
कहते हैं जितना मुश्किल संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी. कठिनाइयों और मुसीबतों को झेलते हुए मधेपुरा जिला के मुरलीगंज प्रखंड के रजनी प्रसादी चौक के पास स्थित जलांचल फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी अपनी सफलता की मिसाल पेश कर रही है. यह बिहार राज्य का पहला ऐसा एफपीओ होगा, जो बिना किसी सरकारी मदद के किसानों के द्वारा चलाई जा रही है. कभी एक ट्रक खाद मंगाने के लिए किसानों ने बेटी की शादी के लिए रखे पैसे और मकान बनाने के लिए जमा किए पैसे इस कंपनी के लिए दे दिए थे. वहीं अब इस एफ़पीओ की सालाना वैल्यू अस्सी लाख तक पहुंच चुकी है. इसके साथ ही आने वाले साल में एक करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है.
जलांचल फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी में करीब 600 से अधिक किसान जुड़े हुए हैं. इन किसानों को खाद और बीज सरकार के द्वारा निर्धारित मूल्य पर दिया जाता है. जलांचल फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी के अध्यक्ष प्रभात कुमार भारती किसान तक को बताते हैं कि इस एफपीओ का सदस्य बनने के लिए कंपनी का शेयर दिया जाता है. एक शेयर की कीमत एक हजार रुपये तक है. कोई भी सदस्य दस हजार रुपये तक ही शेयर खरीद सकता है. यानी कंपनी का सदस्य बनने के लिए एक हज़ार रुपये देना होता है. लेकिन इसके साथ ही उसे कंपनी का मालिकाना हक भी मिलता है.
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जलांचल फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी के सदस्य महेंद्र यादव बताते हैं कि 2008 में कुसहा त्रासदी के दौरान वह लोगों की मदद के लिए मधेपुरा आए हुए थे. उस दौरान पुनर्वास सहित अन्य क्षेत्रों में काम किया गया. लेकिन कुछ साल के बाद यह निर्णय हुआ कि रोजी रोजगार के साथ किसानों का कल्याण किस तरह से हो जिससे कि उन्हें खाद-बीज आसानी से मिले. तो 2017 में 200 किसानों के साथ बैठक की गई. जहां यह तय हुआ कि एफपीओ बनाया जाएगा.
महेंद्र यादव किसान तक को बताते हैं कि एफपीओ से पहले ऑपरेटिव बनाने का निर्णय हुआ था. लेकिन जब उसमें सफलता नहीं मिली तो नाबार्ड से जुड़कर एफपीओ बनाने का निर्णय लिया. वे बताते हैं कि इस साल का कोटा पूरा हो चुका है. उसके बाद लोगों की राय जानने के बाद चार कट्ठा जमीन लीज पर लेकर बिना किसी सरकारी मदद के जलांचल फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी के नाम से एफपीओ बनाया गया. खुद के शारीरिक श्रम से बांस और टीन इकट्ठा किया गया. दुकान के साथ गोदाम तैयार हुआ. साथ ही कुछ कंपनियों से खाद का लाइसेंस मिला.
पिछले साल जलांचल फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी का टर्नओवर अस्सी लाख रुपये तक पहुंच गया. वहीं इस साल के आखिरी तक एक करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है. लेकिन 26 मार्च 2018 के दिन जब इसकी स्थापना हुई, उस दौरान इसकी स्थिति ऐसी नहीं थी. कंपनी के निदेशक रमन जी कहते हैं कि हालत यह थी कि किसानों द्वारा जो पैसा जमा हुआ था. वह दुकान और गोदाम बनाने में ही लग गया. उसके बाद जब एक ट्रक खाद लाने की बारी आई तो कंपनी के पास पैसा ही नहीं था.
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उस समय कंपनी के सदस्य शंभु कुमार ने घर बनाने के लिए पैसा रखे थे. उन्होंने एक लाख रुपये दिए. लखन लाल दास अपनी बेटी की शादी के लिए पैसे रखे थे. उसमें से पचास हज़ार रुपये दिए. साथ ही स्थानीय स्तर पर इशरत प्रवीन और राजू कुमार जैसे कई लोगों की मदद से खाद पहली बार आया. आज IFFCO सहित अन्य खाद निर्माता कंपनी का लाइसेंस मिल चुका है. अब क्रेडिट पर खाद मिल जाती है. कभी डेढ़ से दो लाख बड़ी बात थी. आज पूरे साल का अस्सी लाख रुपये का टर्नओवर है.
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