यूपी में सहकारिता का चुनाव, 'राज्य सहकारी समिति निर्वाचन आयोग' द्वारा कराया जाता है. बिना चुनाव चिन्ह के होने वाले इस चुनाव में राजनीतिक दल प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं करते हैं. सहकारी समितियों के माध्यम से जमीनी स्तर पर खासकर ग्रामीण इलाकों में अपनी संगठनात्मक पकड़ मजबूत बनाने के मकसद से सियासी दल इस चुनाव में परोक्ष भागीदारी जरूर करते हैं. भाजपा ने अगले महीने प्रस्तावित सहकारी समितियों के चुनाव की रणनीति को तय करते हुए निदेशक और सभापति के पदों पर अपने प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी की अगुवाई में इस चुनाव की रणनीति को अंतिम रूप दिया गया.
पार्टी सूत्रों ने 'किसान तक' को बताया कि भाजपा के लखनऊ स्थित प्रदेश मुख्यालय में हुई बैठक में चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ने पार्टी के सभी क्षेत्रीय अध्यक्षों और प्रदेश महामंत्रियों को सहकारिता के चुनाव की प्रक्रिया से अवगत कराया. यूपी के सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर भी बैठक में मौजूद थे. एक नेता ने बताया कि शहरी क्षेत्रों में भाजपा का संगठन मजबूत है. ग्रामीण इलाकाें में पार्टी की पकड़ को मजबूत बनाने में सहकारी समितियों के चुनाव मददगार साबित होंगे.
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भाजपा, आगामी 6 मार्च और 13 मार्च को होने वाले चुनाव में पूरी ताकत से उतरेगी. सहकारिता के चुनाव पार्टी सिंबल के बिना ही होते हैं. इसके बावजूद भाजपा, सहकारी समितियों के निदेशक और सभापति पद के लिए अपने प्रत्याशी घोषित करेगी. भाजपा अगले साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिहाज से सहकारिता चुनावों को अहम मानते हुए लड़ेगी. पार्टी इस चुनाव के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में अपनी जमीनी पकड़ को मजबूती प्रदान करना चाहती है. साथ ही अप्रैल में संभावित नगर निकाय चुनाव में टिकट के घमासान को सहकारिता चुनाव से संतुष्ट करने की भाजपा की रणनीति है. पार्टी जिन नेताओं को नगर निकाय में टिकट नहीं दे पाएगी उन्हें सहकारी समितियों में एडजस्ट किया जा सकेगा. इस प्रकार भाजपा दोहरी रणनीति पर काम कर रही है.
यूपी में सहकारिता क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से समाजवादी पार्टी (सपा) के वर्चस्व को भाजपा अपने पिछले कार्यकाल में ही तोड़ चुकी है. जानकारों का मानना है कि सहकारिता के क्षेत्र में मजबूत पैठ के बलबूते ही सपा ने ग्रामीण इलाकों में अपनी मजबूत जमीन बनाई थी. सहकारिता में सपा एक मात्र गढ़ प्रादेशिक कोऑपरेटिव संघ (पीसीएफ) बचा था, जिसे भाजपा ने पिछले साल जून में हुए चुनाव में तोड़ कर सहकारिता के दिग्गज खिलाड़ी सपा के नेता शिवपाल सिंह को शिकस्त दे दी. शिवपाल के बेटे आदित्य यादव पीसीएफ के अध्यक्ष पद पर 10 साल से काबिज थे.
यूपी राज्य सहकारी निर्वाचन आयोग, प्रदेश सरकार के 10 विभागों (सहकारिता, दुग्ध, गन्ना, आवास, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण, उद्योग, मत्स्य, रेशम, हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग तथा खादी एवं ग्रामोद्योग में पंजीकृत सहकारी समितियों के स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी निभाता है. आयोग ने हाल ही में सहकारी समितियों का कई चरणों में होने वाला चुनाव कार्यक्रम घोषित किया है.
इस कड़ी में गन्ना एवं सहकारिता विभाग को छोड़कर अन्य विभागों की प्रारंभिक समितियों का चुनाव 6 मार्च को होगा. इनकी प्रबंध समितियों के चुनाव 18 मार्च को एवं सभापति, उपसभापति और अन्य समितियों में भेजे जाने वाने प्रतिनिधियों के चुनाव 19 मार्च को होंगे. इसी प्रकार गन्ना विभाग की समितियों के चुनाव 21 अप्रैल, 11 एवं 12 मई को होंगे. गौरतलब है कि यूपी में सभी 10 विभागों की 46,760 प्रारंभिक सहकारी समितियां हैं. इनकी 244 केंद्रीय समितियां एवं 50 शीर्ष समितियां हैं. इन समितियों के चुनाव में 1 करोड़ 25 लाख 76 हजार 692 पंजीकृत मतदाता हिस्सा लेते हैं.
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