यूपी में पुश्तैनी तौर पर मछली पालन कर रहे मछुआरे कमर्शियल दर पर भारी भरकम बिजली का बिल देने को मजबूर हैं. वजह सिर्फ इतनी है कि मछली पालन को सरकार अब तक कृषि कार्य की श्रेणी में शामिल नहीं कर पा रही है. इसका खामियाजा सिर्फ गरीब मछुआरों को ही नहीं, बल्कि युवा उद्यमियों को भी उठाना पड़ रहा है. प्रदेश में ऐसे तमाम युवा उद्यमी अब भारी बिजली बिल की समस्या से तंग आकर अपने फैसले पर पछता रहे हैं. यह मामला सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष भी उठाया जा चुका है. योगी ने 12 फरवरी को मत्स्य पालन से जुड़े किसानों को मिलने का समय दिया है. मछुआ समुदाय अब योगी से ही इस समस्या का समाधान हो पाने की उम्मीद है.
दादरी जिले के किसान अनुराग दुबे ने 1 साल पहले 30 बीघा खेत में बने तालाबों को किराए पर लेकर मछली पालन का व्यवसाय शुरू किया था. दुबे ने बताया कि वह मूल रूप से आईटी प्रोफेशनल हैं, लेकिन सरकार द्वारा मछली पालन को प्रोत्साहन देने के लिए शुरू की गई योजनाओं से प्रभावित होकर वह इस व्यवसाय में आए. वह खेत में बने 4 तालाबों में मछली पालन कर रहे हैं. काम शुरू करने के बाद जब बिजली का बिल आना शुरू हुआ. तब उन्हें मालूम चला कि यूपी सरकार के नियमों में मत्स्य पालन कृषि की श्रेणी में नहीं आता है. लिहाजा, बिजली विभाग मत्स्य पालकों को बिजली का बिल कमर्शियल दर पर थमा देता है.
असल में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद मत्स्य पालन को व्यवस्थित व्यवसाय बनाने के लिए सहायता योजनाएं शुरू की गईं. इसके बाद इस क्षेत्र में मछुआ समुदाय के अलावा अन्य किसानों एवं युवा उद्यमियों ने भी रुख किया. झांसी जिले के युवा मत्स्य पालक आकाश सिंह ने बताया कि मछली पालन उनका पुश्तैनी काम है. पिछले कुछ सालों में मछली व्यवसाय को बढ़ावा देने वाली योजनाओं का लाभ लेने के लिए उन्होंने अपने खेत में नए तालाब बनाकर इस काम को विस्तार दिया.
आकाश ने बताया कि उनके पुराने तालाब खेती की जमीन पर बने हैं, इसलिए पुराने तालाबों का बिजली का बिल नहीं आता है. मगर, नए तालाबों का बिल कमर्शियल श्रेणी में आ रहा है. इस समस्या को उन्होंने 2 साल पहले यूपी के मत्स्य पालन मंत्री संजय निषाद के झांसी दौरे के समय उठाया था. उन्होंने जल्द इस समस्या का समाधान कराने का आश्वासन भी दिया. लेकिन, अब तक इस पर कुछ नहीं हुआ.
कानपुर जिले के मत्स्य पालक जय कुमार सिंह ने बताया कि वह पिछले 15 साल से लगभग 15 हेक्टेयर जमीन पर मछली पालन का काम कर रहे हैं. लगभग 1 करोड़ रुपये का सालाना मछली कारोबार करने वाले सिंह ने बताया कि बीते डेढ़ दशक में जैसे-जैसे तालाबों की संख्या बढ़ा कर उन्होंने अपने कारोबार को विस्तार दिया, वैसे ही बिजली का बिल कई गुना बढ़ गया. इससे मुनाफे पर असर पड़ता देख, उन्होंने इसके विकल्पों पर सोचना शुरू किया. सरकारों से इस समस्या का समाधान न होते देख सिंह ने सरकार की कुसुम योजना के तहत सोलर पंप को विकल्प बना लिया है. पिछले 3 सालों में उनके 10 हेक्टेयर तालाब सोलर पंप से जुड़ गए हैं. अब सिर्फ 5 हेक्टेयर तालाब ही बिजली से जुड़े हैं. जल्द ही वह इन्हें भी सोलर सिस्टम से जोड़ने में लगे हैं.
