बस्तर की प्रभाती भारत छत्तीसगढ़ की ऐसी पहली महिला किसान हैं जो धान की 300 किस्मों को संरक्षित करने में जुटी हैं. प्रभाती अपने आठ एकड़ खेतों में 100 से अधिक वन औषधि की खेती कर रही हैं. जगदलपुर से सटे गांव छोटे गारावंड में प्रभाती भारत को मेडिसिनल प्लांट और धान की 300 से अधिक प्रजाति के संरक्षण को देखते हुए भाभा रिसर्च सेंटर मुंबई, विलेज बॉटनिक बेंगलुरु, कृषि मंत्रालय भारत सरकार, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर ने सम्मानित किया जा चुका है. उन्हें सम्मान में कई सर्टिफिकेट मिल चुके हैं. प्रभाती भारत हर साल सरकारी स्कूलों और पंचायतों में निःशुल्क 20 हजार मेडिसिनल प्लांट देती हैं. प्रभाती भारत छत्तीसगढ़ की ऐसी पहली महिला किसान हैं जो विलुप्त होती जड़ी-बूटी और धान की प्रजाति को बचाने में जुटी हैं.
बस्तर की महिला किसान प्रभाती भारत धान की 300 किस्मों को संरक्षित करने में जुटी हैं. छोटे गारावंड में प्रभाती तीसरी पीढ़ी की महिला किसान हैं. इससे पहले रंभा महांती और सुशीला भारत भी धान के बीज बचाने में बड़ी भूमिका निभा चुकी हैं. अब प्रभाती भारत धान की किस्मों को संरक्षित कर रही हैं. भारत परिवार 1915 से यहां धान को संरक्षित कर रहा है. प्रभाती भारत के अनुसार, उनके खेत में शंकर भोग, लोकटी मच्छी, विष्णु भोग, शीतल भोग, बुटवन, भामरी, दंतेस्वरी बासमती, हल्दीगाठी, टिमरू धान, जिलका जुड़ी, काली मुछ, सिधवान, चिमड़ी धान, करायत, गुरमुटीया, सकरी, लुचाई, देव भोग, बासमती, सफरी सहित अन्य धान की किस्मों को संरक्षित कर रहीं हैं.
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इन किस्मों में से विष्णु भोग और शीतल भोग किस्म को बस्तर राजपरिवार के लिए उगाया जाता था. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा इसलिए भी कहा गया क्योंकि यहां केवल धान की 23 हजार से ज्यादा किस्में हैं. इतनी किस्में देश के किसी राज्य में नहीं हैं. यही नहीं, दुनियाभर में फिलीपींस ही ऐसा देश है जहां छत्तीसगढ़ से ज्यादा धान की किस्में हैं.
बस्तर के जंगल में विभिन्न प्रकार के औषधि, जड़ी-बुटी, कंद-मूल, वनस्पति आदि पाए जाते हैं. बस्तर अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थों से भरपूर है. इन जड़ी बूटियों को भी प्रभाती संरक्षित कर रही हैं. अपने खेत में सफेद मूसली, सतावर, काली मूसली, जीवंती, पादुर पाटला, उतरण, अधापुष्पी, हृदय बीज, इंद्रायण बड़ी, घाव पत्ता, लघु कंटकारी, रामदातौन, माकड़ तेंदू, अरणी अग्निमंथ, खीरनी, फेट्रा, कुटज, पीला धतूरा, जंगली ककड़ी, भृंगराज, जंगली काला तिल, जंगली कपास सहित अन्य मेडिसिनल प्लांट संरक्षित कर रही हैं.
बस्तर में पाए जाने वाले मेडिसिनल प्लांट की विदेशों में भारी डिमांड है. प्रभाती बताती हैं कि कोरोना काल में मेडिसिनल प्लांट से ही कई लोग ठीक हुए हैं. प्रभाती भारत हर साल करीब 20 हजार पौधे सरकारी स्कूलों और पंचायतों में निःशुल्क देती हैं.
बस्तर शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित गांव छोटे गारावंड में पूरे गांव में चंदन के पौधे उग आए हैं. ग्रामीणों को पहले इस बात की भनक नहीं थी कि उनके खेत में चंदन की खेती की जा रही है. जब गांव की महिला किसान ने इसकी जानकारी दी तो गांव के लोग काफी खुश हुए और पौधे को बचाने में जुटे हुए हैं.
दरअसल, वर्तमान में वन विभाग के साथ-साथ किसान भी बड़े पैमाने पर नीलगिरी के पौधे लगा रहे हैं, जिससे उन्हें तात्कालिक लाभ मिलता है. इसके विपरीत गारावंड खुर्द की महिला किसान प्रभाती भारत ने चंदन से होने वाली आय को समझा और करीब 12 साल पहले ओडिशा के भुवनेश्वर से चंदन का पौधा लाकर अपने खेत में लगाया. ये पौधे आज काफी बड़े हो गए हैं. इन पौधों से निकल रहे बीज से पूरे गांव में जगह-जगह चंदन के पौधे उग आए हैं.
चंदन के लिए बस्तर की आबो हवा अनुकूल है. लकड़ी को तैयार होने में करीब 34 साल लगता है. चंदन की लकड़ी का उपयोग करने के साथ-साथ तेल भी निकाला जाता है. वर्तमान में बाजार में चंदन की लकड़ी करीब छह हजार रुपये और तेल ढाई लाख रुपये प्रति लीटर में बिक रहा है. प्रभाती के मुताबिक वे पादप बोर्ड के सहयोग से ट्रेनिंग ले चुकी हैं और विलुप्त हो रही वनौषधियों की प्रजातियों को बचाने का काम कर रही हैं.
महिला किसान प्रभाती ने बताया कि करीब 10-12 साल पहले ओडिशा से चंदन के 15 पौधे लाकर इसे प्रायोगिक तौर पर अपने फार्म हाउस में लगाया. अब ये पौधे काफी बढ़ चुके हैं. साथ ही पौधे में लगने वाले फल गांव में हवा से उड़ रहे हैं और जगह-जगह चंदन के पौधे उग आए हैं. उन्होंने बताया कि उनके पति विजय भारत, जो कि वनौषधि पौधों के जानकार हैं, उनसे ही यह प्रेरणा मिली. यही नहीं, उनके फॉर्म हाऊस में 100 से अधिक प्रकार की वनौषधि प्रजाति के पौधे लगे हुए हैं.
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बस्तर के तोकापाल के नजदीक गांव आरापुर के शिव मंदिर में चंदन के पौधे लगाए गए थे. यहां पौधों की संख्या करीब 110 तक पहुंच गई थी. लेकिन बड़े पेड़ों को कुछ लोगों ने पैसे के लालच में काट दिया. वहीं कुछ आज भी खड़े हैं. हालांकि चंदन की लकड़ी काफी अधिक महंगी होने के कारण चोरी भी हो जाती है. इसके उलट छोटे गारावंड की महिला किसान इसे संरक्षित कर रही हैं. साथ ही पूरे गांव को चंदन के पेड़ों से भर रही हैं.
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