागवानी फ़सलें उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं और उन्हें सहायता देने के लिए सब्सिडी दे रहे हैं. सरकारी सब्सिडी से किसान प्रति हेक्टेयर 2 लाख रुपये तक का मुनाफ़ा कमा रहे हैं.
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