बिजली के बिल की समस्या के अलावा 2 और समस्याएं मछुआरा समुदाय के लिए दशकों से संकट बनी हुई हैं. यूपी मत्स्य जीवी सहकारी संघ के अध्यक्ष बीरू साहनी ने बताया कि मछुआरों के तालाब बारिश के दिनों में जब लबालब भर जाते हैं और पानी, तालाब से बाहर जाने लगता है, तब तालाब की मछली भी बह जाती है. इससे मछुआरों को बहुत ज्यादा नुकसान होता है. मछुआरों की सरकार से मांग है कि फसल बर्बाद होने पर जिस प्रकार से किसानों को मुआवजा मिलता है, उसी तरह मछुआरों को भी मुआवजा दिया जाए. मछुआरों से कमर्शियल दर पर बिजली के बिल की वसूली भी गरीब मछुआरा समुदाय की बड़ी समस्या है.
उन्होंने बताया इस समुदाय की तीसरी समस्या तालाब का पट्टा होने पर मत्स्य पालक से सरकार द्वारा 10 साल का अग्रिम यानी एडवांस लगान वसूली की है. यह पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है. जबकि किसानों से कभी भी उनके खेत का एडवांस लगान नहीं लिया जाता है. साहनी ने बताया कि ये तीनों समस्याएं गरीब मछुआरों की कमर तोड़ देती हैं. उन्होंने कहा कि इसका समाधान तभी हो सकता है, जब मछली पालन को कृषि कार्य की श्रेणी में लाया जाएगा.
मत्स्य पालन विभाग के उपनिदेशक विजय चौरसिया ने माना कि यह मछली पालकों की गंभीर एवं जायज मांग है. यह समस्या कई सालों से शासन के संज्ञान में है. चौरसिया ने बताया कि मत्स्य पालन को कृषि की श्रेणी में शामिल करने का शासनादेश विभाग द्वारा साल 2014 में जारी कर बिजली विभाग के पास भेजा जा चुका है. उम्मीद की जानी चाहिए कि बिजली विभाग जल्द ही इस मामले में कार्रवाई करेगा.
हालांकि बिजली विभाग का कोई अधिकारी इस मुद्दे पर आधिकारिक तौर पर बोलने के लिए तैयार नहीं हुआ. आला अधिकारियों ने सिर्फ इतना ही कहा कि यह मामला विचाराधीन है, जल्द ही इस पर कार्रवाई कर मत्स्य पालकों के बिजली बिलों को दुरुस्त कर दिया जाएगा.
साहनी ने बताया कि उनका संगठन लगातार इस मांग को मत्स्य पालन मंत्री संजय निषाद के समक्ष उठाता रहा है. निषाद इस समस्या को कई बार विधानसभा में और मुख्यमंत्री के समक्ष उठा चुके हैं. मत्स्य पालन विभाग मछली पालन को कृषि की श्रेणी में शामिल करने का प्रस्ताव भी पारित कर विधि विभाग के पास भेज चुका है. जिससे कानून में बदलाव होने पर बिजली एवं राजस्व विभाग अपने प्रक्रियागत नियमों में बदलाव कर सकें.
साहनी ने कहा कि इस पर कोई कार्रवाई नहीं होने पर संगठन ने यह मुद्दा सीएम योगी के समक्ष उठाया है. मुख्यमंत्री कार्यालय ने उन्हें संगठन के पदाधिकारियों के साथ 12 फरवरी को योगी से मिलने का समय दिया है. उन्होंने कहा कि गेंद अब सीएम के पाले में है और उन्हें पूरा भरोसा है कि 12 फरवरी को सीएम योगी दशकों पुरानी इस समस्या का समाधान करा देंगे.
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