प्रगतिशील किसान महावीर पुषामछत्तीसगढ़ के रायपुर और बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के किसान महावीर पुषाम आज अपने क्षेत्र में प्रगतिशील किसान के रूप में पहचान बना चुके हैं. एक साधारण किसान से उन्होंने अपनी मेहनत, लगन और सरकारी योजनाओं का सही उपयोग करके खेती को लाभ का व्यवसाय बना दिया है.
महावीर पुषाम ग्राम विमलापुर (विकासखंड रामचंद्रपुर) के निवासी हैं और पिछले कई वर्षों से लगभग पांच एकड़ भूमि पर तिलहन और मूंगफली की खेती कर रहे हैं. पहले वे पारंपरिक तकनीकों और अपने पास संरक्षित बीजों का इस्तेमाल करते थे, जिससे उत्पादन सीमित और आय कम होती थी — लगभग 55 से 60 हजार रुपये सालाना.
महावीर पुषाम की मेहनत और विभागीय सहयोग से उनके खेतों में बड़ा बदलाव आया. उन्होंने बीज और खाद के संतुलित उपयोग पर ध्यान दिया. पहले जहां वे 2 एकड़ में तिल, 2 एकड़ में रामतिल और 1 एकड़ में मूंगफली उगाते थे, अब उन्होंने सही बीज, उन्नत खेती तकनीक और उचित खाद का प्रयोग किया. इस बदलाव से उत्पादन लागत में भी कमी आई, और कुल आय में वृद्धि हुई.
महावीर की खेती में शुरुआती वर्षों में कई समस्याएं थीं. वे बताते हैं कि उनके पास गुणवत्तायुक्त बीज नहीं थे और उन्होंने अपनी परंपरा के अनुसार बीजों का चयन किया. इससे उत्पादन सीमित था और कई बार फसल में घट-बढ़ होने लगी. तिल, मूंगफली और रामतिल की खेती में उन्हें केवल कुछ ही उत्पादन मिलता था, जिससे आय सीमित रहती थी.
खेती के आधुनिक तरीकों की जानकारी न होने के कारण लागत नियंत्रण और उत्पादन की क्वालिटी पर भी प्रभाव पड़ता था और महावीर केवल 55 से 60 हजार रुपये की आय कमाते पाते थे.
लेकिन जब उन्हें राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (एनएमईओ) योजना की जानकारी मिली, तो उन्होंने कृषि विभाग से संपर्क किया और विभागीय मार्गदर्शन में क्वालिटी वाले बीज, उन्नत तकनीक और संतुलित खाद के उपयोग को अपनाया. परिणामस्वरूप उनकी पैदावार में बड़ा सुधार हुआ और अब उनकी वार्षिक आय 1 लाख रुपये तक पहुंच गई.
महावीर पुषाम कहते हैं — “सरकारी योजनाओं की सही जानकारी और आधुनिक तकनीक अपनाने से कोई भी किसान अपनी जिंदगी बदल सकता है. मेरी कोशिश है कि मैं नई वैज्ञानिक पद्धतियां अपनाकर खेती को और भी लाभकारी बनाऊं और अपने अनुभव से अन्य किसानों को भी प्रेरित करूं.”
उनकी सफलता से न केवल उनके परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है, बल्कि वे अपने गांव और आसपास के किसानों के लिए एक मिसाल बन गए हैं. कृषि विभाग भी अब महावीर के अनुभव को अन्य किसानों तक पहुंचाने की दिशा में काम कर रहा है.
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