नांदेड़ का किसान बना मिसाल: 70 की उम्र में 80 हजार की कमाई, चीकू की खेती से बदली तकदीर

नांदेड़ का किसान बना मिसाल: 70 की उम्र में 80 हजार की कमाई, चीकू की खेती से बदली तकदीर

किसान पति-पत्नी ने बताया कि पथरीली जमीन में पानी के लिए पांच बार बोरवेल किया गया, लेकिन चार नाकाम रहा और एक से पानी निकला. उस एक बोरवेल से ही पाइप जोड़कर हर एक चीकू के पौधे तक पानी ले जाया जाता था. दोनों पति-पत्नी सुबह-शाम पौधों में पानी डालते थे, उसके बाद ही अपने घर पर लौटते थे.

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नांदेड़ का किसान बना मिसाल: 70 की उम्र में 80 हजार की कमाई, चीकू की खेती से बदली तकदीरनांदेड़ में चीकू की खेती करने वाले किसान शंकरराव पाकलवाड़

महाराष्ट्र के नांदेड़ शहर से सटे तुप्पा गांव में एक बुजुर्ग दंपती ने खेती में मिसाल कायम की है. इस किसान पति-पत्नी ने बड़ी मेहनत से पथरीली जमीन पर चिकू का गार्डन बनाया है. 71 साल के किसान शंकरराव पाकलवाड़ ने रिटायरमेंट के बाद ढाई एकड़ जमीन में 100 चिकू के पौधे लगाए हैं. इनकी खेती आज पूरे इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस उम्र में लोग रिटायर होकर घर पर आराम फरमाते हैं. उस उम्र में इस 70 साल के किसान ने हजारों रुपये की कमाई कर नौकरी-पेशा लोगों को बड़ा संदेश दिया है.

किसान शंकरराव पाकलवाड़ की पथरीली जमीन में बहुत कम पानी था. इसके बावजूद किसान दंपति ने हार नहीं मानी और चीकू की खेती के लिए कड़ी मेहनत की. चीकू का बगीचा उगाने के लिए हरसंभव प्रयास किया. साथ ही वे अन्य सब्जियां भी उगाते हैं जिनकी जरूरत घर में खाना बनाने में पड़ती है. किसान पति-पत्नी ने बताया कि चिकू लगाने के चौथे साल से उत्पादन शुरू हो गया है और इससे होने वाली आय से घर का का खर्च चल रहा है. किसानों की खुदकुशी के सवाल पर इस दंपति का कहना है कि जो भी व्यक्ति मेहनत और दिमाग से खेती करेगा, उसे खुदकुशी करने की नौबत नहीं आएगी.

नांदेड़ में चीकू की खेती

जमीन का लगातार बंजर होना किसानों के लिए खतरनाक स्थिति साबित हो रही है. ऐसी जमीन में खेती नहीं होने से कई किसान आज कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. इसके अलावा, खेती-किसानी बंद होने के कारण किसानों के सामने चुनौतियां भी बढ़ रही हैं. किसान दिनों दिन खुदकुशी कर रहे हैं. ऐसे में कम जमीन वाले किसान शंकरराव काशीराम पाकलवाड़ ने इन कठिनाइयों पर काबू पाया और ढाई एकड़ में चीकू के बगीचे लगाए. इस किसान दंपति ने बताया कि पथरीली जमीन में पानी निकालना बहुत मुश्किल काम था, लेकिन ऐसा उन्होंने कहा.

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किसान पति-पत्नी ने बताया कि पथरीली जमीन में पानी के लिए पांच बार बोरवेल किया गया, लेकिन चार नाकाम रहा और एक से पानी निकला. उस एक बोरवेल से ही पाइप जोड़कर हर एक चीकू के पौधे तक पानी ले जाया जाता था. दोनों पति-पत्नी सुबह-शाम पौधों में पानी डालते थे, उसके बाद ही अपने घर पर लौटते थे. बहुत देखभाल के बाद ढाई एकड़ में चीकू का बाग तैयार हुआ और आज उससे अच्छी कमाई हो रही है. इससे पूरे परिवार का हंसी-खुशी के साथ खर्च चल रहा है. 

पाकलवाड़ के पास जवाहरनगर (तुप्पा) क्षेत्र में तीन एकड़ का खेत है. उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं. शादी के बाद उन्होंने सिडको (नांदेड़) में टेस्कॉम कंपनी में 30 साल काम किया और अपने बच्चों की पढ़ाई पूरी की. आज उनके दोनों बच्चे जिला परिषद के स्कूलों में शिक्षक हैं. लड़कियों की शादी हो चुकी है. जब बच्चे काम करने लगे तो वे कंपनी छोड़कर गांव चले गए. चूंकि तीन एकड़ शुष्क भूमि की खेती से आय कम थी. इसलिए उन्होंने बागवानी खेती करने का फैसला किया.

नांदेड़ में चीकू की खेती

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शंकरराव पाकलवाड़ ने इसके लिए अपने खेत में पांच बोरवेल लगवाए. उनमें से केवल एक बोरवेल में दो इंच तक पानी आ गया. पथरीली जमीन को इतने कम पानी से भिगोना संभव नहीं था. इसलिए उन्होंने चीकू लगाने का फैसला किया और साल 1990 में उन्होंने ढाई एकड़ क्षेत्र में चीकू के 100 पौधे लगाए. इस चिकू से आज किसान को 80 हजार रुपये की आमदनी होती है. इस बुजुर्ग किसान ने कहा कि मन लगाकर खेती करें तो किसान आत्महत्या नहीं करेंगे. आज पूरे इलाके में शंकरराव पाकलवाड़ ने चिकू की खेती करके एक मिसाल बनाया है.(रिपोर्टर: कुवरचंद मंडले)

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